भारत में मानसून का पैटर्न तेजी से बदल रहा है। हिमाचल में भारी बारिश से तबाही हुई है। विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं, जिससे खेती, आपदा प्रबंधन और जनजीवन प्रभावित हो रहा है।
Mansoon: भारत में मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। बीते वर्षों में इसका पैटर्न तेजी से बदल रहा है, जिससे देश के कृषि, आपदा प्रबंधन और आम जनजीवन पर गहरा असर पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश की ताजा घटनाएं इस बदलाव का ताजा उदाहरण हैं, जहां भारी बारिश के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
हिमाचल में भारी बारिश से तबाही
हिमाचल प्रदेश इन दिनों भीषण मानसून की चपेट में है। पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जिससे 260 से ज्यादा सड़कें बंद हो गई हैं। अकेले मंडी जिले में ही 176 सड़कों पर आवागमन रुक गया है। भारतीय मौसम विभाग ने कांगड़ा, सिरमौर और मंडी जिलों के लिए भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।
इस हफ्ते बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में अब तक कम से कम 69 लोगों की जान जा चुकी है और 37 लोग लापता हैं। बीते साल भी मानसून के मौसम में हिमाचल प्रदेश में 550 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
विशेषज्ञों की चेतावनी: जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार
जलवायु वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। लगातार बढ़ते तापमान के कारण मानसून का स्वरूप असामान्य हो गया है। कभी ज्यादा बारिश, कभी सूखा, कभी समय से पहले मानसून तो कभी देरी से — यह सब मानसून की अनिश्चितता को दर्शाता है।
तापमान में वृद्धि के आंकड़े
सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, 1901 से 2018 के बीच भारत की सतह के औसत तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वहीं, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर की सतह का तापमान 1951 से 2015 के बीच लगभग 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है।
गर्म हवा अधिक नमी धारण कर सकती है, जिससे अत्यधिक वर्षा होती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ हवा में लगभग 7 प्रतिशत अधिक नमी आ जाती है, जिससे बारिश अधिक तीव्र होती है।
मानसून में अब सामान्य बारिश नहीं रही
मौसम विभाग के अनुसार, बीते 50 वर्षों में भारत की मौसमी बारिश में लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट आई है। मध्य भारत में मध्यम बारिश के दिन घटे हैं जबकि बहुत अधिक बारिश वाले दिन बढ़े हैं। अब एक दिन में 150 मिमी से अधिक बारिश सामान्य हो गई है, जो पहले दुर्लभ मानी जाती थी।
अल्पकालिक भारी बारिश का बढ़ता खतरा
भारत की लगभग 55 प्रतिशत तहसीलों में बीते दशक में मानसून की बारिश में वृद्धि देखी गई है। हालांकि, यह वृद्धि मुख्यतः अल्पकालिक भारी बारिश के कारण हुई है। वहीं, 11 प्रतिशत तहसीलों में बारिश में कमी दर्ज की गई है, खासकर कृषि पर निर्भर मैदानी इलाकों में।
वापसी मानसून में देरी
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर में ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई, जिससे मानसून की वापसी में देरी का संकेत मिलता है। इससे खरीफ फसलों की कटाई पर असर पड़ता है और रबी फसलों की बुआई भी प्रभावित होती है।
किस क्षेत्र में कैसा असर
पूर्वोत्तर भारत, गंगा के मैदानी इलाके और हिमालयी क्षेत्र — जो पहले भारी वर्षा वाले क्षेत्र माने जाते थे — अब कम बारिश का सामना कर रहे हैं। इसके विपरीत, राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे पारंपरिक रूप से शुष्क क्षेत्रों में अब ज्यादा वर्षा हो रही है।
तमिलनाडु में पूर्वोत्तर मानसून की तीव्रता बढ़ी है, जबकि ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पश्चिमी तट जैसे क्षेत्रों में अक्टूबर से दिसंबर तक भारी बारिश की प्रवृत्ति देखी गई है।
खेती पर गहरा असर
मानसून के इस अस्थिर व्यवहार का सबसे बड़ा प्रभाव भारत की कृषि व्यवस्था पर पड़ रहा है। बारिश की अनिश्चितता के कारण किसान सही समय पर बुआई नहीं कर पा रहे हैं। कभी अत्यधिक वर्षा तो कभी सूखे जैसी स्थिति उनकी फसल को पूरी तरह बर्बाद कर देती है। धान, गन्ना और कपास जैसी फसलें विशेष रूप से मानसून पर निर्भर होती हैं। यदि मानसून असामान्य हो गया तो खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।