उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संगठन सृजन धीमी गति से चल रहा है। मंडल स्तर पर पदाधिकारी 90% नियुक्त, कार्यकारिणी अधूरी। संगठन की देरी पंचायत चुनाव की तैयारियों और पार्टी की सक्रियता पर असर डाल रही है।
UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस लंबे समय से अपने खोए जनाधार को तलाशने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने पिछले साल दिसंबर में प्रदेश की सभी कमेटियों को भंग कर दिया था ताकि निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटाकर नए चेहरों को मौका दिया जा सके। जनवरी से संगठन के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू भी हुई लेकिन इसकी रफ्तार बेहद धीमी रही। यही कारण है कि जिलों और शहरों में कांग्रेस की गतिविधियां अब भी सुस्त हैं।
संगठन का अधूरा पुनर्गठन
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, मंडल स्तर पर पदाधिकारियों का चयन करीब 90 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है। अब तक तीन लाख से ज्यादा पदाधिकारी नियुक्त किए जा चुके हैं। लेकिन प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा अभी तक नहीं हुई है। पार्टी नेताओं का कहना है कि संगठन सृजन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही कार्यकारिणी की घोषणा की जाएगी। इस देरी का सीधा असर पंचायत चुनाव की तैयारियों पर पड़ने वाला है।
कार्ययोजना और समयसीमा का संकट
प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने संगठन सृजन के लिए 100 दिनों की कार्ययोजना बनाई थी। इसमें 15 अगस्त तक बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन समय पर काम पूरा नहीं हो सका। इसके बाद तारीख 30 अगस्त तक बढ़ाई गई और अब प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कह रहे हैं कि सितंबर के अंत तक संगठन का काम पूरा कर लिया जाएगा। यह लगातार खिसकती समयसीमा पार्टी की गंभीरता पर सवाल खड़े कर रही है।
फ्रंटल संगठन और वाररूम की स्थिति
कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों का विस्तार भी अटका हुआ है। वाररूम प्रभारी संजय दीक्षित के अनुसार, मंडल स्तर पर पदाधिकारियों की नियुक्ति लगभग पूरी हो चुकी है। 133 जिला और शहर अध्यक्षों को बीएलए-1 बनाया गया है। उनके नेतृत्व में बीएलए-2 की नियुक्ति का काम जारी है। हालांकि, इतनी बड़ी नियुक्तियों के बाद भी पार्टी जिलों और ब्लॉकों में सक्रियता नहीं दिखा पा रही है।
आंतरिक खींचतान बनी बड़ी रुकावट
जिला और शहर अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद कांग्रेस में विरोध के स्वर भी तेज हुए। कई नामों को लेकर आपसी खींचतान सामने आई। यही वजह है कि प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा टलती रही। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि जब तक यह आपसी असहमति खत्म नहीं होगी, तब तक पार्टी संगठनात्मक मजबूती हासिल नहीं कर पाएगी।
पंचायत चुनाव पर पड़ने वाला असर
कांग्रेस की यह धीमी रफ्तार सीधे तौर पर पंचायत चुनाव पर असर डाल सकती है। ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस पहले ही कमजोर मानी जाती है और संगठनात्मक स्तर पर मजबूती न होने से उसकी स्थिति और कमजोर हो सकती है। पार्टी नेताओं का कहना है कि अगर सितंबर के अंत तक भी संगठन सृजन पूरा नहीं हुआ तो कांग्रेस को पंचायत चुनावों में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में कांग्रेस के लिए संगठन को मजबूत करना आसान काम नहीं है। तीन लाख से ज्यादा पदाधिकारियों की नियुक्ति एक उपलब्धि जरूर है, लेकिन जब तक यह ढांचा जमीनी स्तर पर सक्रिय नहीं होता, तब तक इसका फायदा चुनावों में नहीं मिलेगा। आंतरिक खींचतान और बार-बार टलती समयसीमा पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।