झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिल्ली के सराय काले खां बस स्टैंड का नाम बदलकर बिरसा मुंडा बस स्टैंड करने पर आपत्ति जताई। उन्होंने इसे आदिवासियों का अपमान करार देते हुए केंद्र सरकार से निर्णय वापस लेने की मांग की।
Hemant Soren: दिल्ली के सराय काले खां बस स्टैंड का नाम बदलकर बिरसा मुंडा बस स्टैंड किए जाने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विरोध जताया है। उन्होंने इस कदम को आदिवासियों का अपमान बताते हुए केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग की है।
प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना और सवाल
हेमंत सोरेन ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि क्या दिल्ली में आदिवासियों के आराध्य के सम्मान के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं था? क्या सेंट्रल विस्टा का नाम बिरसा मुंडा पर नहीं रखा जा सकता था? उन्होंने इसे देशभर के आदिवासियों और मूलवासियों का अपमान करार दिया और केंद्र सरकार से यह कदम तुरंत वापस लेने की अपील की।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कदम
इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के अवसर पर बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर सराय काले खां बांसेरा पार्क में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया था। बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।
बिरसा मुंडा का इतिहास
बिरसा मुंडा, झारखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिले के उलिहातू गांव में हुआ था। बिरसा मुंडा ने 1895 में उलगुलान (विद्रोह) की शुरुआत की, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट करने और उनकी स्वतंत्रता की लड़ाई को मजबूती देने वाला था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन जागरूकता पैदा की और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए उनकी आवाज बुलंद की।
उनकी मुख्य मांगें
आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा, जमींदारी प्रणाली का उन्मूलन, और ब्रिटिश शासन का विरोध। 3 मार्च 1900 को उन्हें ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया और 9 जून 1900 को उनकी जेल में मृत्यु हो गई। बिरसा मुंडा आज भी झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं और उनकी जयंती को बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है।
हेमंत सोरेन का बयान
हेमंत सोरेन ने कहा कि बिरसा मुंडा को सम्मान देने के लिए उनका नाम उपयुक्त स्थानों पर होना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से दिल्ली जैसे राष्ट्रीय स्तर के शहरों में आदिवासी नायकों के सम्मान के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।