रचिता स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं आत्मनिर्भर भारत का उदाहरण पेश किया हैं। उत्तराखंड में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान विदेश से आए अतिथियों को जूट बैग उपहार स्वरूप दिए गए थे और विदेशी मेहमानों को यह उपहार काफी ज्यादा पसंद आए हैं।
हल्द्वानी : अगर किसी व्यक्ति में हुनर होगा तो कामयाबी खुद चलकर उसके पास आएगी। इस बात का जीवित उदाहरण हल्द्वानी की महिलाएं हैं, जिन्होंने जूट के बैग और जूते बनाने की शुरुआत की और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा कर रही है. महिलाओं का यह हुनर अमेरिका, दुबई और कनाडा तक के लोगों को काफी पसंद आ रहा है। महिलाओं को विदेश से अबतक 15 बैग बनाने का आर्डर मिल चूका हैं।
अधिकारी ने Subkuz.com को बताया कि उत्तराखंड में हुए जी-20 सम्मेलन में पधारे हुए विदेशी मेहमानों को उपहार स्वरूप जूट बैग दिए गए थे और यह उपहार विदेशी मेहमानों बहुत पसंद आए है। रचिता स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने आत्मनिर्भर भारत की मुहीम को आगे बढ़ाया है। कुमाऊं में पांच हजार से भी ज्यादा महिलाएं इस समूह से जुड़कर हस्तशिल्प उत्पाद तैयार करने में लगी हुई है और अच्छी आमदनी भी कमा रही हैं।
20 महिलाओं को जोड़ा स्वरोजगार से
जानकारी के मुताबिक अध्यक्ष रुचि नैनवाल ने रचिता स्वयं सहायता समूह से 20 महिलाओं को जोड़कर उनके लिए आमदनी का जरिया लेकर आई है। इस समूह की महिलाओं के द्वारा तैयार किए जूट के हैंडबैग, पर्स, वाटर बोतल बैग, लैपटॉप, आफिस बैग, कैरी बैग आदि सामान भारत के अलावा विदेशी लोगों को भी काफी पसंद आ रहे हैं। महिलाएं अलग-अलग तरह से बैग की सिलाई, कढ़ाई और बुनाई करके उन्हें ऐपण कला का लुक देकर और ज्याद आकर्षित बना रही हैं। इन बैग की कीमत 50 से शुरू होकर 500 रुपये तक हैं।
ऐपण कला के फैन हुए विदेशी मेहमान
लामाचौड़ निवासी रुचि नैनवाल ने मीडिया को बताया कि हर वर्ष नवंबर महीने में दिल्ली के प्रगति मैदान में राष्ट्रीय स्तर का सरस मेला आयोजित किया जाता है। इसमें कई समूह के साथ उनका समूह भी भाग लेता है। उस मेले में प्रदर्शनी देखने के लिए कई विदेशी मेहमान भी पधारते हैं और उत्तराखंड की लोककला ऐपण से बने सामान निहारकर खरीदते हैं। इस मेले के माध्यम से जूट बैग को भारत के साथ-साथ विदेश में भी अनोखी पहचान मिली। अमेरिका, कनाडा और दुबई से उन्हें फोन करके लोग आर्डर मंगाते हैं। कोरियर के माध्यम से हल्द्वानी से दिल्ली तक इन उत्पाद को पहुंचाया जाता हैं और आगे ले जाने की व्यवस्था विदेशी मेहमान खुद कर लेते हैं।
2022 में मिला जिलास्तरीय पुरस्कार
अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि उत्तराखंड सरकार से ऐपण कला को जीआइ (भौगोलिक संकेत) टैग मिल चुका है। इससे स्वयं सहायता समूह से जुडी हुई महिलाओं को काफी ज्यादा फायदा हुआ हैं। रुचि ने बताया कि वर्ष 2022 में ऐपण कला में उत्कृष्ट कार्य करने पर उनकी संस्था को डीएम (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) धीराज कुमार गर्ब्याल से जिला स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका हैं। ऐपण कला से जुड़े उत्पाद बनाने के लिए जूट को दिल्ली से खरीदा जाता हैं। उनका यह समूह साल 2020 से निरंतर कार्य कर रहा हैं।