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मोहन भागवत का शिक्षा पर संबोधन, कहा- भारत को भारत ही कहना चाहिए, इसका अनुवाद नहीं करें

मोहन भागवत का शिक्षा पर संबोधन, कहा- भारत को भारत ही कहना चाहिए, इसका अनुवाद नहीं करें

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि 'भारत' सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि देश की अस्मिता है। उन्होंने 'India' शब्द के अनुवाद पर आपत्ति जताई और सनातन धर्म, शिक्षा व भारतीय मूल्यों पर जोर दिया।

Bharat Identity RSS: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि 'भारत' सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान है। उन्होंने यह बात शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' में कही। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि 'भारत' एक Proper Noun है और इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए।

भागवत ने कहा कि 'India that is Bharat' लिखना संविधान के अनुसार सही है, लेकिन जब हम बोलते हैं या लिखते हैं, तो हमें 'भारत' को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। उनका कहना था कि भारत की जो विशिष्ट पहचान है, वह 'भारत' नाम से ही जुड़ी हुई है और उसे यथावत बनाए रखना आवश्यक है।

'भारत की पहचान ही उसका सम्मान है'

मोहन भागवत ने कहा कि भारत को जो वैश्विक मान्यता और सम्मान मिला है, वह उसकी मूल पहचान और भारतीयता के कारण है। यदि हम अपनी पहचान खो देंगे, तो चाहे हमारे पास कितनी भी योग्यताएं क्यों न हों, हमें न तो सम्मान मिलेगा और न सुरक्षा। उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व में हर व्यक्ति और समाज के लिए लागू होता है।

भारत कभी विस्तारवादी नहीं रहा

अपने भाषण में उन्होंने भारत के ऐतिहासिक दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत कभी भी विस्तारवादी या आक्रामक राष्ट्र नहीं रहा है। भागवत ने कहा, "हमने मेक्सिको से साइबेरिया तक यात्राएं कीं, लेकिन न कभी किसी की भूमि पर अधिकार जमाया, न ही किसी का राज्य छीना। हमने केवल शांति, अहिंसा और ज्ञान का प्रसार किया।"

शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी नहीं, जिम्मेदारी भी होनी चाहिए

शिक्षा के महत्व पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि केवल कौशल या रोजगार प्राप्त करना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। उन्होंने ज़ोर दिया कि शिक्षा का उद्देश्य आत्मनिर्भरता और सामाजिक उत्तरदायित्व होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे वे खुद के साथ-साथ अपने परिवार और समाज की जिम्मेदारियों को भी निभा सकें।

सनातन धर्म का पुनर्जागरण आवश्यक

अपने भाषण में मोहन भागवत ने योगी अरविंद का उदाहरण देते हुए कहा कि सनातन धर्म का पुनर्जागरण आवश्यक है और यह हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि योगी अरविंद ने कहा था कि यह ईश्वर की इच्छा है कि सनातन धर्म फिर से जागृत हो और इसके लिए हिन्दू राष्ट्र का उदय आवश्यक है।

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