Diwali 2024: तमिलनाडु में खास तरीके से मनाया जाता है दिवाली का त्योहार, यहां तिथि और परंपरा दोनों ही हैं सबसे अलग

Diwali 2024: तमिलनाडु में खास तरीके से मनाया जाता है दिवाली का त्योहार, यहां तिथि और परंपरा दोनों ही हैं सबसे अलग
Last Updated: 26 अक्टूबर 2024

दीपावली का पर्व भारत में अलग-अलग राज्यों और संस्कृतियों में विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, और तमिलनाडु में इसे मनाने का तरीका बाकी राज्यों से थोड़ा अलग है। तमिलनाडु में दिवाली का त्योहार अमावस्या से एक दिन पहले मनाया जाता हैं।

स्पोर्ट्स न्यूज़: दीपावली का पर्व भारत के सभी हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन हर राज्य की परंपराएं और रीति-रिवाज इसे अनोखा रंग देते हैं। तमिलनाडु में दीपावली की शुरुआत अमावस्या से एक दिन पहले ही हो जाती है, जिसे "नरक चतुर्दशी" कहते हैं। इस दिन को असुर नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग सुबह जल्दी उठकर तेल से स्नान करते हैं, जिसे "गंगा स्नान" कहा जाता है, और पारंपरिक रूप से नए वस्त्र धारण करते हैं।

तमिलनाडु में दीपावली से पहले घरों की सफाई और सजावट की परंपरा भी है। घरों के बाहर सुंदर कोलम (रंगोली) बनाए जाते हैं और सजावट के लिए पान के पत्ते, मेवे के फूल और अन्य पत्तियों का उपयोग किया जाता है। यह त्योहार परिवार और मित्रों के बीच मिठाइयां और पकवान बांटने का एक अवसर होता हैं।

तमिलनाडु में दीवाली मनाने की अलग है परंपरा

भारत में दीपावली को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं हैं। उत्तर भारत में, इसे भगवान राम और माता सीता के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग दीप जलाकर उनके स्वागत का प्रतीक मानते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या को दीप जलाने की इस परंपरा का मूल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व हैं।

वहीं, तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कुछ अन्य हिस्सों में दीपावली का पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा असुर नरकासुर के वध की खुशी में मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत अमावस्या से एक दिन पहले चतुर्दशी के दिन होती है, जिसे "नरक चतुर्दशी" के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन, लोग सूर्योदय से पहले तेल और उबटन लगाकर स्नान करते हैं, जिसे पवित्र माना जाता है। चूंकि अगले दिन अमावस्या होती है और उस दिन सिर में तेल लगाना वर्जित माना गया है, इसलिए इस परंपरा का पालन किया जाता हैं।

तमिलनाडु में दीपावली का यह जश्न विशेष रूप से तेल स्नान से शुरू होता है, जो पवित्रता और शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और पारंपरिक रीति-रिवाजों से दीपावली मनाते हैं।

दीवाली के अवसर पर नए कपडे खरीदना जरुरी

तमिलनाडु में दीपावली के दिन नए कपड़े पहनने की परंपरा को विशेष रूप से महत्व दिया गया है। यहां हर व्यक्ति, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस त्योहार के लिए नए वस्त्र जरूर खरीदता है। पर्व की सुबह स्नान के बाद नए वस्त्र भगवान के सामने रखे जाते हैं, जिसे शुभ माना जाता हैं।

पारंपरिक रूप से, घर का मुखिया इन वस्त्रों को परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद के रूप में भेंट करता है। इस विशेष अनुष्ठान के दौरान सभी परिवार के सदस्य इन कपड़ों को धारण करते हैं, बड़ों को साष्टांग प्रणाम करते हैं, और उनका आशीर्वाद लेते हैं। तमिलनाडु में यह प्रथा आज भी जीवित है, और यदि परिवार ब्राह्मण समुदाय से है, तो गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए साष्टांग नमस्कार किया जाता हैं।

दीवाली की रात बनाए जाते है स्पेशल पकवान

तमिलनाडु में दीपावली के पर्व के दौरान, विशेष रूप से नरक चतुर्थी की पूर्व संध्या पर, एक पाचक दवा "मारूंदू" तैयार की जाती है। यह औषधीय गुणों वाली दवा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बनाई जाती है, ताकि त्योहार के समय में अधिक पकवान खाने से पाचन तंत्र पर अधिक भार पड़े। मारूंदू बनाने के लिए कई औषधीय सामग्री का उपयोग होता है, जैसे काली मिर्च, सोंठ, काला जीरा, पिपली, और मुलेठी, जिन्हें अच्छे से कूटकर छाना जाता है। फिर इन्हें गुड़ की चाशनी में पकाया जाता है और इसमें घी तिल का तेल मिलाया जाता है। यह दवा सुबह-सुबह परिवार के सभी सदस्यों को खिलाई जाती हैं।

इसके बाद पारंपरिक तरीके से पहले से तैयार मिठाइयों और व्यंजनों को भगवान के सामने अर्पित किया जाता है। इस अवसर पर परिवार के लोग एक-दूसरे से मिलने जाते हैं और "गंगा स्नान हो गया क्या?" जैसे पारंपरिक सवाल पूछते हैं, जो एक विशेष संवाद का हिस्सा है। त्योहार के दिन विभिन्न व्यंजनों की दावत का आयोजन होता है, जिसमें चावल, सांभर, रसम, पायसम और सब्जियों के साथ-साथ मेदु वड़ा और तले हुए पापड़ भी शामिल होते हैं। इस परंपरा का पालन तमिलनाडु में विशेष उत्साह और पारंपरिक तरीके से किया जाता हैं।

 

 

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