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शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट आज सुना सकता है ऐतिहासिक फैसला

शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट आज सुना सकता है ऐतिहासिक फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट आज मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने पर फैसला सुना सकता है। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद स्थल पर पहले मंदिर था और इसके समर्थन में ऐतिहासिक साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।

उत्तर प्रदेश: मथुरा में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद और श्रीकृष्ण जन्मभूमि के बीच वर्षों पुराने विवाद को लेकर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण निर्णय आ सकता है। यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से अहम माना जा रहा है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी इसकी गूंज दूर तक सुनाई दे सकती है।

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकल पीठ ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया जा सकता है। हिंदू पक्ष की ओर से प्रमुख याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने यह प्रार्थना पत्र दाखिल किया था कि शाही ईदगाह मस्जिद को एक ‘विवादित ढांचा’ घोषित किया जाए।

क्या है मामला?

मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि के निकट स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर यह विवाद वर्ष 2020 से विशेष रूप से गहरा हुआ है, जब कुछ संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दावा किया कि मस्जिद उस स्थान पर बनी है, जो कभी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान हुआ करता था।

महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि ऐतिहासिक प्रमाण और पुरानी पुस्तकों से स्पष्ट होता है कि वहां मूल रूप से एक मंदिर था जिसे मुगल काल में तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। सिंह ने मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित कर उस पर कानूनी रोक लगाने की मांग की है।

ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला

याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने दावे के समर्थन में कई ऐतिहासिक दस्तावेजों और लेखकों का हवाला दिया है। इसमें ‘मासिर-ए-आलमगिरी’ जैसे मुगलकालीन ग्रंथ, 19वीं सदी के कलेक्टर एफएस ग्राउस की रिपोर्ट और ब्रिटिश राज में मथुरा की भू-राजस्व संबंधी कागजात शामिल हैं।

उन्होंने कोर्ट में तर्क दिया कि:

  • खसरा खतौनी में शाही ईदगाह का नाम नहीं है।
  • नगर निगम में भी उसका कोई वैध रिकॉर्ड नहीं है।
  • बिजली कनेक्शन अवैध तरीके से उपयोग हो रहा है, जिस पर बिजली चोरी की शिकायत भी दर्ज है।
  • मस्जिद प्रबंध कमेटी न तो टैक्स भर रही है और न ही किसी सरकारी नियमों का पालन कर रही है।

इस आधार पर उन्होंने मांग की कि जब तक पूर्ण रूप से मस्जिद के वैध होने का कोई प्रमाण नहीं है, तब तक इसे विवादित संरचना घोषित किया जाए।

हिन्दू पक्ष का एकजुट समर्थन

इस पूरे प्रकरण में महेंद्र प्रताप सिंह के साथ कई अन्य हिन्दू संगठनों और व्यक्तियों ने भी समर्थन किया है। उन्होंने बहस के दौरान एकजुट होकर महेंद्र प्रताप सिंह की दलीलों को मजबूत किया और इसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़ी आस्था का मामला बताया।

सभी पक्षकारों ने इस बात पर जोर दिया कि यह मामला केवल एक धार्मिक स्थल का नहीं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की भावना और धार्मिक अधिकार से जुड़ा हुआ है।

शाही ईदगाह प्रबंधन की चुप्पी

दूसरी ओर, शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई ठोस दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे मस्जिद की कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। अदालत में उनके पक्ष से अब तक यह दावा किया गया है कि यह विवाद पहले ही 1968 के समझौते में सुलझ चुका है, जिसे अब दोबारा उठाया नहीं जा सकता।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने इस समझौते को अवैध बताते हुए उसे चुनौती दी है और कहा है कि उस समझौते में वास्तविक जन्मभूमि के अधिकार की रक्षा नहीं हुई थी।

कोर्ट की प्रक्रिया और आज की सुनवाई

5 मार्च 2025 को महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दाखिल प्रार्थना पत्र पर पिछले कुछ महीनों से लगातार बहस चल रही थी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्र ने इस पर निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज यानी 4 जुलाई 2025 को सुनाए जाने की संभावना है।

सूत्रों के अनुसार कोर्ट की कार्यसूची में यह मामला शीर्ष पर है, और सुरक्षा कारणों के मद्देनजर प्रयागराज व मथुरा में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है।

फैसला और संभावित प्रभाव

अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करता है, तो यह निर्णय न केवल मथुरा बल्कि देशभर में कानूनी, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर एक नई बहस को जन्म दे सकता है।

ऐसे मामलों में अदालतें केवल कागजी प्रमाणों के आधार पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक संदर्भ, धार्मिक भावनाओं और कानून की संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर फैसला सुनाती हैं।

इससे पहले अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में भी उच्चतम न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को गहराई से सुनकर ऐतिहासिक निर्णय दिया था। मथुरा का यह मामला भी अब उसी दिशा में आगे बढ़ता नजर आ रहा है।

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