कुंभकर्ण, जो रावण का भाई था, छह महीने तक लगातार सोने और फिर जागकर छह महीने तक भोजन करने के लिए प्रसिद्ध था। यह स्थिति उसे ब्रह्मा जी से मिले वरदान के कारण मिली थी।
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Kumbhakarna Katha: क्यों कुंभकर्ण को कहा जाता है ज्यादा सोने वालों का प्रतीक? जानें इसके पीछे की कहानी,
हम सभी ने अपने घर में कई बार ये डायलॉग सुना होगा— "उठ जा कुंभकर्ण! और कितनी देर सोएगा?" आमतौर पर जो लोग बहुत ज्यादा सोते हैं या कहीं भी मौका पाकर झपकी ले लेते हैं, उन्हें कुंभकर्ण कहा जाता है। इसका कारण भी साफ है—रामायण के अनुसार, कुंभकर्ण लंबे समय तक गहरी निंद्रा में रहते थे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर वे छह महीने तक लगातार क्यों सोते थे? आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कथा।
कुंभकर्ण: क्यों छह महीने तक सोते रहते थे रावण के भाई, जानें रहस्य
रामायणकाल में कुंभकर्ण को एक प्रमुख पात्र के रूप में वर्णित किया गया है। वह रावण का छोटा भाई और ऋषि विश्रवा व राक्षसी कैकसी का पुत्र था। बचपन में उसके बड़े कानों के कारण उसका नाम कुंभकर्ण रखा गया, जिसका अर्थ होता है— कुंभ यानी घड़ा और कर्ण यानी कान।
कुंभकर्ण में माता-पिता दोनों के गुण समाहित थे—राक्षस वंश से शक्ति और ब्राह्मण कुल से ज्ञान। वह छह महीने तक गहरी नींद में रहते थे और जागने के बाद अगले छह महीने केवल भोजन करते थे। लाख कोशिशों के बावजूद कोई उन्हें जगा नहीं सकता था। ब्रह्मा जी ने चेतावनी दी थी कि यदि किसी ने उन्हें बलपूर्वक उठाया, तो वही दिन कुंभकर्ण का अंतिम दिन होगा। लेकिन अब भी बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर कुंभकर्ण इतने लंबे समय तक क्यों सोते थे। आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा।
कुंभकर्ण को मिला निद्रासन वरदान: जानें इसके पीछे की दो प्रमुख वजहें
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने कुंभकर्ण को निद्रासन यानी छह महीने तक सोने का वरदान दिया। इस वरदान के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जाते हैं।
पहली वजह रामायण में वर्णित एक प्रसंग से जुड़ी है। कहा जाता है कि इंद्र कुंभकर्ण से ईर्ष्या करते थे और उन्हें भय था कि वह ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान न मांग ले जो देवताओं के लिए संकट खड़ा कर दे। इसी कारण, जब कुंभकर्ण वरदान मांगने वाला था, तब इंद्र ने उसकी बुद्धि भ्रमित कर दी। इसके चलते कुंभकर्ण ने इंद्रासन (इंद्र का स्थान) मांगने के बजाय निद्रासन (सोने का वरदान) मांग लिया, जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया।
दूसरी वजह कुंभकर्ण की अत्यधिक भोजन करने की प्रवृत्ति बताई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि देवताओं और ब्रह्मा जी को यह चिंता थी कि यदि कुंभकर्ण इसी तरह असीमित भोजन करता रहा, तो
संपूर्ण सृष्टि पर संकट आ सकता है। इस समस्या से बचने के लिए देवताओं ने माता सरस्वती से प्रार्थना की कि जब कुंभकर्ण वरदान मांगे, तब वे उसकी जिह्वा (जीभ) पर विराजमान हो जाएं। माता सरस्वती ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर ली और जब कुंभकर्ण ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा, तो उनकी जिह्वा पर बैठकर उसकी वाणी को प्रभावित कर दिया। परिणामस्वरूप, कुंभकर्ण ने इंद्रासन के स्थान पर निद्रासन का वरदान मांग लिया, जिसे ब्रह्मा जी ने स्वीकार कर लिया।
यही कारण था कि कुंभकर्ण को छह महीने तक गहरी नींद में रहने का वरदान प्राप्त हुआ।