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सावन से कार्तिक तक क्यों रुक जाते हैं शुभ कार्य? चातुर्मास में छिपा है राज

सावन से कार्तिक तक क्यों रुक जाते हैं शुभ कार्य? चातुर्मास में छिपा है राज

हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी बीत चुकी है और इसके साथ ही चातुर्मास का शुभारंभ हो चुका है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और उनके स्थान पर सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं। चातुर्मास का यह चार महीनों का काल संयम, तप, साधना और व्रतों से भरा होता है।

चातुर्मास में क्यों नहीं होते शुभ कार्य

चातुर्मास के दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण जैसे शुभ कार्यों को टालने की परंपरा है। मान्यता है कि जब विष्णु निद्रा में होते हैं, तब मांगलिक कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं। साथ ही वर्षा ऋतु और मौसम परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह समय सजग रहने का होता है। जलवायु में बदलाव के कारण पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, ऐसे में संयम और सात्विक जीवनशैली को अपनाना श्रेयस्कर माना जाता है।

पहला महीना सावन, होता है शिव का विशेष पूजन

चातुर्मास का पहला महीना सावन होता है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। इस पूरे महीने में भक्त शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाकर शिव की पूजा करते हैं। सावन में हर सोमवार का विशेष महत्व होता है। 16 सोमवार का व्रत भी इसी महीने से शुरू होता है। महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से यह व्रत रखती हैं।

इस दौरान शिव सहस्त्रनाम का पाठ, रुद्राभिषेक और पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर उसकी पूजा करना भी विशेष फलदायी माना गया है। कई स्थानों पर कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें भक्त गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।

भाद्रपद माह, श्रीकृष्ण और गणेश की होती है उपासना

चातुर्मास का दूसरा महीना भाद्रपद है। इस माह में दो प्रमुख देवताओं की उपासना की जाती है  भगवान श्रीकृष्ण और श्रीगणेश। इस महीने में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। रात्रि को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है और मंदिरों में विशेष झांकी सजाई जाती है।

इसी महीने में गणेश चतुर्थी का पर्व भी आता है, जो पूरे दस दिनों तक मनाया जाता है। गणपति बप्पा की मूर्ति घरों और पंडालों में स्थापित की जाती है और प्रतिदिन उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। अनंत चतुर्दशी को उनका विसर्जन किया जाता है।

अश्विन माह में होती है मां दुर्गा की पूजा

अश्विन मास, जिसे आश्विन भी कहा जाता है, चातुर्मास का तीसरा महीना है। यह माह मां दुर्गा की उपासना के लिए जाना जाता है। शारदीय नवरात्रि इसी महीने में मनाई जाती है, जिसमें नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूजा होती है। भक्त उपवास रखते हैं और देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए भजन-कीर्तन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।

नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन, कलश स्थापना, गरबा और रामलीला जैसे आयोजनों की धूम होती है। दशहरा यानी विजयादशमी को रावण दहन के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व मनाया जाता है।

इन देवताओं की भी होती है विशेष पूजा

चातुर्मास में भगवान विष्णु की योगनिद्रा के चलते भक्त भगवान शिव की विशेष आराधना करते हैं, लेकिन इसके अलावा कुछ अन्य देवताओं की भी पूजा करने की परंपरा है। इन चार महीनों में श्रीराम, हनुमानजी, सूर्यदेव, वरुण देव और वामन भगवान की भी उपासना की जाती है।

इन महीनों में भागवत कथा का श्रवण, सत्संग में भाग लेना, व्रत-उपवास रखना और ब्रह्मचर्य का पालन करने को धार्मिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना गया है। साथ ही मंदिरों में दीपदान, कथा आयोजन और दान-पुण्य करने से भी पुण्य प्राप्त होता है।

कार्तिक माह, देवउठनी एकादशी से होते हैं शुभ कार्य शुरू

चातुर्मास का अंतिम और सबसे पुण्यदायक महीना होता है कार्तिक। इस महीने में धार्मिक आयोजनों की भरमार रहती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जिस दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि फिर से शुरू हो जाते हैं।

कार्तिक मास में दीपावली, गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, भाई दूज जैसे पर्व मनाए जाते हैं। इस महीने में तुलसी विवाह का भी महत्व है। कई लोग पूरे महीने कार्तिक स्नान करते हैं और तुलसी की पूजा करते हैं।

चातुर्मास में आध्यात्मिकता और अनुशासन पर जोर

चातुर्मास केवल धार्मिक अनुष्ठानों का समय नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम और साधना का विशेष काल माना जाता है। ऋषि-मुनियों ने वर्षा ऋतु में यात्रा बंद कर तप, ध्यान और स्वाध्याय को अपनाया, और यही परंपरा आज भी जीवित है।

इन चार महीनों का समय खुद से जुड़ने, आचरण को सुधारने और धार्मिकता की ओर लौटने का अवसर है। भक्तों के लिए यह अवसर है अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और अध्यात्म में मन लगाने का।

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