सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से कहा है कि वह अपने न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति माता-पिता की तरह सजग रहे। महिला एडीजे द्वारा मांगे गए चाइल्ड केयर अवकाश को खारिज करने और दुमका में तबादले पर सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी है। कोर्ट ने उच्च न्यायालय को हजारीबाग या बोकारो में स्थानांतरण के विकल्प दिए।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह अपने न्यायिक अधिकारियों के लिए माता-पिता की तरह कार्य करे और उनकी समस्याओं का ध्यान रखे। मामला महिला एडीजे का है, जिनकी बाल देखभाल अवकाश की अर्जी खारिज कर दुमका में तबादला किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला अधिकारी को उनके बेटे की 12वीं कक्षा की परीक्षाओं तक हजारीबाग में रहने दें या बोकारो में स्थानांतरित करें। इस फैसले से न्यायिक अधिकारियों के लिए संवेदनशील प्रशासनिक रवैया सुनिश्चित होगा।
बाल अवकाश के लिए महिला एडीजे ने दायर की याचिका
महिला एडीजे ने जून से दिसंबर तक छह महीने के बाल देखभाल अवकाश के लिए आवेदन किया था। उन्हें नियमों के तहत 730 दिन तक छुट्टी लेने का अधिकार है, लेकिन प्रारंभ में हाईकोर्ट ने उनकी पूरी छुट्टी को अस्वीकार कर दिया। बाद में उन्हें केवल तीन महीने की छुट्टी मिली।
अवकाश न मिलने और दुमका में तबादले के कारण उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका तर्क था कि दुमका में अच्छे सीबीएसई स्कूल नहीं हैं, जिससे उनके बेटे की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को दिए सख्त निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय को न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहना होगा। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी को या तो मार्च/अप्रैल 2026 तक हजारीबाग में रखा जाए या बोकारो में स्थानांतरित किया जाए।
कोर्ट ने उच्च न्यायालय को दो सप्ताह का समय दिया है ताकि यह निर्देश पूरी तरह लागू किया जा सके। इस फैसले से न्यायिक अधिकारियों के बाल देखभाल अवकाश और उनके कार्यस्थल की सुरक्षा पर एक नया मानक स्थापित होगा।
उच्च न्यायालयों को न्यायिक अधिकारियों की देखभाल का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को याद दिलाया कि न्यायिक अधिकारियों की देखभाल करना उनका नैतिक कर्तव्य है। अदालतों को अधिकारियों की व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को समझना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों को सत्ता या अहंकार का विषय नहीं बनाना चाहिए। यह आदेश न केवल झारखंड हाईकोर्ट के लिए बल्कि पूरे देश के न्यायिक प्रणाली के लिए एक मिसाल माना जा रहा है।