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पंबन ब्रिज झेलेगा तूफानों का कहर, क्या 1964 जैसी तबाही फिर होगी मुमकिन? जानें पूरी जानकारी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार, 6 अप्रैल को तमिलनाडु के रामेश्वरम में बहुप्रतीक्षित नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह आधुनिक पुल अपनी अत्याधुनिक तकनीक और लिफ्ट स्पैनर डिज़ाइन के चलते लंबे समय से सुर्खियों में रहा है। 

Pamban Bridge cyclone threat: 1964 की भयावह रात को भुला पाना आज भी कठिन है, जब समुद्र की क्रूर लहरों ने ट्रेन सहित पंबन ब्रिज को निगल लिया था। लेकिन 61 साल बाद, उसी ऐतिहासिक लोकेशन पर अब खड़ा है एक नया और अत्याधुनिक पुल, जो दावा करता है कि 230 किमी/घंटा की रफ्तार से चलने वाले तूफानों के सामने भी अडिग रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार, 6 अप्रैल को इस नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया, जो रामेश्वरम को तमिलनाडु की मुख्य भूमि से जोड़ता है। यह पुल केवल इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं है, बल्कि यह भारत की जलवायु-प्रेरित आपदाओं से लड़ने की क्षमता का नया प्रतीक भी बन गया है।

क्या अब दोहराई नहीं जाएगी 1964 की त्रासदी?

रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) के डायरेक्टर (ऑपरेशंस) एमपी सिंह ने स्पष्ट किया कि इस बार का पुल विशेष रूप से ऐसे चक्रवातों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। "पिछले पुल की बर्बादी 160 किमी/घंटा की हवा में हुई थी, लेकिन नया ब्रिज 230 किमी/घंटा की गति की हवाओं और भूकंप जैसी स्थितियों को भी झेलने में सक्षम है," सिंह ने कहा।

नया ब्रिज इस मायने में भी अनोखा है कि यह भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट रेलवे ब्रिज है। इसका स्पैनर जो जहाजों की आवाजाही के लिए ऊपर उठता है, सिर्फ आवश्यक होने पर ही सक्रिय किया जाएगा, जिससे इसकी स्थिरता और बढ़ जाती है।

समुद्र का स्तर नहीं छू पाएगा ब्रिज

पुराने ब्रिज की तुलना में, नया पुल समुद्र तल से 4.8 मीटर ऊपर है, जबकि पिछला ब्रिज केवल 2.1 मीटर ऊंचा था। इस बदलाव का मतलब है कि अब उच्च ज्वार के समय भी समुद्र की लहरें ब्रिज तक नहीं पहुंच पाएंगी। सिंह के अनुसार, "हमने इस बार पानी के दबाव, हवा की दिशा, और जहाजों की आवाजाही को ध्यान में रखते हुए खंभों और गर्डर्स को खास ऊंचाई पर रखा है।"

ट्रेन से त्रासदी: 1964 की वह काली रात

22 दिसंबर 1964 को पंबन-धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन, जिसमें लगभग 110 लोग सवार थे, भयंकर चक्रवात की चपेट में आ गई। समुद्र से उठी 20 फीट ऊंची लहर ने ट्रेन को पलों में बहा दिया। इस भीषण हादसे में करीब 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, और ट्रेन के लकड़ी के डिब्बे तक श्रीलंका के तट पर बहते मिले।

यह तबाही केवल रेलवे के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी थी। उस हादसे ने साफ कर दिया था कि प्रकृति के सामने मानव निर्माण कितना कमजोर हो सकता है, जब तक उसे विज्ञान और रणनीति से न सशक्त किया जाए।

क्या वाकई तैयार है नया पुल?

इस नए ब्रिज के निर्माण में सुरक्षा, टिकाऊपन और अत्याधुनिक तकनीक को प्राथमिकता दी गई है। इसके गर्डर्स को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि वे न केवल मौसम का सामना कर सकें, बल्कि जहाजों और ट्रेनों दोनों के लिए लचीलापन भी प्रदान करें। निश्चित तौर पर यह नया पंबन ब्रिज केवल एक संरचना नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती इंजीनियरिंग क्षमता और आपदा प्रबंधन की रणनीति का जीता-जागता उदाहरण है।

अब सवाल यह नहीं है कि क्या 1964 जैसी त्रासदी दोबारा होगी, बल्कि यह है कि क्या हम अब ऐसी आपदाओं से जीत सकते हैं? और नया पंबन ब्रिज, अपने पूरे गौरव के साथ, इस सवाल का आत्मविश्वास से भरा उत्तर देता है - हां, अब हम तैयार हैं।

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