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कृष्णा पूनिया: खेल और समाज सेवा में प्रेरणा की प्रतीक

कृष्णा पूनिया: खेल और समाज सेवा में प्रेरणा की प्रतीक

कृष्णा पूनिया, पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता भारतीय एथलीट, ने खेल और राजनीति दोनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक और युवाओं के लिए प्रेरणा उनके जीवन की प्रमुख पहचान हैं।

Krishna Poonia: कृष्णा पूनिया का नाम भारतीय खेल जगत में न केवल उत्कृष्टता, बल्कि प्रेरणा और साहस का पर्याय बन चुका है। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की एथलीट, ओलंपिक प्रतिभागी, पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता, पूनिया ने देश के लिए खेल में उपलब्धि की नई ऊँचाइयाँ छुईं। उनकी जीवन यात्रा केवल खेल तक सीमित नहीं रही; उन्होंने राजनीति में भी कदम रखते हुए समाज सेवा की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन संघर्ष, दृढ़ निश्चय और सफलता की कहानी है।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

कृष्णा पूनिया का जन्म 24 अप्रैल 1977 को हरियाणा के हिसार जिले के अग्रोहा गाँव में हुआ। उनका परिवार जाट समुदाय से संबंधित था। कृष्णा के जीवन की शुरुआती यात्रा आसान नहीं थी। उनके बचपन में ही उनके माँ का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके पिता और नानी ने किया। ऐसे में, उनके जीवन में कठिनाइयों का सामना करना उनकी आदत बन गया।

कृष्णा की शारीरिक क्षमता और खेलों के प्रति रुचि उनके किशोरावस्था में उभर कर सामने आई। 15 साल की उम्र तक उन्होंने खेतों में काम करके शारीरिक शक्ति विकसित की और धीरे-धीरे खेलों की ओर ध्यान केंद्रित किया। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें एक विश्वस्तरीय एथलीट बनने की दिशा में अग्रसर किया।

खेल में सफलता की ऊँचाइयाँ

कृष्णा पूनिया का नाम भारतीय खेलों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना, जो उन्हें ट्रैक और फील्ड में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनाता है। उन्होंने डिस्कस थ्रो में 61.5 मीटर की दूरी तय की और ऐतिहासिक क्लीन स्वीप किया। इस उपलब्धि ने भारत के खेल जगत में उनके नाम को अमर कर दिया।

कृष्णा पूनिया ने 2008 और 2012 के ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2012 लंदन ओलंपिक में उन्होंने महिलाओं की डिस्कस थ्रो में छठा स्थान प्राप्त किया। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रयास 63.62 मीटर था, जो उनके पांचवें और अंतिम थ्रो में आया। इस प्रदर्शन ने उन्हें मिल्खा सिंह, पीटी उषा, श्रीराम सिंह और अंजू बॉबी जॉर्ज जैसी महानताओं की श्रेणी में रखा।

उनकी खेल यात्रा केवल पदक तक सीमित नहीं थी। कृष्णा ने भारतीय खेलों के बुनियादी ढांचे और युवा एथलीटों के विकास में भी योगदान दिया। जयपुर और अन्य क्षेत्रों में बच्चों के लिए खेल सुविधाओं को बढ़ावा देने में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।

शिक्षा और पारिवारिक जीवन

कृष्णा पूनिया ने शिक्षा को भी अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने जयपुर के कनोरिया पीजी महिला महाविद्यालय से समाजशास्त्र में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा और खेल दोनों में संतुलन बनाए रखना उनके व्यक्तित्व की एक खास विशेषता है।

वर्ष 2000 में, उन्होंने वीरेंद्र सिंह पूनिया से विवाह किया, जो स्वयं एक पूर्व एथलीट थे और बाद में उनके कोच बने। 2001 में उनके घर एक पुत्र का आगमन हुआ। इस परिवारिक सहयोग और संतुलन ने उन्हें खेल और राजनीति दोनों में सफलता की ओर अग्रसर किया।

राजनीतिक यात्रा

खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के बाद, कृष्णा पूनिया ने 2013 में राजनीति में कदम रखा। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुईं और अपने पति के गृह जिले चुरू में चुनावी रैली में राहुल गांधी और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उपस्थिति में कांग्रेस से जुड़ीं।

राजस्थान विधान सभा चुनाव

2013 में, उन्होंने सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव लड़ा। हालांकि वह इस चुनाव में हार गईं और तीसरे स्थान पर रहीं, परंतु उनकी मेहनत और लोकप्रियता ने उन्हें 2018 में फिर मौका दिलाया। 2018 के राजस्थान विधान सभा चुनाव में उन्होंने फिर से सादुलपुर सीट पर चुनाव लड़ा और 70,020 वोट प्राप्त कर 18,084 वोटों के अंतर से जीत हासिल की।

लोकसभा चुनाव 2019

2019 में, पूनिया को जयपुर ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया। उन्होंने भाजपा के ओलंपियन राज्यवर्धन सिंह राठौर के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन 393,171 मतों के अंतर से हार गईं। यह हार उनके राजनीतिक करियर के लिए एक चुनौती थी, लेकिन उन्होंने हार से हार मानने के बजाय समाज सेवा और खेल क्षेत्र में योगदान जारी रखा।

सामाजिक योगदान

राजनीति में आने के बाद, कृष्णा पूनिया ने समाज के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें की। उन्होंने राजस्थान राज्य स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर कन्या भ्रूण हत्या रोकने के प्रयासों में मदद की। हरियाणा और राजस्थान में कन्या भ्रूणों के चयनात्मक गर्भपात की समस्या को रोकना उनके लिए एक महत्वपूर्ण मिशन रहा।

इसके अलावा, उन्होंने जयपुर और अन्य क्षेत्रों में बच्चों के लिए खेलों के बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाने की दिशा में कई कदम उठाए। उनके प्रयासों से कई युवाओं को खेलों में अवसर और प्रेरणा मिली।

पुरस्कार और सम्मान

कृष्णा पूनिया ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं। उनमें प्रमुख हैं:

  • पद्म श्री – भारत सरकार द्वारा खेल क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया।
  • अर्जुन पुरस्कार – खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन और योगदान के लिए।
  • राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक – 2010 में नई दिल्ली में।

इन पुरस्कारों और उपलब्धियों ने उन्हें न केवल भारतीय खेलों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता दिलाई।

नेतृत्व की भूमिका

फरवरी 2022 में, कृष्णा पूनिया को राजस्थान राज्य खेल परिषद का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए, उन्होंने खेलों के विकास और खेल नीति सुधार में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग किया। उनके नेतृत्व में खेलों के क्षेत्र में नई पहलें और योजनाएँ लागू की गईं, जो युवा खिलाड़ियों के लिए अवसरों का सृजन करती हैं।

कृष्णा पूनिया का जीवन संघर्ष, समर्पण और उत्कृष्टता का प्रतीक है। खेल और राजनीति दोनों क्षेत्रों में उन्होंने समाज और युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा के नए मानक स्थापित किए हैं। उनके योगदान ने न केवल भारत में खेलों को नई ऊँचाइयाँ दीं, बल्कि समाज सेवा और नेतृत्व में भी उन्हें एक प्रेरक उदाहरण बना दिया।

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