संसद में भाषा विवाद! धर्मेंद्र प्रधान के बयान से बवाल, डीएमके सांसद कनिमोझी ने दिया विशेषाधिकार हनन नोटिस

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संसद में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के ‘असभ्य’ शब्द के इस्तेमाल पर विवाद हुआ। DMK सांसद कनिमोझी ने इसे अपमानजनक और असंसदीय बताते हुए विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया।

Delhi: संसद में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के एक बयान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने प्रधान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दाखिल किया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब प्रधान ने तमिलनाडु के सांसदों को 'असभ्य' कह दिया।

कनिमोझी ने किया विरोध

प्रधान के इस बयान पर नाराजगी जाहिर करते हुए कनिमोझी ने इसे अपमानजनक और असंसदीय बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे शब्द निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए अस्वीकार्य हैं और इन्हें संसद में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे तमिलनाडु के नेताओं और मुख्यमंत्री के प्रति भी असम्मानजनक बताया।

तीन-भाषा नीति को लेकर असहमति

डीएमके लंबे समय से तीन-भाषा नीति का विरोध करती रही है, जिसमें हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का प्रावधान है। तमिलनाडु में पारंपरिक रूप से दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) लागू है। कनिमोझी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार दक्षिण भारतीय राज्यों पर हिंदी थोपने का प्रयास कर रही है, जिससे स्थानीय भाषा और संस्कृति को खतरा हो सकता है।

दक्षिणी और उत्तरी राज्यों के बीच असमानता का मुद्दा

कनिमोझी ने दक्षिणी और उत्तरी राज्यों के बीच विकास में असमानता का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि दक्षिणी राज्य जनसंख्या नियंत्रण का पालन कर रहे हैं, लेकिन परिसीमन नीति के कारण उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम होने की संभावना है। उन्होंने केंद्र सरकार से स्पष्ट नीति की मांग की और कहा कि दक्षिणी राज्यों को विकास और संसाधनों के वितरण में अन्याय का सामना करना पड़ रहा है।

परिसीमन को लेकर चिंता

डीएमके सांसद ने परिसीमन (लोकसभा सीटों के पुनर्वितरण) को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से दक्षिणी राज्यों को नुकसान हो सकता है, जबकि बड़ी आबादी वाले उत्तरी राज्यों को अधिक सीटें मिल सकती हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से इस पर विस्तृत चर्चा की मांग की।

तमिलनाडु की शिक्षा नीति

कनिमोझी ने तमिलनाडु की शिक्षा प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि राज्य की जीडीपी बेहतर है और यहां के लोग विदेशों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल किया कि जब राज्य की शिक्षा प्रणाली इतनी प्रभावी है, तो हिंदी को पाठ्यक्रम में जबरन शामिल करने की जरूरत क्यों है?

डीएमके का रुख स्पष्ट

डीएमके ने साफ कर दिया है कि वे हिंदी या किसी भी अन्य भाषा के विरोधी नहीं हैं, लेकिन वे राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगे। कनिमोझी ने कहा कि भाषा एक राज्य का विषय है और केंद्र सरकार को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने संसद में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा की मांग की।

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