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करणी माता मंदिर: चूहों का पावन वास और भक्तों की गहरी आस्था

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राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित करणी माता मंदिर भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अनोखा केंद्र है। यह मंदिर न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की अनूठी प्रथा—चूहों को जूठा प्रसाद के रूप में देना और उनका सम्मान करना—के कारण भी इसे विशेष स्थान प्राप्त है। इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है, खासकर चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान लगने वाले मेले में, जब हजारों श्रद्धालु करणी माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि करणी माता मंदिर क्यों प्रसिद्ध है, इसके पीछे छिपी धार्मिक मान्यताएं क्या हैं, और चूहों को क्यों पवित्र माना जाता है।

करणी माता कौन थीं?

करणी माता राजस्थान की एक बहुत ही प्रसिद्ध देवी हैं, जिन्हें लोग दुर्गा माता का अवतार मानते हैं। उनका जन्म और जीवन चारण जाति में हुआ था, और वे एक तपस्विनी और बहादुर योद्धा थीं। उन्होंने कठिन तपस्या की और अपने त्याग और संघर्ष से आसपास के लोगों की रक्षा की। करणी माता को लोग अपनी रक्षक देवी मानते हैं, जो अपने भक्तों की हर मुश्किल समय में मदद करती हैं। 

उनकी भक्ति से लोग जीवन में सुख-शांति और समृद्धि पाते हैं। आज भी राजस्थान के कई लोग करणी माता की पूजा करते हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। उनकी कहानियां और भक्तिमय परंपराएं राजस्थान की लोक संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं।

मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व

करणी माता मंदिर की स्थापना 15वीं सदी में हुई थी और तब से यह मंदिर आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर खास इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां की अनोखी परंपराएं और धार्मिक रीति-रिवाज बहुत ही अलग और खास हैं। मंदिर में करणी माता की मूर्ति स्थापित है, जहां हर दिन हजारों भक्त आते हैं और पूरे मन से माता के दरबार में मत्था टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस मंदिर को राजस्थान के अलावा पूरे भारत में जाना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु करणी माता की विशेष कृपा पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। 

मंदिर की खास बात यह है कि यहां चूहों का भी विशेष सम्मान किया जाता है, जिन्हें माता के पुत्रों का रूप माना जाता है। इस मंदिर में आकर भक्तों को एक अलग आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो उनके जीवन में नई ऊर्जा और विश्वास भर देता है। यही वजह है कि करणी माता मंदिर धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।

चूहों का मंदिर: क्यों दिया जाता है चूहों को प्रसाद?

करणी माता मंदिर की सबसे खास और अनोखी बात यहाँ मौजूद हजारों चूहे हैं, जिन्हें "काबरा" कहा जाता है। ये चूहे मंदिर के अंदर पूरी आज़ादी से घूमते रहते हैं और इन्हें मंदिर का हिस्सा माना जाता है। भक्तों को यहां चूहों का जूठा प्रसाद दिया जाता है, जो इस मंदिर की सबसे बड़ी परंपरा बन चुकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करणी माता के पुत्र लक्ष्मण की मृत्यु हो गई थी, लेकिन माता ने मृत्यु के देवता यम से प्रार्थना की कि उनका पुत्र फिर से जीवित हो जाए। यमराज ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए लक्ष्मण को चूहे के रूप में पुनर्जीवित किया। इसलिए इन चूहों को करणी माता के पुत्रों का रूप माना जाता है और सभी भक्त उनका बहुत आदर करते हैं।

इस पवित्र मान्यता के कारण, मंदिर में चूहों को नुकसान पहुंचाना या मारना बड़े पाप के बराबर माना जाता है। अगर किसी से गलती से चूहे को चोट पहुँचती है या वह मर जाता है, तो उस व्यक्ति को मंदिर की परंपरा के अनुसार मरे हुए चूहे की जगह सोने का चूहा चढ़ाना पड़ता है। इस वजह से मंदिर में सभी भक्त और स्थानीय लोग बहुत सावधानी बरतते हैं और यहां पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ रहते हैं। वे अपने पैरों को घसीटकर चलते हैं ताकि कोई चूहा उनके नीचे दब न जाए। इस प्रकार करणी माता मंदिर अपने अनूठे धार्मिक विश्वास और चूहों के प्रति सम्मान के लिए जाना जाता है।

चूहों के प्रति श्रद्धा और संरक्षण की परंपराएं

करणी माता मंदिर में चूहों के प्रति गहरी श्रद्धा और संरक्षण की परंपरा बहुत खास मानी जाती है। मंदिर के अंदर सभी भक्त घसीटकर चलते हैं ताकि गलती से भी कोई चूहा उनके पैरों के नीचे न आ जाए, क्योंकि पैरों को उठाकर चलना यहां वर्जित है। सुबह और शाम को होने वाली मंगला और सांध्य आरती के समय ये चूहे अपने बिलों से निकलकर मंदिर के पूरे परिसर में घूमते हैं, जिससे मंदिर का माहौल और भी पवित्र बन जाता है। 

खास बात यह है कि सफेद रंग के चूहों को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है और उनका विशेष सम्मान किया जाता है। मंदिर प्रशासन भी इन चूहों की देखभाल बहुत प्यार और श्रद्धा से करता है, ताकि ये चूहे सुरक्षित और स्वस्थ रहें। इस तरह करणी माता मंदिर में चूहों का संरक्षण और आदर एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा के रूप में निभाया जाता है।

राजस्थान के अन्य प्रमुख करणी माता मंदिर

  • सुवाप: करणी माता का जन्मस्थान सुवाप में उनका भव्य मंदिर स्थित है, जहां रोजाना उनकी पूजा-अर्चना होती है। यहां उनका स्वयं निर्मित आवड़ माता का मंदिर भी है।
  • मथानिया: मारवाड़ के शासक राव जोधा के समय अमराजी बारहठ द्वारा निर्मित मथानिया मंदिर में करणी माता की पादुकाएं रखी गई हैं, जिन्हें आज भी भक्तों द्वारा पूजा जाता है।
  • उदयपुर: उदयपुर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क के पास मचला पहाड़ियों पर करणी माता का एक प्राचीन मंदिर है, जिसका पुनर्निर्माण 1997 में किया गया।
  • अलवर: राजस्थान के ऐतिहासिक शहर अलवर में भी करणी माता का मंदिर स्थित है, जो शहर के प्रमुख स्थलों सागर पैलेस और बाला किले के निकट है।
  • खुर्द: नागौर जिले के खुराद में भी करणी माता का मंदिर है, जिसे बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने बनवाया था।

नवरात्रि मेले में भक्तों की भारी भीड़

हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान करणी माता मंदिर में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से हजारों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं होता, बल्कि इसमें सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम भी होते हैं, जो लोगों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। भक्त यहां माता के दरबार में मत्था टेकते हैं, चूहों को प्रसाद अर्पित करते हैं और करणी माता से अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। 

इस मेले से स्थानीय व्यापार और अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है क्योंकि कई लोग अपने सामान और सेवाएं यहां बेचते हैं। साथ ही, यह मेला स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को भी जीवित रखने में मदद करता है। इस तरह नवरात्रि मेला करणी माता मंदिर की आस्था और सांस्कृतिक विरासत दोनों का सुंदर संगम बनता है।

करणी माता मंदिर के आध्यात्मिक संदेश

करणी माता मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थान नहीं है, बल्कि यह हमें एक बहुत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश भी देता है। यहां की मान्यताएं हमें सहिष्णुता और सभी जीवों के प्रति प्रेम का पाठ पढ़ाती हैं। मंदिर में चूहों को देवी का अवतार माना जाता है और उनका पूरा सम्मान किया जाता है, जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि हर जीव का जीवन पवित्र है और हमें उनका आदर करना चाहिए। 

यह हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति और जीव-जंतुओं का संरक्षण हमारा धर्म है। करणी माता मंदिर हमें मानवता, दया और संवेदना के साथ जीने की प्रेरणा देता है, जिससे हम अपने जीवन में एक बेहतर और सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। इस तरह यह मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ एक गहरा आध्यात्मिक संदेश भी हमें प्रदान करता है।

करणी माता मंदिर की अनूठी परंपराएं और धार्मिक आस्था इसे विशिष्ट बनाती हैं। यहां चूहों का सम्मान और उन्हें जूठा प्रसाद देना एक अद्भुत धार्मिक भावना का परिचायक है, जो भक्तों के मन में गहरी श्रद्धा और विश्वास जगाता है। यह मंदिर न केवल बीकानेर की धार्मिक पहचान है, बल्कि पूरे भारत में धर्म और संस्कृति के अद्भुत संगम का प्रतीक भी है।

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