प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र में नहीं जाएंगे। उनकी जगह विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। यह फैसला अमेरिका द्वारा रूस से तेल खरीद पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ के बाद लिया गया है।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में शामिल न होने का फैसला किया है। उनकी जगह विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और 27 सितंबर की सुबह महासभा को संबोधित करेंगे। यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद गहराता जा रहा है।
रूस से तेल खरीदने पर भारत को 25% अतिरिक्त टैरिफ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर रूस से तेल आयात करने के लिए 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। इस फैसले के बाद भारत पर कुल टैरिफ 50 प्रतिशत तक पहुंच गया। ट्रंप का आरोप है कि भारत रूसी तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से “वॉर मशीन” को फ्यूल कर रहा है।
भारत सरकार ने इस फैसले को जल्दबाज़ी और अव्यावहारिक बताया है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और अपने राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता। मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि भारत वैश्विक कानूनों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों का पालन करता है।
भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव
फरवरी 2025 में पीएम मोदी व्हाइट हाउस गए थे और राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की थी। उस समय दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत शुरू करने का ऐलान किया था। लेकिन अब टैरिफ विवाद ने रिश्तों में नई खाई पैदा कर दी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह टकराव सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है। पीएम मोदी का UNGA में शामिल न होना इसी तनाव की झलक माना जा रहा है।
UNGA सत्र में भारत-पाक आमने-सामने
संयुक्त राष्ट्र महासभा का यह सत्र हर साल सितंबर में होता है और इसे साल का सबसे व्यस्त कूटनीतिक मंच माना जाता है। इस बार का सत्र खास तौर पर इज़रायल-हमास संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित रहेगा।
भारत 27 सितंबर को अपना संबोधन देगा, जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का दृष्टिकोण दुनिया के सामने रखेंगे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी इस सत्र में शामिल होंगे, जिससे भारत-पाकिस्तान को लेकर भी चर्चाएं तेज़ हो सकती हैं।
टैरिफ विवाद से दोनों देशों को आर्थिक नुकसान
भारत और अमेरिका दोनों ही लोकतांत्रिक और बड़े आर्थिक साझेदार हैं। ऐसे में टैरिफ विवाद का लंबा खिंचना दोनों देशों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। भारत को एक तरफ ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से तेल खरीदना ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ रिश्ते बिगाड़ना उसके हित में नहीं है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों देश संवाद और बातचीत के जरिए इस विवाद को सुलझा पाते हैं या फिर तनाव और बढ़ता है।