राधा अष्टमी सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है, जो श्री राधा रानी को समर्पित है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है और इसे श्री राधा जी के जन्मोत्सव के रूप में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। राधा अष्टमी पर लोग व्रत रखते हैं और राधा-कृष्ण की पूजा करते हैं। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
धार्मिक न्यूज़: राधा अष्टमी सनातन धर्म में विशेष महत्व रखती है, विशेषकर वृंदावन और बरसाना में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा रानी का अवतरण दिवस माना जाता है। इस दिन श्री राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधिपूर्वक की जाती है और भक्त राधा अष्टमी का व्रत रखते हैं। बरसाना नगरी, जिसे श्री राधा रानी की जन्मभूमि माना जाता है, इस दिन दुल्हन की तरह सजाई जाती हैं।
यहां के किशोरी जी के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और भव्य आयोजन होते हैं। श्रद्धालु दूर-दूर से इस पर्व में भाग लेने आते हैं और राधा-कृष्ण के प्रेम को अपने हृदय में समाहित करते हैं। राधा रानी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मंदिरों में खास आयोजन होते हैं, जिसमें फूलों से झांकी सजाई जाती है और राधा-कृष्ण की लीला का मंचन होता हैं।
राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त
राधा अष्टमी 2024 के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त 11 सितंबर को होगा, जैसा कि पंचांग के अनुसार बताया गया है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात 11:11 बजे से शुरू होगी और 11 सितंबर को रात 11:46 बजे समाप्त होगी। सनातन धर्म में तिथि की गणना सूर्योदय से की जाती है, इसलिए राधा अष्टमी का पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा। पूजा का समय 11 सितंबर को सुबह 11:03 बजे से लेकर दोपहर 01:32 बजे तक हैं।
राधा अष्टमी व्रत की कथा
1. एक बार राधा रानी स्वर्गलोक से बाहर चली गईं और भगवान श्रीकृष्ण ने विरजा सखी के साथ घूमना शुरू किया, तो राधा रानी को इस बात का पता चलने पर वे क्रोधित हो गईं। उनके क्रोध ने विरजा को अपमानित किया, और विरजा ने अपने आपको नदी का रूप दे दिया। यह घटना राधा रानी के लिए भी दुखद थी, क्योंकि इससे उनके और श्रीकृष्ण के बीच एक असंतुलन उत्पन्न हुआ। सुदामा जी, जो भगवान श्रीकृष्ण के मित्र थे, ने राधा रानी के व्यवहार की आलोचना की और इसके परिणामस्वरूप राधा रानी ने उन्हें दानव योनि का श्राप दिया।
सुदामा ने भी राधा रानी को इंसान योनि में जन्म लेने का श्राप दिया, जिससे राधा रानी को भगवान श्रीकृष्ण के वियोग का सामना करना पड़ा। यह वियोग उनके दिव्य प्रेम की गहराई और उनके कष्टों को दर्शाता है। कुछ पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान विष्णु जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए, तो देवी लक्ष्मी ने राधा रानी के रूप में जन्म लिया, जो उनके अवतार के दौरान उनके साथ रही।
2. कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तब राधा जी ने भी उनकी लीला में भाग लेने के लिए अवतार लिया। श्री राधा रानी का जन्म ब्रजभूमि में हुआ था। एक दिन, वृषभानु नामक गोप अपने खेत में हल जोतने गए थे, तभी उन्हें एक कमल के फूल के बीच एक दिव्य कन्या मिली। वह कन्या कोई और नहीं बल्कि श्री राधा रानी थीं। वृषभानु जी ने उन्हें अपने घर ले जाकर पालन-पोषण किया।
किंवदंती है कि श्री राधा जी ने बाल्यकाल में ही भगवान श्रीकृष्ण को अपने प्रेम का प्रतीक मानकर उन्हें समर्पित कर दिया था। राधा और कृष्ण का प्रेम दिव्य और आत्मिक माना जाता है, जिसमें निस्वार्थ भक्ति और प्रेम का उच्चतम आदर्श समाहित हैं।