Badrinath Closing Date: कब बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट? कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम? जानिए मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

Badrinath Closing Date: कब बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट? कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम? जानिए मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
Last Updated: 08 नवंबर 2024

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर 2024 को बंद होने वाले हैं, जिसके बाद अगले 6 महीने तक भगवान बद्रीविशाल की पूजा जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर में की जाएगी। बद्रीनाथ मंदिर का शीतकालीन अवकाश हर वर्ष इसी तरह से आयोजित किया जाता है, जब ठंड और बर्फबारी के कारण मंदिर क्षेत्र में पहुंचना कठिन हो जाता हैं।

उत्तराखंड: बद्रीनाथ धाम, जिसे भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह अलकनंदा नदी के किनारे, नर और नारायण पर्वतों के बीच बसा हुआ है। बद्रीनाथ धाम का धार्मिक महत्व और आस्था इतनी गहरी है कि हर साल हजारों श्रद्धालु यहां भगवान बद्रीनारायण के दर्शन करने आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी।

बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में करवाया था, जो कालांतर में एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया। यहां भगवान विष्णु की मूर्ति बद्रीनारायण के रूप में प्रतिष्ठित है और उनकी पूजा-अर्चना सालों से की जा रही हैं।

हर साल शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि इस दौरान यहाँ भारी बर्फबारी होती है और तापमान भी अत्यधिक कम हो जाता है। कपाट बंद होने के बाद, अगले छह महीने तक जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान बद्रीविशाल की पूजा जारी रहती है। इस बार बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर 2024 को बंद किए जाएंगे, और इसके बाद अगली गर्मियों में कपाट फिर से खोले जाएंगे।

बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

* धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व: बद्रीनाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है और इसे विशेष रूप से विष्णु भक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह पंच बद्री धामों में से भी एक है और भारत के चार धामों में शामिल हैं।

* कपाट बंद होने का रिवाज: सर्दियों में कपाट बंद होने के दौरान भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति को जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में लाया जाता है। यहां भक्त इस दौरान भगवान के दर्शन कर सकते हैं और पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

* नृसिंह मंदिर का विशेष महत्व: नृसिंह मंदिर को बद्रीनाथ का शीतकालीन निवास माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में यहां अवतार लिया था। इस मंदिर की मूर्ति में भगवान का एक हाथ पतला होता जा रहा है, और यह माना जाता है कि जब यह पूरी तरह से टूट जाएगा, तब बद्रीनाथ मंदिर के कपाट हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।

* मंदिर का वास्तुशिल्प: बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है और इसका स्थापत्य शैलियों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर एक शंक्वाकार आकार में बना है और इसमें भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊँची मूर्ति स्थापित हैं।

* ऐतिहासिक मान्यताएं: कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मान्यता है कि उन्होंने 8वीं शताब्दी में इस स्थान का पुनरोद्धार किया था और बद्रीनाथ की मूर्ति को अलकनंदा नदी से निकालकर मंदिर में स्थापित किया था।

कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम?

बद्रीनाथ धाम का नाम इसके प्राचीन धार्मिक और पौराणिक महत्व से जुड़ा है। माना जाता है कि "बद्री" शब्द का अर्थ एक विशेष प्रकार के पेड़, "बद्री" या "बेर" से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थान घने बेर के पेड़ों से आच्छादित था और भगवान विष्णु ने यहां कठोर तपस्या की थी।

कहानी के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे, और उस समय भारी बर्फबारी होने लगी। यह देखकर देवी लक्ष्मी ने उनके तप में व्यवधान न हो, इसलिए स्वयं एक बद्री के पेड़ के रूप में भगवान विष्णु की तपस्या के दौरान उनकी रक्षा की। इसके बाद भगवान विष्णु ने इस स्थान को "बद्री का वन" कहा, और यहीं से इस स्थान का नाम "बद्रीनाथ" पड़ा, जिसका अर्थ है "बद्री का स्वामी" या "बद्री का भगवान।"

इस प्रकार बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु के इस तपस्या स्थल के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और यहां उनकी पूजा बद्रीनारायण के रूप में होती है। यह धाम श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है, और हर साल यहां भगवान विष्णु के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता हैं।

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