सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर रोक लगाई, जजों ने बताया असंवेदनशील। 11 साल की पीड़िता के मामले में हाईकोर्ट का फैसला गलत संदेश देने वाला करार।
SC-HC: नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए उस पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस फैसले को असंवेदनशील बताया और स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर सुनवाई शुरू कर दी है। कोर्ट ने यूपी सरकार और केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया है।
क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि पीड़िता को जबरदस्ती पुलिया के नीचे ले जाना, उसके ब्रेस्ट को पकड़ना और पजामे की डोरी तोड़ना रेप की कोशिश नहीं मानी जा सकती। यह घटना 11 साल की एक बच्ची के साथ हुई थी, लेकिन जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने इसे महिला की गरिमा पर आघात का मामला बताया और कहा कि इसे बलात्कार या उसके प्रयास की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
आरोपियों पर से गंभीर धाराएं हटाईं
जस्टिस मिश्रा ने इस मामले में दो आरोपियों पर लगी आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), धारा 18 (अपराध की कोशिश) और पॉक्सो एक्ट की धारा हटा दी थी। उन्होंने केवल धारा 354-B (महिला को निर्वस्त्र करने के मकसद से बल प्रयोग) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाने की बात कही थी। हाई कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी प्रभाव को देखते हुए सामाजिक संगठनों और कानून विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट से इस पर संज्ञान लेने की मांग की थी। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘वी द वीमेन’ ने इस मुद्दे पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र भी लिखा था।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि आमतौर पर वे हाई कोर्ट के किसी जज पर टिप्पणी नहीं करते, लेकिन इस मामले में उन्हें भारी पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि जज का रवैया असंवेदनशील था।
सॉलिसिटर जनरल ने भी फैसले पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुछ फैसले इतने गंभीर होते हैं कि उन पर तत्काल रोक लगानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में जो बातें लिखी गई हैं, वे पूरी तरह से गलत संदेश देती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे जज संवेदनशील मामलों की सुनवाई न करें।
चार महीने की देरी के बाद दिया गया विवादित फैसला
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस फैसले की गंभीरता को देखते हुए टिप्पणी की कि यह फैसला अचानक नहीं आया था, बल्कि हाई कोर्ट के जज ने इसे चार महीने तक सुरक्षित रखा था। यानी इस पर काफी सोच-विचार के बाद निर्णय लिया गया था। लेकिन, फैसले में कानून की दृष्टि से कई बातें गलत और अमानवीय लगती हैं। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तत्काल रोक लगाते हुए सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है।