Bhadrapada Amavasya 2024: कब है भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या? जानें सही तारीख और पूजा की सम्पूर्ण विधि

Bhadrapada Amavasya 2024: कब है भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या? जानें सही तारीख और पूजा की सम्पूर्ण विधि
Last Updated: 29 अगस्त 2024

भाद्रपद अमावस्या के दिन किसी भी नए या शुभ कार्य को करने से बचना चाहिए। हालांकि, यह समय धार्मिक गतिविधियों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह मान्यता है कि इस विशेष दिन पर पवित्र नदियों में स्नान करना, शनि दोष और गृह दोष का निवारण करना, पितरों का तर्पण करना और दान करना अत्यंत लाभकारी होता है। तो चलिए, इस दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानते हैं।

Amavasya 2024: अमावस्या का हिंदुओं के बीच अत्यधिक धार्मिक महत्व है। इस दिन लोग कई प्रकार की धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं। इस बार भाद्रपद अमावस्या को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मान्यता है कि इस दिन पितरों की पूजा करने और गंगा में स्नान करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। हालांकि, इस दिन की तिथि और समय को लेकर लोगों में कई शंकाएं हैं। आइए, हम इसकी सही तिथि के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

कब है भाद्रपद अमावस्या ?

आपको बता दें कि हिंदू भाद्रपद अमावस्या तिथि 2 सितंबर, 2024 को सुबह 05:21 बजे प्रारंभ होगी। इसका समापन 3 सितंबर को सुबह 07:24 बजे होगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या के दिन स्नान और दान का महत्व विशेष रूप से उदयातिथि में माना जाता है। इसलिए, भाद्रपद अमावस्या का पर्व 2 सितंबर को मनाया जाएगा।

सोमवती अमावस्या पर स्नान-दान का शुभ समय सुबह 04 बजकर 38 मिनट से लेकर 05 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इस विशेष दिन पर पितरों का श्राद्ध कर्म दोपहर 12 बजे के बाद, सूर्यास्त से पूर्व संपन्न किया जाएगा।

इस व्रत की पूजा- विधि

भाद्रपद अमावस्या के दौरान पूजा-पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन किया जा सकता है:

पितृ पूजा (पितृ तर्पण): इस दिन पितरों की पूजा करने का विशेष महत्व है। पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृ तर्पण किया जाता है। इस प्रक्रिया में तर्पण सामग्री जैसे तिल, जल, और पुष्प का उपयोग किया जाता है।

गंगा स्नान: यदि संभव हो, तो गंगा नदी या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। यह केवल धार्मिक मान्यता के अनुसार पवित्रता को प्राप्त करता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।

धार्मिक अनुष्ठान और पूजा: घर पर पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां भगवान शिव, माता पार्वती, या विशेष रूप से पितरों की पूजा के लिए स्थापित किया जा सकता है। पूजा में दीप जलाना, धूप और पुष्प अर्पित करना, और मंत्र जाप करना शामिल होता है।

व्रत और उपवासी: इस दिन व्रत रखने और उपवासी रहने की परंपरा भी है। व्रत में विशेष रूप से तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं।

दान और सेवा: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने की भी परंपरा है। दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आत्मिक संतोष मिलता है।

 

 

 

 

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