सीमा क्षेत्र में नकली नेविगेशन सिग्नल विमानों की दिशा भटका सकते हैं, जिससे सुरक्षा जोखिम बढ़ता है। सरकार और DGCA ने समाधान के लिए कदम उठाने शुरू किए हैं।
Signal-spoofing: अमृतसर और जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में उड़ान भरने वाले विमानों को 'सिग्नल स्पूफिंग' की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यह इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम की नकल करते हैं, जिससे विमान की दिशा भटक सकती है और सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है।
दो साल में 450 से अधिक उड़ानों पर असर
लोकसभा में सरकार ने जानकारी दी कि पिछले दो वर्षों में 450 से अधिक भारतीय विमानों को सिग्नल स्पूफिंग का सामना करना पड़ा है। यह समस्या मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान सीमा के आसपास देखी गई है, जहां फर्जी सिग्नल फ्लाइट सिस्टम को प्रभावित कर सकते हैं।
क्या है सिग्नल स्पूफिंग?
सिग्नल स्पूफिंग में एयरक्राफ्ट को सटीक दिशा दिखाने वाले असली सैटेलाइट सिग्नल की जगह नकली सिग्नल भेजे जाते हैं। इससे पायलट को गलत जानकारी मिल सकती है, जिससे विमान तय रूट से हट सकता है और गंभीर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है।
फ्लाइट ऑपरेशन पर असर
गलत लोकेशन डेटा: पायलट को गलत दिशा और लोकेशन की जानकारी मिलती है।
सुरक्षा जोखिम: फ्लाइट रूट से भटकने से टकराव और अन्य खतरों की संभावना बढ़ जाती है।
लैंडिंग और टेकऑफ में दिक्कतें: महत्वपूर्ण क्षणों में यह समस्या हादसे का कारण बन सकती है।
सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे ज्यादा खतरा
भारत-पाकिस्तान सीमा के पास सिग्नल स्पूफिंग के बढ़ते मामले सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। यह आशंका है कि यह इलेक्ट्रॉनिक युद्ध का हिस्सा हो सकता है, जिसमें दुश्मन देश जानबूझकर सिग्नल भेजकर भारतीय विमानों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
ड्रोन हमलों से बचाव के लिए स्पूफिंग का इस्तेमाल?
विशेषज्ञों का मानना है कि कई बार सिग्नल स्पूफिंग का इस्तेमाल सीमा क्षेत्र में दुश्मन के ड्रोन को रोकने के लिए किया जाता है। भारत में सुरक्षा बलों ने अमृतसर और जम्मू में पिछले दो वर्षों में सैकड़ों पाकिस्तानी ड्रोन को मार गिराया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ सिग्नल स्पूफिंग घटनाएं ड्रोन सुरक्षा सिस्टम से भी जुड़ी हो सकती हैं।
सरकार और DGCA का एक्शन प्लान
सरकार और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने इस खतरे को गंभीरता से लेते हुए सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की योजना बनाई है। नए नेविगेशन सिस्टम और एंटी-स्पूफिंग टेक्नोलॉजी को अपनाने की दिशा में काम किया जा रहा है ताकि भारतीय विमानों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।