Women's Day 2025: हौसले की ताकत; हाथों की जगह पैरों से लिखी तकदीर, पीलीभीत की प्रीती बनी संघर्ष की मिसाल

Women's Day 2025: हौसले की ताकत; हाथों की जगह पैरों से लिखी तकदीर, पीलीभीत की प्रीती बनी संघर्ष की मिसाल
अंतिम अपडेट: 2 दिन पहले

16 वर्षीय प्रीती कुमारी ने अपने हौसले और संकल्प से अपनी तकदीर खुद लिखी है। बचपन में एक गंभीर बीमारी ने उसके दोनों हाथों की कार्यक्षमता छीन ली, लेकिन उसने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। 

पीलीभीत: कहते हैं कि सच्ची लगन और आत्मविश्वास के आगे कोई भी बाधा टिक नहीं सकती। पीलीभीत की 16 वर्षीय प्रीती कुमारी ने इसे सच कर दिखाया है। बचपन में गंभीर बीमारी के कारण अपने दोनों हाथों की कार्यक्षमता खोने के बावजूद, उसने हार नहीं मानी और अपने पैरों को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया। आज न सिर्फ वह पढ़ाई कर रही है, बल्कि घर के सभी काम भी पैरों से ही कर लेती है, जिससे वह समाज के लिए प्रेरणा बन गई है।

बचपन की बीमारी ने छीने हाथ, लेकिन नहीं छोड़ी उम्मीद

पीलीभीत के घुंघचाई क्षेत्र की मटेहना कॉलोनी नंबर एक की निवासी प्रीती जब तीन साल की थी, तब उसे तेज दिमागी बुखार हुआ। माता-पिता ने उसे कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद उसके दोनों हाथ हमेशा के लिए बेकार हो गए। शुरू में वह बोल भी नहीं पाती थी, जिससे परिजनों को उसके भविष्य की चिंता सताने लगी। कई लोगों ने उसके माता-पिता को हिम्मत हारने की सलाह दी, लेकिन उसकी मां विंद्रा देवी ने उसे कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया।

पैर बने ताकत, शिक्षा बनी सपना

छह साल की उम्र में प्रीती ने पैरों से पेंसिल पकड़कर लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे उसने घर के कामों में भी खुद को सक्षम बना लिया। जब स्कूल जाने की बारी आई, तो समाज के कई लोगों ने सवाल उठाए—"बिना हाथों के वह कैसे पढ़ेगी?" यहां तक कि स्कूल में दाखिले के वक्त शिक्षकों ने भी आशंका जताई, लेकिन प्रीती ने अपनी मेहनत और संकल्प से सभी को गलत साबित कर दिया।

आज वह हाईस्कूल की परीक्षा दे रही है और अच्छे अंक लाने की पूरी कोशिश कर रही है। पढ़ाई के साथ-साथ वह घर में झाड़ू लगाना, पानी निकालना और बर्तन धोने जैसे काम भी अपने पैरों से आसानी से कर लेती है।

मां ने कहा- "बेटी के हर सपने को पूरा करूंगी"

प्रीती का सपना है कि वह शिक्षिका बने और उन बच्चों को प्रेरित करे जो कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। उसकी मां विंद्रा देवी कहती हैं, "मेरी बेटी की इच्छाशक्ति देखकर मैं भावुक हो जाती हूं। मैं उसके हर सपने को पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश करूंगी।" प्रीती का संघर्ष उन लोगों के लिए एक सबक है, जो छोटी-छोटी मुश्किलों से घबरा जाते हैं। महिला दिवस के अवसर पर उसकी कहानी यह साबित करती है कि यदि जज्बा मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ते की दीवार नहीं बन सकती।

Leave a comment