Jammu Kashmir Election result: जम्मू में 'अब्दुल्ला' की सरकार, फिर भी बीजेपी का जलवा बरकरार, जानें क्या है वजह?

Jammu Kashmir Election result: जम्मू में 'अब्दुल्ला' की सरकार, फिर भी बीजेपी का जलवा बरकरार, जानें क्या है वजह?
Last Updated: 6 घंटा पहले

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में चुनाव सम्पन्न हुए। आखिरी बार चुनाव 2014 में आयोजित किए गए थे। उस समय तक नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। इसके बाद बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन सरकार चला रहा था।

Jammu Kashmir Election: आतंक के साए के बीच, 10 साल बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का आयोजन हुआ। 2014 से 2024 तक के इस समय में जम्मू कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद, कश्मीर घाटी की राजनीतिक स्थिति में भी महत्वपूर्ण बदलाव आया। केंद्र शासित प्रदेश के नए स्वरूप में आने के बाद, आखिरकार 2024 में विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ। मंगलवार को हरियाणा के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम भी घोषित किए गए। इन परिणामों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को स्पष्ट जनादेश प्राप्त हुआ।

इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने 49 सीटें प्राप्त की हैं। दूसरी तरफ, बीजेपी ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की है। महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को केवल 3 सीटें मिलीं। वहीं, अन्य छोटे दलों ने मिलकर 10 सीटें हासिल कीं।

मुफ्ती और बीजेपी का नहीं चला गठबंधन

साल 2014 में महबूबा मुफ्ती के पिता, मुफ्ती मोहम्मद सईद, और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मिलकर पहली बार गठबंधन किया और घाटी में सरकार बनाई। यह वह समय था जब 10 साल के अंतराल के बाद बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता में वापस आई थी। उसी दौरान, बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन किया और चुनाव के बाद सरकार का गठन किया। लेकिन यह सरकार बेमेल साबित हुई। मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं। पीडीपी का एजेंडा बीजेपी के एजेंडे के साथ बिल्कुल नहीं मिल रहा था, और घाटी में पत्थरबाजी आम हो गई थी। ऐसे हालात में, बीजेपी ने महबूबा से अलग होने का निर्णय लिया।

फारुख अब्दुल्ला का लगातार हमला

2014 से घाटी की राजनीति और लोकतंत्र का हवाला देने वाले फारुख अब्दुल्ला, जिन्हें बड़े अब्दुल्ला के नाम से भी जाना जाता है, अपनी विचारधारा पर अडिग रहे। भले ही वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे और एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन इसके बावजूद वे नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ लगातार मुखर रहे। जब 2019 में अनुच्छेद 370 और 35(ए) को हटाया गया, तब फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने इस मुद्दे पर खुलकर अपनी राय व्यक्त की। 2014 में जम्मू-कश्मीर चुनाव से पहले अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस का शासन था, और उमर अब्दुल्ला ने 5 जनवरी 2009 को कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी।

अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित किया गया। इन कदमों के बाद जम्मू-कश्मीर में कई महीनों तक विभिन्न प्रतिबंध लागू रहे। अंततः, इन सभी घटनाओं के बाद जम्मू-कश्मीर में 2014 में विधानसभा चुनावों का आयोजन हुआ।

लोगों में महबूबा के प्रति भारी रोष

महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को विधानसभा की 90 सीटों में से केवल 3 सीटें मिलीं। जब कश्मीर घाटी में युवा पत्थरबाजी कर आतंक का माहौल पैदा कर रहे थे, तब महबूबा की भाषा ऐसी थी कि जिसने भी सुनी, वह चौंक गया। उनके वक्तव्यों में पाकिस्तान के प्रति स्पष्ट झुकाव देखा गया। यही कारण है कि जब चुनाव का समय आया, तो मतदाताओं ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया।

अब्दुल्ला परिवार: जम्मू -कश्मीर की राजनीति का 3 पीढ़ियों का इतिहास

फारुख अब्दुल्ला के दादा, शेख अब्दुल्ला, ने घाटी की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फारुख के पिता, शेख अब्दुल्ला, जम्मू और कश्मीर की राजनीति के 'पायोनियर' माने जाते हैं। वे ऑल जम्मू और कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक रहे और भारत के साथ विलय के बाद जम्मू और कश्मीर के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने। फारुख अब्दुल्ला ने अपने पिता से राजनीतिक विरासत प्राप्त की, और कश्मीर घाटी की आवाज के रूप में दशकों तक सक्रिय रहने के बाद, उन्होंने अपनी यह विरासत अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को सौंप दी। उमर अब्दुल्ला ने 2009 से 2014 तक जम्मू और कश्मीर में सरकार चलाई।

कांग्रेस नहीं बल्कि नेकां के साथ गठबंधन

कांग्रेस कभी जम्मू-कश्मीर में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत थी, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण गुलाम नबी आजाद हैं। घाटी में कांग्रेस के सबसे प्रमुख नेता गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर में सरकार का नेतृत्व किया। हालांकि, जब उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी बनाई, तो उनका राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो गया।

इसी तरह, कांग्रेस का स्वतंत्र पार्टी के रूप में अस्तित्व भी समाप्त होता गया। फिर भी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के सहायक दल के रूप में, कांग्रेस ने 6 सीटें पाने में सफलता हासिल की। दरअसल, राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर में रैलियां आयोजित कीं और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को 6 सीटें प्राप्त हुईं।

जम्मू में बीजेपी का दिखा जलवा

हिंदू बहुल जम्मू में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा। पार्टी ने जम्मू में 29 सीटें जीतकर खुद को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया। यहां पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह समेत कई बड़े नेताओं और मंत्रियों की रैलियां और सभाएं आयोजित हुईं। हालांकि, जम्मू के बाहर बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं प्राप्त हुई। जम्मू के हिंदुओं ने लंबे समय तक आतंक का सामना किया और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पीडीपी और नेकां के बयानों को भी सुना। इन सभी घटनाओं के बाद जब चुनाव का समय आया, तो हिंदुओं ने बीजेपी के पक्ष में भारी मत डाले।

जम्मू कश्मीर के अंतिम चुनाव 2014 में, परिणाम क्या रहे?

जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे। इस चुनाव में 87 सीटों में से पीडीपी ने 28 सीटें प्राप्त की थीं, जबकि बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें हासिल की थीं।

इसके बाद बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार का गठन किया, जिसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया, जिसके बाद चार महीने तक राज्य में राज्यपाल शासन लागू रहा। इसके बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं।

महबूबा के सीएम बनने के बाद यह गठबंधन अधिक समय नहीं चला। 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ दिया, जिसके बाद जम्मू कश्मीर में एक बार फिर राज्यपाल शासन लागू हो गया। सितंबर 2024 में, 10 साल बाद फिर से चुनाव हुए।

एलजी को मिला 5 लोगों को नॉमिनेट करने का अधिकार

विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद, 5 विधायकों को मनोनीत किया जाना है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वे विधानसभा के लिए 5 लोगों को नॉमिनेट कर सकते हैं, जिससे विधायकों की कुल संख्या 95 हो जाएगी। वास्तव में, अनुच्छेद 370 के निष्कासन के बाद जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 2019 के तहत एलजी को 5 विधायकों को नॉमिनेट करने का अधिकार दिया गया है। यह प्रावधान महिलाओं, कश्मीरी पंडितों और पीओके के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था। इसे जुलाई 2023 में संशोधित किया गया।

 

 

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