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सुप्रीम कोर्ट ने POCSO पीड़ित बच्चों को मुआवजा देने में विफलता पर केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO पीड़ित बच्चों को मुआवजा देने में विफलता पर केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, विधि एवं न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को नोटिस जारी किया है। यह याचिका पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के अंतर्गत समुचित मुआवजा योजना लागू करने की माँग को लेकर दायर की गई थी।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण पीड़ित बच्चों को पॉक्सो अधिनियम के तहत उचित मुआवजा, पुनर्वास और कल्याण योजना की अनुपलब्धता पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार, विधि मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से जवाब तलब किया है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने 23 मई को इस याचिका पर यह नोटिस जारी किया, जिसमें बच्चों की मानसिक, भावनात्मक, शैक्षिक और आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक मुआवजा योजना की मांग की गई थी।

याचिका की मांग क्या है?

याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रज्ञान प्रदीप शर्मा ने न्यायालय को अवगत कराया कि वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा पॉक्सो पीड़ितों के लिए मुआवजा, पुनर्वास, कल्याण और शिक्षा योजना का एक प्रारूप तैयार किया गया था। यह योजना पीड़ित बच्चों के सर्वांगीण पुनर्वास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती थी, परंतु केंद्र सरकार ने इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की और इसे लागू करने में विलंब बना रहा।

शर्मा ने यह भी बताया कि कई राज्य आज भी राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा 2018 में जारी योजना के अंतर्गत मुआवजा देने में विफल हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि NALSA की यह योजना बच्चों की व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूर्ण रूप से पूरा नहीं करती।

न्यायालय के प्रश्न और चिंताएँ

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने याचिकाकर्ता से उन 12 बच्चों की सूची माँगी जो इस याचिका में शामिल हैं और यह जानना चाहा कि क्या उन्हें कोई मुआवजा मिला है। जब यह जवाब मिला कि उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला, तो न्यायालय ने इस स्थिति को विडंबनापूर्ण बताया। न्यायालय ने यह भी पूछा कि क्या भारतीय न्याय संहिता (BNS) या दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत बच्चों के लिए कोई विशेष मुआवजा योजना लागू है। इस पर अधिवक्ता शर्मा ने स्पष्ट किया कि फिलहाल ऐसी कोई अलग योजना बच्चों पर विशेष रूप से लागू नहीं है।

राज्यों में स्थिति चिंताजनक

याचिका में यह बात सामने आई है कि लगभग सभी राज्यों में पॉक्सो पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रिया या तो अनुपस्थित है या अत्यंत धीमी है। प्रार्थना पत्रों और बार-बार अनुरोधों के बावजूद न तो मुआवजा दिया गया और न ही बच्चों की शिक्षा या पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम उठाए गए। 4 साल और 8 साल की आयु के बलात्कार पीड़ित बच्चे आज भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, यह स्थिति न केवल न्याय व्यवस्था की विफलता को दर्शाती है, अपितु सामाजिक संवेदनशीलता की भी परीक्षा लेती है।

18 अगस्त को अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हुए अगली सुनवाई की तिथि 18 अगस्त 2025 निर्धारित की है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है और मुआवजा प्रक्रिया की निगरानी भी ज़रूरी है। ऐसे में उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट कोई ठोस निर्देश जारी करेगा ताकि देशभर में पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत पीड़ित बच्चों को समय पर न्याय और सहायता मिल सके।

यह मामला केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं, अपितु मानवीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक ओर सरकार बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के नारे देती है, तो दूसरी ओर उन बच्चों को अनदेखा कर देती है जो सबसे भयावह अपराधों का शिकार हुए हैं। यदि मुआवजा योजनाएँ, पुनर्वास केंद्र और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ तत्काल प्रभाव से लागू नहीं की गईं, तो यह केवल नीति निर्माण की विफलता नहीं, अपितु संवेदनहीनता का भी उदाहरण होगा।

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