महाराष्ट्र में पहली से 5वीं कक्षा तक के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किए जाने को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। इस फैसले के खिलाफ कई क्षेत्रीय दलों ने विरोध जताया है, वहीं अब एनसीपी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
Hindi Compulsory In Maharashtra: महाराष्ट्र में हिंदी को स्कूल शिक्षा में तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने के फैसले ने राज्य की राजनीति में गर्माहट पैदा कर दी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत राज्य सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया, लेकिन इसके विरोध में अब कई क्षेत्रीय दल और नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
खासकर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-एसपी) के प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने इस कदम की आलोचना करते हुए भाषा थोपने की राजनीति पर सवाल खड़े किए हैं।
शरद पवार का बयान: 'हिंदी को वैकल्पिक ही रहना चाहिए'
एनसीपी (शरद पवार गुट) के अध्यक्ष शरद पवार ने साफ शब्दों में कहा है कि हिंदी को महाराष्ट्र के स्कूलों में अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा: यह निर्णय छात्रों पर नहीं थोपा जाना चाहिए। हिंदी को एक विकल्प के रूप में रखा जा सकता है ताकि जो छात्र इसे पढ़ना चाहते हैं, वे स्वेच्छा से चुन सकें। केवल इसलिए कि देश की 50-60 प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है, इसका अर्थ यह नहीं कि यह सभी पर थोपी जाए।
शरद पवार के इस बयान से स्पष्ट है कि वह भाषा के चयन को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं। उन्होंने केंद्र की नीतियों को सीधे तौर पर चुनौती न देते हुए भी हिंदी को बाध्यकारी बनाने की आलोचना की है।
उद्धव ठाकरे का तीखा हमला: 'हिंदी थोपने नहीं देंगे'
इससे पहले शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी महाराष्ट्र में हिंदी को थोपे जाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने 19 जून को एक जनसभा में कहा: देवेंद्र फडणवीस, अगर हिम्मत है तो हिंदी थोपकर दिखाइए। महाराष्ट्र की जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी। मुंबई में हिंदू बनाम हिंदू की लड़ाई करवाई जा रही है। अगर थोपना ही है तो जाकर गुजरात में थोपिए। ठाकरे ने इसे सांस्कृतिक हस्तक्षेप बताया और कहा कि महाराष्ट्र की मातृभाषा मराठी है, और इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एमएनएस और मराठी संगठनों की भी नाराजगी
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और कई मराठी संगठनों ने भी इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। इन संगठनों का मानना है कि राज्य की भाषा नीति में केंद्र का हस्तक्षेप राज्य की सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल सकता है।
फडणवीस का पक्ष: तीसरी भाषा का विकल्प, ज्ञान को बढ़ावा
विरोध की इस लहर के बीच उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत पूरे देश में तीन भाषा नीति लागू की गई है। इसमें छात्रों को उनकी मातृभाषा, अंग्रेजी और एक अन्य भारतीय भाषा सिखाई जाती है। महाराष्ट्र को इससे अलग नहीं किया जा सकता। यदि कोई छात्र एक अतिरिक्त भाषा सीखता है, तो इसमें हर्ज क्या है?
उन्होंने यह भी बताया कि तमिलनाडु की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी, जिससे यह स्पष्ट है कि 3 भाषा नीति संविधान के दायरे में है। राज्य सरकार द्वारा 17 जून को जारी संशोधित सरकारी आदेश (जीआर) में यह स्पष्ट किया गया कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, बल्कि इसे तीसरी भाषा के रूप में सामान्य रूप से पढ़ाया जाएगा। हालांकि, यदि किसी कक्षा में 20 या उससे अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को पढ़ना चाहते हैं, तो उन्हें हिंदी की जगह वह भाषा पढ़ने की छूट होगी।