Bateshwar History: क्या हैं बटेश्वर गांव का इतिहास? 200 मंदिर आखिर कैसे हुए नष्ट, जानें इसकी पूरी कहानी

Bateshwar History: क्या हैं बटेश्वर गांव का इतिहास? 200 मंदिर आखिर कैसे हुए नष्ट, जानें इसकी पूरी कहानी
Last Updated: 12 सितंबर 2024

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के निकट कई विशाल और भव्य मंदिर स्थापित हैं। इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने 9वीं शताब्दी में किया था। हालांकि, सैकड़ों वर्षों तक ये मंदिर घने जंगलों में छिपे रहे। चंबल क्षेत्र में डाकुओं के आतंक के कारण भी लोग इन तक नहीं पहुंच सके थे। लेकिन आज, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप, ये मंदिर एक बार फिर से अपनी पुरानी महिमा में लौट आए हैं।

Bateshwar: मध्य प्रदेश का मुरैना जिला चंबल संभाग का हिस्सा है। यही चंबल, जहां कभी डकैतों का आतंक था, जिनकी कहानियाँ पूरे देश में मशहूर हैं और जिन पर बॉलीवुड में कई फिल्में भी बन चुकी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस क्षेत्र में कभी एक से बढ़कर एक सुंदर मंदिर भी हुआ करते थे? समय के चक्र में नष्ट होने के बाद भी, इन मंदिरों की भव्यता आज भी आपको आकर्षित कर सकती है। उन मंदिरों के साथ ऐसा क्या हुआ होगा कि वे भुला दिए गए और सैकड़ों वर्षों तक उपेक्षित रहे?

 200 मंदिरों का इतिहास 

बटेश्वर के मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें इन राजाओं ने अपनी कला और संस्कृति का परिचय देने के लिए स्थापित किया था। यहां बलुआ पत्थर से निर्मित लगभग 200 मंदिर स्थित हैं, जो उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की प्रारंभिक गुर्जर-प्रतिहार शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इन मंदिरों का आकार मुख्यतः छोटा है और ये लगभग 25 एकड़ के क्षेत्र में फैले हुए हैं। ये शिव, विष्णु और शक्ति को समर्पित हैं, जो भारतीय धार्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बटेश्वर के मंदिरों तक पहुंचने के लिए, आपको या तो ग्वालियर जाना होगा, जो इन मंदिरों से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है, या फिर मुरैना शहर से होकर जाना होगा, जहां से ये मंदिर करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित हैं।

हिंदुस्तान की अनोखी जगह हैं बटेश्वर

यहां 200 मंदिर हैं। हिंदुस्तान में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां 200 मंदिर हों। लोग यह भी कहते हैं कि यहां विभिन्न प्रकार की वास्तुकला देखने को मिलती है। कुछ मंदिर शिखर वाले हैं, तो कुछ मंडपीय आकार के हैं। 9वीं से 12वीं शताब्दी के 300 साल के समय में इन मंदिरों का निर्माण क्रमिक रूप से किया गया। खजुराहो के मंदिरों के निर्माण से 200 से 300 साल पूर्व ये मंदिर बनाए गए थे।

गजनी के आक्रमण से गुर्जर राजवंश हुआ नष्ट

प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के प्रमुख एसके द्विवेदी ने बताया कि बटेश्वर मंदिर 8वीं और 10वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। 1008 ईस्वी में महमूद गजनी ने उत्तर भारत पर आक्रमण किया और कन्नौज पर कब्जा कर लिया। इसके परिणामस्वरूप गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का पतन हो गया। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके बाद किसी भी राजवंश ने इस क्षेत्र को आर्थिक और सांस्कृतिक संरक्षण नहीं दिया।

बताया जाता है कि इन कारणों से इस स्थान पर सांस्कृतिक गतिविधियां समाप्त हो गईं। वहीं, केके मोहम्मद का मानना है कि 12वीं और 13वीं शताब्दी में हिंदुस्तान के कई हिस्सों में आए भूकंपों के कारण कई स्मारक नष्ट हो गए। संभव है कि इसी दौरान बटेश्वर और मितावली के भी कई हिस्से गिर पड़े, और इसके बाद इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं रहा।

हालांकि, आज जो मंदिरों का स्वरूप दिखाई दे रहा है, वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारियों की मेहनत का परिणाम है। विशेष रूप से केके मोहम्मद का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने 2005 में शुरू की गई एक परियोजना के अंतर्गत इन खंडहरों के पत्थरों को फिर से जोड़कर मंदिर का पुनर्निर्माण किया।

डकैत निर्भय ने मंदिरों के पुनर्निर्माण में दिया था योगदान

केके मोहम्मद ने बताया कि जब हमने यहाँ काम करना शुरू किया, तब एक आदमी डोडामल मंदिर के अंदर बैठकर बीड़ी पी रहा था। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया।मैं उसके पास जाकर बोला, "क्या आपको मंदिर के भीतर बीड़ी पीने में कोई शर्म नहीं आती?" वह मुझे देख रहा था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। तभी मेरे साथ मौजूद मध्यस्थ ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "सर, आप उससे कुछ मत कहिए।"

इसी दौरान उसके चेहरे पर एक रोशनी पड़ी, और मुझे समझ में गया कि वह डकैत निर्भय सिंह गुर्जर था। मैं उनके पैर पर बैठ गया। फिर मैंने निर्भय सिंह गुर्जर से कहा कि "सर, जितने भी मंदिर हैं, वे गुर्जर-प्रतिहार राजवंश द्वारा बनवाए गए थे। आप भी उनके परिवार से संबंध रखते हैं, क्योंकि आपका नाम भी गुर्जर है।"इसके बाद हमारी उनसे काफी समय तक चर्चा होती रही।

मितावली में स्थित योगिनी मंदिर

मितावली में स्थित 64 योगिनी का मंदिर एक अद्वितीय आर्किटेक्चर का उदाहरण है, जिसे कहीं और नहीं देखा जा सकता। केके मोहम्मद ने बताया कि इस मंदिर में तंत्र और मंत्र का उपयोग किया गया है। यहाँ पर वह सब गतिविधियाँ होती हैं जिन्हें सामान्य समाज स्वीकार नहीं करता। लोग यहाँ आकर इस अनोखे अनुभव का आनंद लेते हैं। भारत में इस प्रकार के अन्य मंदिर भी हैं, लेकिन मितावली का यह मंदिर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

64 कमरों में मिली शिवलिंग

गुर्जर प्रतिहार वंश के 10वें सम्राट, देवपाल गुर्जर ने 9वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण लाल-भूरे बलुआ पत्थरों से करावाया था। इस मंदिर में 101 खंभे हैं और 64 कमरों में एक-एक शिवलिंग मौजूद है। परिसर के केंद्र में एक विशाल गोलाकार शिव मंदिर भी स्थित है।

ASI ने प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक का दिया दर्जा

भारत के पुराने संसद भवन की तरह, इस मंदिर में 101 खंभे हैं। माना जाता है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस ने भारत के संसद भवन की डिज़ाइन तैयार करते समय इसी चैसठ योगिनी मंदिर से प्रेरणा ली थी। एएसआई ने इस मंदिर को एक प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता प्रदान की है।

कैसे पहुंचे यहां?

मुरैना और भिंड जिले में रेलवे स्टेशन स्थित हैं। ग्वालियर रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी के माध्यम से यहां पहुंचना संभव है। सभी जिलों के बीच बस सेवा के माध्यम से अच्छी कनेक्टिविटी उपलब्ध है। पर्यटक अपने निजी वाहन का उपयोग करके या किराए पर वाहन लेकर आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।

 

 

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