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UNHRC में भारत का पाकिस्तान को कटाक्ष, मानवाधिकार उल्लंघन और पाखंड का लगाया आरोप

UNHRC में भारत का पाकिस्तान को कटाक्ष, मानवाधिकार उल्लंघन और पाखंड का लगाया आरोप

भारत ने UNHRC में पाकिस्तान की आलोचना की और कहा कि उसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और भेदभाव पर ध्यान देना चाहिए। भारत ने अपने मानवाधिकार प्रयासों को भी वैश्विक मंच पर रेखांकित किया।

UNHRC Report: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के 60वें सत्र में भारत ने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की। भारत ने कहा कि पाकिस्तान को अपने देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न और व्यवस्थित भेदभाव पर ध्यान देना चाहिए। जिनेवा स्थित भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर के.एस. मोहम्मद हुसैन ने कहा कि सबसे खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देश को दूसरों को उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।

पाकिस्तान पर अप्रत्यक्ष हमला

के.एस. मोहम्मद हुसैन ने बिना किसी देश का नाम लिए कहा कि भारत के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाने की कोशिशें पाकिस्तान के पाखंड को उजागर करती हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपने समाज में व्याप्त राज्य-प्रायोजित उत्पीड़न और धार्मिक तथा जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को देखना चाहिए। हुसैन का यह बयान स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की ओर इशारा था, क्योंकि उसी मंच पर पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दा उठाया।

भारत के प्रयासों का विवरण

हुसैन ने बताया कि भारत लगातार अपने नागरिकों के मानवाधिकार सुनिश्चित करने और सतत विकास को साकार करने के लिए प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि वे मानवाधिकारों के संवर्धन और सुरक्षा के लिए संयुक्त रूप से काम करें।

वी.डी.पी.ए. और मानवाधिकार

के.एस. मोहम्मद हुसैन ने वी.डी.पी.ए. (वियना घोषणा और कार्ययोजना) का महत्व भी बताया। वी.डी.पी.ए. 1993 में विश्व मानवाधिकार सम्मेलन के बाद अपनाई गई थी। इस दस्तावेज़ ने मानवाधिकारों के सार्वभौमिक संरक्षण और संवर्धन के लिए नींव को और मजबूत किया। भारत ने इसे याद दिलाते हुए कहा कि सभी देशों को इसके आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।

वैश्विक मंच पर भारत का रुख

जिनेवा में भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। भारत ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों का दुरुपयोग करके मनगढ़ंत आरोप लगाने की कोशिशें किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकतीं। इसके बजाय हर देश को अपने भीतर व्याप्त भेदभाव और उत्पीड़न को समाप्त करने पर ध्यान देना चाहिए।

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