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रूस से तेल लेना बंद किया तो 11 अरब डॉलर का झटका: भारत को भारी पड़ेगा अमेरिकी दबाव मानना

रूस से तेल लेना बंद किया तो 11 अरब डॉलर का झटका: भारत को भारी पड़ेगा अमेरिकी दबाव मानना

अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव में अगर भारत रूस से सस्ते तेल की खरीद बंद कर देता है, तो हर साल 9 से 11 अरब डॉलर तक का अतिरिक्त भार देश पर पड़ सकता है। भारत ने 2022 के बाद रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना शुरू किया था, जिससे ऊर्जा लागत में भारी कमी आई। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की शर्तें मानना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए घाटे का सौदा हो सकता है।

नई दिल्ली: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, और इसकी ऊर्जा जरूरतों का 85% हिस्सा विदेशों से आता है। 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने रूस से तेल खरीद जारी रखी। इसका मुख्य कारण यह था कि रूस भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले सस्ते दाम पर कच्चा तेल दे रहा था।

युद्ध से पहले भारत का रूस से आयात बेहद मामूली था—महज 0.2%। लेकिन अब भारत अपनी कुल आपूर्ति का लगभग 35 से 40% हिस्सा रूस से ले रहा है। इससे भारत को विदेशी मुद्रा की बचत और महंगाई नियंत्रण में मदद मिली। भारतीय रिफाइनरियों ने इस सस्ते तेल का भरपूर लाभ उठाया और घरेलू बाजार में कीमतें भी काबू में रहीं।

अमेरिका और यूरोपीय देशों का दबाव, लेकिन भारत ने नहीं बदली नीति

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण 25% टैरिफ और व्यापारिक दंड तक की धमकी दी थी। वहीं यूरोपीय यूनियन ने जनवरी 2026 से रूस से रिफाइन्ड प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है। इन कदमों का लक्ष्य रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना है, लेकिन इसका असर भारत जैसे देशों पर भी पड़ेगा।

हालांकि, अब तक भारत ने अपनी रणनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत धीरे-धीरे रूस से तेल आयात में मामूली कटौती कर रहा है। जून 2024 में भारत ने 2.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल मंगवाया था, जो अब घटकर 1.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन रह गया है।

क्या अमेरिका की बात मानना होगा आर्थिक नुकसान का सौदा?

विशेषज्ञों की मानें तो अगर भारत अमेरिका की बात मानकर रूस से तेल खरीद बंद कर देता है, तो उसे हर साल 9 से 11 अरब डॉलर तक अधिक भुगतान करना पड़ सकता है। यदि वैश्विक तेल कीमतों में बढ़ोतरी होती है, तो यह राशि और भी ज्यादा हो सकती है। यह अनुमान इंटरनेशनल एनालिटिक्स फर्म केपलर ने अपनी रिपोर्ट में दिया है।

भारत सरकार की ओर से इस पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स और रॉयटर्स जैसी प्रमुख एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपनी मौजूदा नीति में फिलहाल बदलाव नहीं करने जा रहा। यानी, भारत फिलहाल सस्ते और भरोसेमंद तेल स्रोत को बनाए रखना चाहता है।

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