New Delhi: वन नेशन-वन इलेक्शन के दौरान सरकार के समक्ष खड़ी होंगी महत्वपूर्ण चुनौतियां, योजना सफल के लिए क्या बनेगी नई रणनीति?

New Delhi: वन नेशन-वन इलेक्शन के दौरान सरकार के समक्ष खड़ी होंगी महत्वपूर्ण चुनौतियां, योजना सफल के लिए क्या बनेगी नई रणनीति?
Last Updated: 16 घंटा पहले

वन नेशन-वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद मोदी सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं है। 2029 तक पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार को बहुत मेहनत करनी होगी। कई मुद्दों पर सामान्य सहमति बनानी पड़ेगी। इसके साथ ही, कुछ संशोधनों के लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी भी आवश्यक होगी। आइए जानते हैं कि सरकार के सामने कौन-कौन सी चुनौतियाँ खड़ी हैं।

One Nation One Election: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को उच्च स्तरीय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति की 'वन नेशन-वन इलेक्शन' सिफारिशों को स्वीकृति दी। अब यह आशा व्यक्त की जा रही है कि मोदी सरकार शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में संशोधन विधेयक प्रस्तुत कर सकती है। समिति ने 2029 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया है। लेकिन इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की राह इतनी सरल नहीं है। उसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

मंजूरी के दौरान सरकार के समक्ष आई मुश्किलें

1. संविधान संशोधन की प्रक्रिया

-साधारण बहुमत की आवश्यकता: संसद में संविधान संशोधन के लिए साधारण बहुमत की आवश्यकता होगी, जो कि सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।

-विपक्ष का समर्थन: इंडी गठबंधन का विरोध और भाजपा के पास पर्याप्त संख्या का होना सहमति बनाने की आवश्यकता को बढ़ाता है।

2. राज्य विधानसभाओं का अनुमोदन

-राज्यों का समावेश: कुछ संवैधानिक संशोधनों के लिए राज्यों की विधानसभाओं का अनुमोदन आवश्यक होगा। इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाना चुनौतीपूर्ण होगा।

-विभिन्न चुनावों का समय: कुछ राज्यों में समय से पहले और कुछ में देरी से चुनाव कराने की योजना बनानी पड़ेगी, जिससे समन्वय की आवश्यकता होगी।

3. संसदीय समिति का गठन

-विपक्षी सदस्यों की भागीदारी: यदि संशोधन विधेयकों को संसदीय समितियों में भेजा जाता है, तो विपक्ष के सदस्यों की भागीदारी से सहमति बनाने में मदद मिल सकती है।

-विस्तृत चर्चा: विभिन्न मुद्दों पर व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से एक सहमति बनाने की आवश्यकता है।

4. अधिकांश राज्यों में चुनाव

-भाजपा का राज्य स्तर पर प्रभाव: भाजपा के पास एक दर्जन से अधिक राज्यों में सत्ता है, लेकिन चुनाव परिणामों का प्रभाव महत्वपूर्ण होगा। विशेष रूप से -हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और दिल्ली में चुनावी नतीजे सरकार की रणनीति पर असर डाल सकते हैं।

5. आवश्यक विधायी परिवर्तन

-अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन: इन अनुच्छेदों में बदलाव के बिना एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं होगा, जिससे सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

6. चरणबद्ध कार्यान्वयन

-पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव: पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की योजना है, जिसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव होंगे। यह चरणबद्ध कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा कि प्रक्रिया सुचारू रहे।

 

 

 

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