भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा ने छठ पर्व के दौरान 72 साल की उम्र में 5 नवंबर को अंतिम सांस ली। उनकी मधुर आवाज ने हमेशा लोगों का मनोरंजन किया और वह भोजपुरी संगीत जगत की एक अहम शख्सियत बनकर याद रखी जाएंगी।
Sharda Sinha Passes Away: भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा, जो अपनी मधुर आवाज के लिए मशहूर थीं, ने 72 साल की उम्र में 5 नवंबर को अंतिम सांस ली। छठ पूजा के दौरान उनका निधन हुआ, और उनकी आवाज़ से जुड़े लोक और पारंपरिक गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। उन्होंने भोजपुरी, बॉलीवुड और मगध के गीतों से छठ पूजा को और भी खास बना दिया था।
हालांकि, उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। शुरुआत में, गांववालों और परिजनों ने उनके संगीत को नकारा था। उनके पति और पिता ने हमेशा उनका समर्थन किया, लेकिन उनकी सास इस यात्रा में उनके साथ नहीं थी।
शारदा सिन्हा का संघर्षपूर्ण संगीत सफर
शारदा सिन्हा का पहला गाना 1971 में रिकॉर्ड हुआ था। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि शादी के बाद उनके संगीत का सफर बहुत कठिन था। उनकी सास और अन्य लोग उनके गाने को नापसंद करते थे, जिसके चलते सास ने कई दिनों तक खाना भी छोड़ दिया था। शारदा ने बताया कि बचपन से लेकर युवावस्था तक उन्हें संगीत के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा।
उनके ससुर ने उनका पूरा साथ दिया, लेकिन परिवार और गांव के कुछ लोग उनके संगीत करियर के खिलाफ थे। उन्होंने यह भी बताया कि गाने के अलावा वे मणिपुरी डांस भी सीखती थीं। शारदा के अनुसार, अगर उनके पिता का साथ न होता, तो वह कभी भी संगीत में आगे नहीं बढ़ पातीं।
गाने के कारण सास ने छोड़ा खाना
शारदा सिन्हा ने बताया कि शादी के बाद उनके पति ने उनका पूरा साथ दिया, लेकिन सास और अन्य परिवार वाले उनके संगीत करियर के खिलाफ थे। गाने को लेकर सास इतनी नाराज हो गई थीं कि उन्होंने तीन-चार दिन तक खाना भी नहीं खाया। हालांकि, उनके ससुर को कीर्तन बहुत पसंद था और वह शारदा के भजन गानों को बढ़ावा देते थे। जब ससुर को पता चला कि शारदा को गाने का मौका मिल रहा है, तो उन्होंने कहा कि सास खाना खाए या न खाए, शारदा को यह अवसर नहीं छोड़ना चाहिए।
शारदा सिन्हा की संगीत यात्रा
शारदा सिन्हा ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत मगध महिला कॉलेज और प्रयाग संगीत समिति से संगीत की शिक्षा प्राप्त करके की थी। इसके बाद उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी की डिग्री हासिल की। उनकी आवाज़ को इतनी मधुर माना गया कि उन्हें "बिहार कोकिला" कहा गया। शारदा ने 1989 में "मैंने प्यार किया" फिल्म में "कहे तोसे सजना" गाया, जिसके लिए उन्हें सिर्फ 76 रुपये मिले थे। इसके बाद उन्होंने "हम आपके हैं कौन" में भी गाने गाए और फिल्मी संगीत से दूरी बना ली।
उन्होंने "गैंग ऑफ वासेपुर" में "तार बिजली से पतले" गाना भी गाया। शारदा सिन्हा को 1991 में पद्मश्री और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। हालांकि, 2018 में वह मल्टीपल मायलोमा नामक बीमारी से जूझने लगीं और इस दुनिया को अलविदा ले लिया, लेकिन उनकी सुरीली आवाज़ आज भी हमारे बीच मौजूद है।