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संस्कृत विद्वान रामभद्राचार्य और कवि-गीतकार गुलज़ार को मिला 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

भारतीय साहित्य जगत को एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने का अवसर मिला जब दो विलक्षण रचनाकारों जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध कवि-गीतकार गुलज़ार को वर्ष 2023 के लिए 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दो महान हस्तियों को प्रदान किया — संस्कृत के विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य और मशहूर कवि-गीतकार गुलजार को। यह पुरस्कार भारतीय साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है, और इस बार दोनों विभूतियों को उनके विशिष्ट कार्यों के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया।

गुलजार, जिनका असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है, हिंदी सिनेमा और साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए जाने जाते हैं। वे न सिर्फ एक संवेदनशील गीतकार और निर्देशक हैं, बल्कि उन्हें इस युग के श्रेष्ठ उर्दू शायरों में भी गिना जाता है। हालांकि, गुलजार स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण पुरस्कार समारोह में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हो सके।

संस्कृत के प्रहरी: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

75 वर्षीय रामभद्राचार्य न केवल एक महान संस्कृत विद्वान हैं, बल्कि वे एक आध्यात्मिक आचार्य, शिक्षाविद और समाजसेवी भी हैं। चित्रकूट में स्थित तुलसी पीठ के संस्थापक रामभद्राचार्य ने जीवन में दृष्टिहीनता के बावजूद अद्भुत साहित्यिक ऊंचाइयों को छुआ है। उन्होंने अब तक संस्कृत, हिंदी, अवधी और कई अन्य भाषाओं में 240 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। इनमें चार महाकाव्य, अष्टाध्यायी की टीका, ब्रह्मसूत्र, भगवद गीता और उपनिषदों पर उनकी गूढ़ व्याख्याएं शामिल हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में उनके बहुआयामी योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा, रामभद्राचार्य जी ने दिव्य दृष्टि से जो साधना की है, वह भारतीय साहित्य और अध्यात्म की अमूल्य धरोहर है। वे एक सहज कवि, गहन दार्शनिक और शास्त्रों के अद्वितीय व्याख्याकार हैं।

रामभद्राचार्य के प्रशस्ति पत्र में उल्लेख है कि उन्होंने मात्र पांच वर्ष की उम्र में भगवद गीता का अध्ययन प्रारंभ कर दिया था और सात वर्ष की आयु में रामचरितमानस का पाठ आरंभ किया। उनकी गहन भाषाई समझ और असाधारण स्मरणशक्ति ने उन्हें विश्वविद्यालय स्तर पर स्वर्ण पदक दिलाया। उन्हें पूर्व में साहित्य अकादमी पुरस्कार (2005) और पद्म विभूषण (2015) से भी सम्मानित किया जा चुका है।

शब्दों के सौदागर: गुलज़ार

उर्दू और हिंदी साहित्य में गुलज़ार का नाम भावनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्ति के पर्याय के रूप में लिया जाता है। 90 वर्षीय सम्पूर्ण सिंह कालरा, जिन्हें दुनिया गुलज़ार के नाम से जानती है, ने फिल्मी गीतों, कहानियों, पटकथाओं और कविताओं के माध्यम से जनमानस को गहराई से प्रभावित किया है। हालांकि वे ‘स्वास्थ्य कारणों’ से समारोह में उपस्थित नहीं हो सके, परंतु राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए उनके लेखन की सराहना की।

उन्होंने कहा, गुलज़ार साहब ने साहित्य में कोमलता और संवेदना को जीवित रखा है। उन्होंने एक ऐसी शैली विकसित की है, जिसने नई पीढ़ी को भी शब्दों की ताक़त से जोड़ा है।

गुलज़ार के प्रशस्तिपत्र में उल्लेख है कि वे उर्दू शायरी में एक नई लय और दृष्टिकोण लेकर आए। उनके गीतों ‘मैंने तेरे लिए’, ‘दिल ढूंढता है’, और ‘छैंया छैंया’ ने भारतीय सिनेमा को भावनात्मक गहराई दी। उनकी कृति ‘रावी पार’ और अन्य साहित्यिक रचनाएं उन्हें एक संजीदा कथाकार भी सिद्ध करती हैं। उन्हें सात बार राष्ट्रीय पुरस्कार, 21 बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, ऑस्कर और ग्रैमी जैसे अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।

ज्ञानपीठ: साहित्य का सर्वोच्च सम्मान

ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। इस पुरस्कार के तहत प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीकात्मक वाग्देवी सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और नकद राशि प्रदान की जाती है। इस वर्ष यह पुरस्कार संस्कृत और उर्दू/हिंदी साहित्य के दो अलग-अलग परंतु समान रूप से प्रभावशाली स्तंभों को प्रदान किया गया।

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