गोचर शब्द आपने अक्सर ज्योतिष शास्त्र से जुड़ी बातों में सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आपके जीवन पर किस हद तक असर डाल सकता है? किसी की नौकरी लग जाए, किसी की शादी रुक जाए या फिर अचानक धन लाभ हो जाए, इन सभी घटनाओं के पीछे एक बड़ा कारण गोचर भी हो सकता है। चलिए, जानते हैं कि गोचर असल में होता क्या है और इसका आपके जीवन पर क्या असर पड़ता है।
गोचर का मतलब क्या होता है
गोचर का सीधा मतलब होता है ग्रहों की वर्तमान स्थिति। यानी इस समय आसमान में कौन-सा ग्रह किस राशि और भाव में घूम रहा है, यह गोचर कहलाता है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई बीज जमीन में दबा हो और मौसम अनुकूल होने पर वह अंकुरित होकर पेड़ बन जाए। उस बीज के पेड़ बनने की संभावना तो जन्म से ही होती है, लेकिन उसे बढ़ने के लिए सही मौसम चाहिए होता है। ठीक उसी तरह आपकी कुंडली में जो भी योग छुपे होते हैं, गोचर उन योगों को सक्रिय कर देता है।
जन्म कुंडली और गोचर का रिश्ता
हर व्यक्ति की जन्म कुंडली उसकी जिंदगी की स्क्रिप्ट होती है। इसमें ग्रहों की जन्म के समय की स्थिति दर्ज होती है। लेकिन यह स्क्रिप्ट कब मंच पर आएगी, कब किस दृश्य को दिखाया जाएगा, यह गोचर तय करता है। यानी गोचर यह बताता है कि आपकी किस संभावना को अब फलित होने का समय आ गया है।
ग्रहों की चाल कितनी तरह की होती है
गोचर को समझने के लिए जरूरी है कि हम ग्रहों की गति को समझें। ग्रह हमेशा एक जैसी गति से नहीं चलते। उनकी चाल के तीन मुख्य प्रकार होते हैं
- सम गति: जब ग्रह अपनी सामान्य चाल से चलते हैं तो इसे सम गति कहा जाता है। इस समय जो फल मिलते हैं, वो धीरे-धीरे मिलते हैं। यानी आपको धैर्य रखना पड़ता है।
- अतिकारी गति: इस चाल में ग्रह तेज गति से चलते हैं। ऐसे में परिणाम भी तेजी से मिलते हैं। कभी-कभी तो इतना तेज़ कि हम उसका पूरी तरह लाभ भी नहीं उठा पाते।
- वक्री गति: जब कोई ग्रह उल्टी चाल यानी वक्री हो जाता है तो यह स्थिति उलझन और देरी लेकर आती है। इस समय कोई भी निर्णय सोच-समझकर ही लेना चाहिए क्योंकि परिणाम अपेक्षा से उलटे भी हो सकते हैं।
लग्न, चंद्रमा और सूर्य से जुड़ा गोचर
गोचर का असर केवल ग्रहों की स्थिति से ही नहीं, बल्कि लग्न, चंद्र और सूर्य के अनुसार भी देखा जाता है।
- लग्न हमारे शरीर, स्वास्थ्य और कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है।
- चंद्रमा मन, भावनाएं और मानसिक स्थिति से जुड़ा होता है।
- सूर्य आत्मा, आत्मविश्वास और सम्मान का प्रतीक होता है।
जब कोई ग्रह इन तीनों पर गोचर करता है, तो उसके अनुसार जीवन में बदलाव देखने को मिलते हैं।
गोचर का फल चंद्रमा से क्यों देखा जाता है
शास्त्रों के अनुसार, चंद्रमा से गोचर देखने को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। “चन्द्रेषु गोचरेषु” नामक सूत्र में स्पष्ट कहा गया है कि गोचर का फल चंद्रमा के आधार पर देखें। क्योंकि चंद्रमा मन का कारक है और व्यक्ति की मानसिक स्थिति तय करता है। यही वजह है कि चंद्र से किए गए गोचर विश्लेषण ज़्यादा सटीक माने जाते हैं।
हालांकि, सिर्फ चंद्रमा पर निर्भर रहना सही नहीं होता। व्यवहार में गोचर के प्रभाव को सूर्य, लग्न, दशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा सभी पहलुओं से जांचना पड़ता है। इसके साथ अष्टकवर्ग का विश्लेषण भी बहुत जरूरी होता है।
अष्टकवर्ग का महत्व
अष्टकवर्ग एक तरह से ग्रहों की ताकत का गणितीय विश्लेषण है। इससे यह पता चलता है कि कोई ग्रह किसी विशेष स्थान पर कितना बलवान है। मान लीजिए, शनि किसी राशि में गोचर कर रहा है, लेकिन अष्टकवर्ग में उस स्थान की बिंदु संख्या कम है, तो शनि की शुभता उतनी प्रभावशाली नहीं होगी। वहीं अधिक बिंदु संख्या वाले स्थान पर गोचर होने पर उसका असर ज्यादा शक्तिशाली होगा।
गोचर से जीवन कैसे बदलता है
मान लीजिए कोई व्यक्ति लंबे समय से नौकरी की तलाश में है और उसकी कुंडली में योग भी हैं, लेकिन कुछ हो नहीं रहा। जैसे ही उस पर सूर्य या शनि का शुभ गोचर आता है, अचानक उसे नौकरी का ऑफर मिल जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि वह योग पहले नहीं था, बल्कि गोचर ने उस योग को सक्रिय कर दिया।
इसी तरह, किसी की शादी में अड़चन आ रही हो और शुक्र या गुरु का शुभ गोचर सप्तम भाव या उस पर दृष्टि डाल दे, तो विवाह की संभावना बन जाती है।