चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में यारलुंग सांगपो) पर बनाए जा रहे बड़े बांधों को लेकर भारत में जल संकट की आशंकाएं समय-समय पर उठती रही हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में घबराना जरूरी नहीं है।
नई दिल्ली: चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में यारलुंग सांगपो) पर बनाए जा रहे बांधों को लेकर भारत में आशंकाएं लगातार उठती रही हैं। लेकिन विशेषज्ञों और नीतिगत विश्लेषकों का मानना है कि इस विषय में डर से अधिक तर्क की ज़रूरत है। असलियत यह है कि ब्रह्मपुत्र नदी की जलधारा का बहुलांश भारत में ही उत्पन्न होता है और चीन द्वारा बनाए जा रहे बांधों से भारत पर कोई गहरा जल संकट उत्पन्न नहीं होगा। बल्कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में इससे भारत को लाभ भी हो सकता है।
चीन के बांधों से बाढ़ नियंत्रण में मदद?
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक पोस्ट में कहा कि यदि चीन ब्रह्मपुत्र के बहाव को नियंत्रित करता है, तो इससे हर साल असम में आने वाली भयंकर बाढ़ की समस्या से कुछ राहत मिल सकती है। हर मानसून में ब्रह्मपुत्र की जलधारा विकराल रूप ले लेती है, जिससे लाखों लोग विस्थापित हो जाते हैं। ऐसे में यदि चीन द्वारा बनाए गए बांध किसी सीमा तक पानी का प्रवाह कम कर सकें, तो यह असम के लिए राहत की बात हो सकती है।
ब्रह्मपुत्र का बहाव भारत में अधिक
तथ्य यह भी है कि ब्रह्मपुत्र नदी की जल मात्रा का लगभग 65 से 70 प्रतिशत हिस्सा भारत में पड़ने वाले क्षेत्र से आता है। तिब्बत में स्थित सांगपो नदी का बहाव तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। जब यह नदी नामचा बरवा के पास हिमालय को पार करती है और भारत में प्रवेश करती है, तभी इसमें भारी मात्रा में जलवृद्धि होती है। खासकर मानसून के दौरान यह नदी कई गुना बलवती हो जाती है।
तिब्बती क्षेत्र बर्फीला और शुष्क है, जबकि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र — विशेषकर मेघालय — अत्यधिक वर्षा वाला है। मेघालय का मासिनराम और चेरापूंजी दुनिया के सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्र माने जाते हैं। ऐसे में चीन द्वारा बांध बनाकर पानी को रोक लेने की स्थिति में भी ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह भारत में जारी रहेगा।
सुरक्षा आशंकाएं और वास्तविकता
कुछ रणनीतिक विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि चीन भविष्य में ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को मोड़कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है। लेकिन भूगोल और लागत का आकलन करें तो यह आशंका ज़्यादा तार्किक नहीं लगती। सांगपो से चीन के सूखे उत्तर क्षेत्र जैसे येलो रिवर घाटी तक पानी ले जाने के लिए भारी निवेश, अवसंरचना और ऊबड़-खाबड़ भौगोलिक क्षेत्र को पार करना होगा।
सांगपो और येलो रिवर के बीच कई विशाल पर्वतीय घाटियां और नदियां हैं – जैसे यांग्त्जी, मेकोंग और साल्वीन। इन सबके पार करके पानी को मोड़ना तकनीकी रूप से जटिल और आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है।
भारत के बांध और रणनीतिक योजना
भारत सरकार भी ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर कई महत्वपूर्ण बांधों का निर्माण कर रही है। अरुणाचल प्रदेश और असम में प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं से न सिर्फ बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, बल्कि बाढ़ नियंत्रण और जल भंडारण की दिशा में भी प्रगति होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि चीन कभी ब्रह्मपुत्र के बहाव को रोकने की कोशिश करता है, तो भारत इन जलाशयों से पानी छोड़कर उसका प्रभाव संतुलित कर सकता है। हालांकि, यह तभी संभव है जब भारत अपने बांधों का निर्माण समय पर पूरा करे और स्थानीय विरोध को नीति निर्माण द्वारा सुलझाया जाए।
चीन के इरादे और संभावनाएं
चीन वर्तमान में ब्रह्मपुत्र घाटी में दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजनाओं में से एक पर काम कर रहा है। यदि उसका लक्ष्य केवल बिजली उत्पादन है, तो भारत को इससे सीधा नुकसान नहीं होगा। नदी का पानी वहीं रहेगा, केवल उसके प्रवाह की दिशा को नियंत्रित कर ऊर्जा निकाली जाएगी। चीन में दुनिया का सबसे ऊंचा बांध – जिनपिंग बांध (1,001 फीट) – पहले से मौजूद है। ब्रह्मपुत्र पर योजनाबद्ध बांध उससे भी ऊंचे और जटिल हो सकते हैं। लेकिन इनकी जमीनी चुनौतियां इतनी अधिक हैं कि कई परियोजनाएं केवल कागज पर ही सीमित रह सकती हैं।
पानी के मोड़ने की आशंका क्यों बेमानी?
अगर चीन वाकई पानी की कमी से जूझ रहा है, तो वह समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने के लिए सौर ऊर्जा वाले प्लांट्स का इस्तेमाल कर सकता है। अब ये तकनीक पहले से काफी सस्ती हो गई है और इससे तटीय इलाकों को साफ पानी आसानी से मिल सकता है। ये तरीका सांगपो नदी से हजारों किलोमीटर दूर से पानी लाने से कहीं ज्यादा आसान और समझदारी भरा है।