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टाटा ट्रस्ट विवाद: नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन ने केंद्रीय मंत्रियों से की बैठक

टाटा ट्रस्ट विवाद: नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन ने केंद्रीय मंत्रियों से की बैठक

टाटा ट्रस्ट और टाटा संस में बोर्ड पद को लेकर विवाद बढ़ गया है। नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन ने गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की। विवाद से 180 अरब डॉलर से ज्यादा के टाटा ग्रुप के संचालन पर असर पड़ने का खतरा है, जिसमें ट्रस्टी और प्रमोटर गुटों के बीच टकराव है।

Tata Group: टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी और टाटा संस के अधिकारियों के बीच पद और बोर्ड संचालन को लेकर विवाद गहराया है। इस बीच, नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की। यह विवाद 180 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के टाटा ग्रुप के कामकाज पर असर डाल सकता है, क्योंकि ट्रस्ट के दो गुटों में टाटा संस के बोर्ड में पद और नियंत्रण को लेकर टकराव जारी है।

बैठक में कौन-कौन शामिल थे

मीटिंग में नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन के साथ टाटा ट्रस्ट के वाइस प्रेसिडेंट वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा भी शामिल हुए। बैठक गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर हुई और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इसमें भाग लिया। सूत्रों के अनुसार, यह बैठक विवाद का समाधान खोजने और ग्रुप के संचालन को सुचारू बनाए रखने के लिए आयोजित की गई थी।

विवाद की जड़ और ग्रुप की स्थिति

टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी के बीच मतभेद लंबे समय से चल रहे हैं। एक गुट नोएल टाटा के समर्थन में है, जिन्हें रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया था। वहीं, दूसरे गुट का नेतृत्व मेहली मिस्त्री कर रहे हैं, जिनका संबंध शापूरजी पलोनजी परिवार से है। शापूरजी पलोनजी परिवार के पास टाटा संस में लगभग 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

विवाद का मुख्य बिंदु टाटा संस के बोर्ड में पद और निर्णय लेने की शक्ति है। टाटा ग्रुप में लगभग 30 लिस्टेड कंपनियां और कुल 400 कंपनियां शामिल हैं। टाटा ट्रस्ट, टाटा संस और वेणु श्रीनिवासन ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है। मेहली मिस्त्री की ओर से भी कोई आधिकारिक बयान अभी नहीं आया।

टाटा ग्रुप का महत्व

टाटा ग्रुप भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समूह नमक से लेकर सेमीकंडक्टर तक के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत है। टाटा संस ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है और इसमें लगभग 66 प्रतिशत हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट के पास है। ग्रुप की वैल्यू लगभग 180 अरब डॉलर बताई जा रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रस्ट और बोर्ड के बीच इस तरह के विवाद का असर सिर्फ टाटा ग्रुप तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भारतीय शेयर बाजार और देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ सकता है। बोर्ड में निर्णय लेने की प्रक्रिया और नेतृत्व का असमंजस निवेशकों के लिए अनिश्चितता पैदा कर सकता है।

बोर्ड विवाद और कानूनी पहलू

सूत्रों के अनुसार, विवाद का केंद्र टाटा संस के बोर्ड में पद और महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय लेने के अधिकार से जुड़ा है। मेहली मिस्त्री को कथित तौर पर लगता है कि उन्हें महत्वपूर्ण मामलों से दूर रखा गया है। वहीं नोएल टाटा और उनके समर्थक गुट का तर्क है कि बोर्ड की स्थिरता और ग्रुप के दीर्घकालिक हित के लिए नेतृत्व का केंद्रीकरण जरूरी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस विवाद का हल ग्रुप की प्रतिष्ठा और भारतीय निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए जरूरी है। सरकारी अधिकारियों से बैठक का मकसद भी इसी दिशा में कदम उठाना था।

सरकार की भूमिका

सरकार के सामने अब यह बड़ा सवाल है कि क्या किसी एक व्यक्ति को टाटा ग्रुप के नियंत्रण का अधिकार देना उचित होगा। गृह मंत्री और वित्त मंत्री की बैठक इसी दिशा में ट्रस्ट और बोर्ड के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है। यह बैठक ग्रुप के संचालन को सुचारू रखने और निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए अहम मानी जा रही है।

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