हर साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन 2025 में जन्माष्टमी की तारीख को लेकर श्रद्धालुओं के बीच भ्रम की स्थिति बन रही है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अष्टमी तिथि 15 अगस्त की रात में शुरू हो रही है और 16 अगस्त को रात 9 बजकर 34 मिनट पर समाप्त हो रही है। वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 17 अगस्त को सुबह 4 बजकर 38 मिनट पर होगा। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि जन्माष्टमी 15 को मनाई जाएगी या 16 को।
2025 में जन्माष्टमी की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार 2025 में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा।
- अष्टमी तिथि आरंभ: 15 अगस्त 2025 को रात 11 बजकर 49 मिनट पर
- अष्टमी तिथि समाप्त: 16 अगस्त 2025 को रात 9 बजकर 34 मिनट पर
- चंद्रोदय: 16 अगस्त को रात 11 बजकर 32 मिनट पर
- पूजन का शुभ समय: रात 12 बजकर 4 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक
- रोहिणी नक्षत्र आरंभ: 17 अगस्त की सुबह 4 बजकर 38 मिनट पर
- रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 18 अगस्त की सुबह 3 बजकर 17 मिनट पर
क्यों मानते हैं जन्माष्टमी रात को
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग में हुआ था। इसलिए श्रद्धालु इस दिन रात के 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं। उनके बालरूप की पूजा होती है, झूला झुलाया जाता है और भजन-कीर्तन किया जाता है।
उदया तिथि का विशेष महत्व
सनातन परंपरा में उदया तिथि को प्रमुखता दी जाती है यानी जिस दिन सूर्योदय के समय अष्टमी हो, वही दिन त्योहार के लिए उपयुक्त माना जाता है। 2025 में अष्टमी तिथि 16 अगस्त को सूर्योदय के समय विद्यमान रहेगी, इसलिए अधिकतर स्थानों पर जन्माष्टमी इसी दिन मनाई जाएगी।
कृष्ण जन्म का आध्यात्मिक महत्व
भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने अत्याचार, अन्याय और अधर्म के विनाश के लिए धरती पर अवतार लिया। उनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था और बाल्यकाल गोकुल में बीता। उनके जीवन से जुड़ी बाल लीलाएं आज भी लोगों को आध्यात्मिक प्रेरणा देती हैं।
कैसे मनाते हैं भक्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
देश भर में जन्माष्टमी बड़े उल्लास और श्रद्धा से मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है, झांकियों का आयोजन होता है, कथा वाचन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है। खासकर मथुरा, वृंदावन, द्वारका और गोकुल जैसे तीर्थस्थल इस दिन विशेष रोशनी और भक्ति से सराबोर हो जाते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत और उसकी विधि
इस दिन उपवास रखने की परंपरा है। कई भक्त केवल फलाहार करते हैं, कुछ जल भी नहीं ग्रहण करते और रात 12 बजे पूजा के बाद व्रत का पारण करते हैं।
- व्रत सूर्योदय से शुरू होता है
- पूरे दिन भक्ति, पाठ, कीर्तन और ध्यान किया जाता है
- रात 12 बजे भगवान के जन्म के समय अभिषेक, श्रृंगार और आरती होती है
- इसके बाद व्रत खोलने की परंपरा है
झूला और लड्डू गोपाल का पूजन
इस दिन घरों में लड्डू गोपाल को झूले में बैठाकर पूजा की जाती है। उन्हें वस्त्र, माला, मोर मुकुट और बांसुरी से सजाया जाता है। दूध, दही, मक्खन, मिश्री और तुलसी से अभिषेक किया जाता है। प्रसाद में पंचामृत और माखन-मिश्री बांटी जाती है।
रात के समय विशेष आयोजन
जन्माष्टमी की रात को कई जगहों पर मंदिरों में रातभर जागरण, कीर्तन और नाटक (लीला) का आयोजन होता है। बाल श्रीकृष्ण की झांकियों से मंदिरों और घरों का वातावरण भक्तिमय हो जाता है। बच्चे श्रीकृष्ण और राधा की वेशभूषा में नजर आते हैं और कई जगह दही हांडी की प्रतियोगिताएं भी होती हैं।
दही हांडी की धूम
महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में जन्माष्टमी के अगले दिन ‘गोविंदा’ का त्योहार मनाया जाता है। इसमें युवकों की टोली ऊंचाई पर टंगी दही की हांडी को फोड़ती है। यह आयोजन श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला की याद में होता है और इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं।
श्रद्धा और भक्ति का पर्व
जन्माष्टमी केवल एक त्योहार नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी शिक्षाओं को आत्मसात करने का दिन है। यह पर्व प्रेम, सत्य, करुणा और धर्म की स्थापना की प्रेरणा देता है। भक्तगण इस दिन श्रीकृष्ण के चरणों में अपनी समस्त कामनाओं और भावनाओं को अर्पित करते हैं और उनके जन्मोत्सव में शामिल होकर अपने जीवन को पावन बनाते हैं।