मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजनीति में कांग्रेस पार्टी की 2020 की सत्ता खोने की घटना आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है। लगभग पांच साल बाद भी इस मुद्दे पर कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
MP Politics: मध्य प्रदेश में पिछले 22 साल का राजनीतिक परिदृश्य अगर 15 महीनों को छोड़ दिया जाए तो भाजपा का वर्चस्व लगातार बना रहा है। स्थिति ऐसी रही कि 2018 में जब कांग्रेस ने लंबे समय बाद राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा किया, तब भी उसकी और भाजपा की सीटों में केवल मामूली अंतर था। इस न्यूनतम अंतर की वजह से किसी एक बड़े नेता के पार्टी छोड़ने मात्र से पूरी सरकार पर संकट आ सकता था। और यही हुआ 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंकते ही, कांग्रेस की सरकार महज एक साल से कुछ अधिक समय में ही सत्ता से बाहर हो गई।
कांग्रेस की 2018 में वापसी और 2020 में पतन
2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने लंबे समय बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं और भाजपा को 109 सीटें। यह अंतर इतना कम था कि किसी बड़े नेता का असंतोष सरकार के भविष्य को खतरे में डाल सकता था। हुआ भी यही 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराज़गी ने कांग्रेस की नींव हिला दी और सरकार गिर गई।
हाल ही में एक इंटरव्यू में दिग्विजय सिंह ने कहा कि सिंधिया कांग्रेस इसलिए छोड़कर भाजपा में गए क्योंकि उनकी दी हुई “विशलिस्ट” पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ध्यान नहीं दिया। दिग्विजय के मुताबिक, 2020 की शुरुआत में कमलनाथ और सिंधिया के बीच व्यक्तिगत मतभेद बढ़ गए थे। हालात संभालने के लिए दिग्विजय ने एक उद्योगपति के घर बैठक आयोजित की। बैठक में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के विकास कार्यों से जुड़ी मांगों की लिस्ट कमलनाथ को दी गई, जिस पर उन्होंने दस्तखत भी किए।
दिग्विजय का आरोप है कि इस लिस्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और नतीजतन सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने यह भी कहा कि “प्रचारित यह किया गया कि मेरी और सिंधिया की लड़ाई की वजह से सरकार गिरी, जबकि सच यह है कि मैंने पहले ही चेतावनी दी थी कि सरकार संकट में है।
दिग्विजय के आरोपों पर कमलनाथ का पलटवार
दिग्विजय के आरोपों के बाद कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर जवाब दिया। उन्होंने कहा: पुरानी बातें उखाड़ने से कोई फायदा नहीं। उन्होंने तंज कसते हुए लिखा कि सिंधिया व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण कांग्रेस छोड़कर गए। कमलनाथ ने यह भी आरोप लगाया कि सिंधिया को यह गलतफहमी थी कि “सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं,” और इसी ग़लत धारणा में उन्होंने विधायकों को तोड़कर सरकार गिरा दी।
सिंधिया का रुख
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस विवाद को पुराना मुद्दा बताते हुए ज्यादा टिप्पणी करने से बचा। गुना में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा: मैं पुरानी चीज़ों पर बयानबाजी नहीं करूंगा। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दोनों वरिष्ठ नेताओं की बयानबाजी को हल्के में लिया। उन्होंने कहा: कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच आपसी प्रेम और समझ है। वे जानते हैं कि लोगों को चर्चा के लिए मुद्दे कैसे दिए जाएं।
कांग्रेस के इस आंतरिक विवाद पर भाजपा ने कड़ा प्रहार किया। मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि कांग्रेस गुटों में बंटी हुई है और स्थिति “दिन-प्रतिदिन बद से बदतर” होती जा रही है। रामेश्वर शर्मा ने तंज कसते हुए कहा, “कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कल भी लड़ रहे थे और आज भी लड़ रहे हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।
भाजपा प्रवक्ता आशीष अग्रवाल ने लिखा कि कमलनाथ का बयान साबित करता है कि सरकार वास्तव में “मिस्टर बंटाधार” चला रहे थे। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उस दौर में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का बोलबाला था, जबकि भाजपा ने स्थिर और विकासोन्मुख सरकार दी।
2020 में कैसे गिरी कांग्रेस सरकार?
मार्च 2020 में होली के आस-पास मध्य प्रदेश की राजनीति में नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला।
- कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया।
- इससे कांग्रेस की संख्या 114 से घटकर 92 पर आ गई।
- इस्तीफों के बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 208 रह गई और बहुमत का आंकड़ा 105 हो गया।
- भाजपा के पास पहले से 107 विधायक थे, जिससे वह बहुमत में आ गई।
- इसके साथ ही कमलनाथ सरकार गिर गई और भाजपा की सत्ता में वापसी हुई।
यह विवाद सिर्फ कांग्रेस की आंतरिक कलह का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में व्यक्तित्व टकराव कितना निर्णायक हो सकता है। कांग्रेस की 15 महीने की सरकार सिर्फ इसलिए गिर गई क्योंकि दो बड़े नेताओं के बीच विश्वास की कमी थी।