J&K Election Flashback: जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनावों में जमकर हुआ था घमासान, एक ही पार्टी ने हासिल की थीं सारी सीटें, पढ़ें पूरी जानकारी

J&K Election Flashback: जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनावों में जमकर हुआ था घमासान, एक ही पार्टी ने हासिल की थीं सारी सीटें, पढ़ें पूरी जानकारी
Last Updated: 07 सितंबर 2024

जम्मू-कश्मीर में राज्य की Constituent Assembly के लिए हुए पहले चुनाव (1951) में कई अनियमितताओं और विवादों की शिकायतें सामने आई थीं। इन चुनावों का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के संविधान का निर्माण करने और राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने के लिए एक संविधान सभा का गठन करना था।

जम्मू: जम्मू एवं कश्मीर के विधानसभा चुनावों को लेकर इस समय काफी हलचल मची हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने घोषणापत्रों में आकर्षक वादे किए हैं। इन चुनावों में एक ओर बीजेपी है, दूसरी ओर कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन, जबकि पीडीपी और अन्य छोटी पार्टियां भी मैदान में हैं। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए सभी दल पूरी मेहनत कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1951 में हुए प्रदेश के पहले चुनाव में किस पार्टी ने उस समय की सभी 75 सीटें जीतकर एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड कायम किया था?

JK में 1951 में हुए थे पहले चुनाव

साल 1951 में जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनाव विवादों और अनियमितताओं से घिरे रहे और ये चुनाव राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण और विवादास्पद माने जाते हैं। उस समय जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री चुने जाते थे और शेख अब्दुल्ला ने इस पद पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी। चुनावों को राज्य के इलेक्शन एंड फ्रैंचाइजी कमिश्नर द्वारा आयोजित किया गया था, लेकिन चुनाव प्रक्रिया पर कई सवाल उठे थे।

चुनावों से जुड़े विवाद और आलोचनाएँ

अनियमितताओं के आरोप:- चुनाव प्रक्रिया पर शुरू से ही अनियमितताओं के आरोप लगे। प्रजा परिषद, जो मुख्य रूप से जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती थी, ने चुनावों में प्रशासनिक हस्तक्षेप और अनैतिक गतिविधियों का आरोप लगाया। उनके अनुसार, यह चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था, और इसके चलते उन्होंने चुनाव का बहिष्कार किया।

निर्विरोध जीत:- नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी ने 75 में से 73 सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल की, क्योंकि प्रजा परिषद और अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव में भाग नहीं लिया। यह परिणाम दर्शाता है कि चुनाव एकतरफा था, और विपक्ष को सही प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला।

प्रशासनिक हस्तक्षेप और दमन:- प्रजा परिषद और अन्य विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार ने चुनाव प्रक्रिया को नियंत्रित किया और विरोधी दलों को चुनाव में हिस्सा लेने से रोका गया। प्रशासन ने लोगों पर दबाव डाला और कुछ जगहों पर लोगों को स्वतंत्र रूप से मतदान करने का मौका नहीं मिला।

चुनाव के बाद का बवाल:- चुनाव परिणाम के बाद भी राज्य में हालात सामान्य नहीं रहे। विशेष रूप से जम्मू क्षेत्र में प्रजा परिषद के समर्थकों और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच विरोध प्रदर्शनों और संघर्षों की स्थिति पैदा हो गई। जम्मू में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और हिंसा हुई, जिससे राजनीतिक तनाव बढ़ा।

राजनीतिक और ऐतिहासिक महत्व

इस चुनाव के परिणामस्वरूप शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पूरी तरह से राजनीतिक सत्ता पर कब्जा कर लिया, और वे जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने। इससे उनकी स्थिति और भी मजबूत हो गई। चुनावों के बाद राज्य में राजनीतिक ध्रुवीकरण और असंतोष की भावना बढ़ी। प्रजा परिषद ने जम्मू क्षेत्र के लोगों की आवाज़ उठाई, जबकि कश्मीर क्षेत्र में नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा कायम रहा। इससे जम्मू और कश्मीर के बीच राजनीतिक मतभेद और गहरा हो गया।

1951 के चुनाव  किसने हासिल की जीत?

कश्मीर डिविजन की सभी 43 सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी चुनावों से एक हफ्ते पहले ही निर्विरोध जीत गए थे। इसका कारण यह था कि विपक्षी दलों ने या तो अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए या फिर उन्हें नामांकन प्रक्रिया में भाग लेने से रोका गया। जम्मू क्षेत्र में भी विवाद देखने को मिला, जहां जम्मू प्रजा परिषद के 13 प्रत्याशियों का नामांकन खारिज कर दिया गया था। इस घटना के बाद प्रजा परिषद ने चुनावों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। इससे जम्मू में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस को बड़ी बढ़त मिल गई। लद्दाख में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नामांकित सदस्यों ने जीत दर्ज की थी। यहां प्रमुख लामा और उनके एक साथी ने चुनाव में जीत हासिल की, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से उम्मीदवार थे।

चुनाव के नतीजे

इन चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस की एकतरफा जीत ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का निर्वाचित प्रधानमंत्री बना दिया। हालांकि यह चुनाव राजनीतिक असंतोष और चुनावी अनियमितताओं के आरोपों से घिरा रहा, क्योंकि प्रमुख विपक्षी दलों ने या तो चुनाव में भाग नहीं लिया या फिर उनका नामांकन खारिज कर दिया गया। इस चुनाव में विपक्ष की गैरमौजूदगी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को पूर्ण नियंत्रण में ला दिया, जिससे राजनीतिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठे। विपक्षी दलों, खासकर जम्मू प्रजा परिषद ने चुनाव प्रक्रिया पर प्रशासनिक हस्तक्षेप और अनैतिक गतिविधियों के आरोप लगाए, जिससे चुनाव की वैधता पर विवाद उत्पन्न हुआ। चुनावों के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ गया, खासकर जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच मतभेद और गहरा हो गया।

अब्दुल्ला को हुई जेल

चुनावों के बाद जब जम्मू प्रजा परिषद को लोकतांत्रिक विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाने का अवसर नहीं मिला, तब वह सड़कों पर उतर आई। इसने 'शेख अब्दुल्ला की डोगरा विरोधी सरकार' के खिलाफ 'लोगों के वैध लोकतांत्रिक अधिकारों' को सुरक्षित करने के लिए भारत के साथ राज्य के पूर्ण एकीकरण की मांग की। प्रजा परिषद के साथ विवाद इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने 1953 में शेख अब्दुल्ला को उनके पद से हटा कर जेल में डाल दिया और बख्शी गुलाम मोहम्मद को जम्मू कश्मीर का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

 

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