जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। राज्यसभा चुनाव को लेकर नेशनल कांफ्रेंस (NC) ने अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और पूर्व मंत्री चौधरी मुहम्मद रमजान के नामों पर लगभग सहमति बन चुकी है। दोनों दिग्गजों को दिल्ली की राजनीति में भेजने की तैयारी अब अंतिम चरण में बताई जा रही है।
नेशनल कांफ्रेंस की कोर कमेटी ने इन नामों पर गंभीरता से विचार किया है और पार्टी की पहली प्राथमिकता के तौर पर इन्हें आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। राज्यसभा में मजबूत उपस्थिति बनाने के लिए पार्टी नेतृत्व इन दो चेहरों को उपयुक्त मान रहा है।
तीसरी सीट पर कांग्रेस के साथ तालमेल
एनसी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को ध्यान में रखते हुए तीसरी राज्यसभा सीट को लेकर भी मंथन जारी है। योजना है कि गठबंधन की ताकत के बूते तीसरी सीट भी अपने पक्ष में की जाए। कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता को इस सीट से राज्यसभा भेजने की तैयारी चल रही है, ताकि दोनों दलों के रिश्ते और मजबूत हों।
हालांकि, पार्टी ने कांग्रेस से संभावित मतभेद की स्थिति को भी नजरअंदाज नहीं किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए एक बैकअप प्लान भी तैयार किया गया है। सूत्रों का कहना है कि अगर कांग्रेस से सहमति नहीं बनती है, तो तीसरी सीट से नेशनल कांफ्रेंस के कोषाध्यक्ष और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के करीबी शम्मी ओबेरॉय को राज्यसभा भेजने पर गंभीर विचार चल रहा है। पार्टी के आंतरिक समीकरणों में ओबेरॉय को एक भरोसेमंद और प्रभावशाली चेहरा माना जा रहा है।
कांग्रेस सरकार में शामिल क्यों नहीं हुई
जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन में सहयोग देने के बावजूद कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि जब तक केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देती, तब तक उनके नेता किसी भी मंत्री पद को स्वीकार नहीं करेंगे। इसके बावजूद कांग्रेस बाहर से समर्थन देती रहेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का कैबिनेट से दूरी बनाकर रखना नेशनल कांफ्रेंस के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। इससे पार्टी को केंद्र सरकार के साथ रिश्तों को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलेगी और सियासी लचीलापन बरकरार रहेगा।
उमर अब्दुल्ला को नहीं थी जानकारी
हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर कांग्रेस ने एक बड़ा प्रदर्शन किया और केंद्र से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की। पार्टी का आरोप है कि मौजूदा व्यवस्था में मुख्यमंत्री तक को पुलिस रोक देती है और विकास से जुड़ी फाइलों को राज्यपाल मंजूरी नहीं देते, जिससे सरकार के लिए काम करना मुश्किल हो गया है।
इस प्रदर्शन को लेकर उमर अब्दुल्ला पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस की ओर से उन्हें इसकी जानकारी दी जाती, तो वे भी इसका समर्थन करते। उमर के इस बयान से यह साफ है कि दोनों दलों के बीच संवाद की कमी अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।