Taslima Nasreen की अनोखी अपील 'भारत में रहना है, अमित शाह से मांगी मदद; जाने पूरा मामला

Taslima Nasreen की अनोखी अपील 'भारत में रहना है, अमित शाह से मांगी मदद; जाने पूरा मामला
Last Updated: 9 घंटा पहले

Taslima Nasreen बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारत में रहने की अपनी इच्छा को व्यक्त करते हुए अमित शाह से सहायता मांगी है। उन्होंने बताया कि उनका भारतीय रेजिडेंस परमिट जुलाई में समाप्त हो गया है और गृह मंत्रालय इसे नवीनीकरण नहीं कर रहा है। सांप्रदायिकता के खिलाफ अपनी स्पष्टता से बात करने वाली तसलीमा 1994 से भारत में निवास कर रही हैं।

बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारत के गृह मंत्री अमित शाह से सहायता की गुहार लगाई है। उन्होंने अपने X हैंडल के माध्यम से अमित शाह से मदद की अपील की है। तसलीमा ने X पर लिखा कि उनका भारतीय निवास परमिट जुलाई में समाप्त हो गया है, और गृह मंत्रालय इसे नवीनीकरण नहीं कर रहा है।

गृह मंत्रालय ने निवास परमिट बढ़ाने से किया इनकार

तसलीमा नासरीन, एक प्रतिष्ठित बांग्लादेशी लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता, ने हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह को संबोधित करते हुए अपनी चिंताओं का इजहार किया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, "प्रिय अमित शाह जी, नमस्कार। मैं भारत में रहकर इस महान देश से गहरा प्यार करती हूं, जो पिछले 20 वर्षों से मेरा दूसरा घर बन चुका है। हालांकि, गृह मंत्रालय ने जुलाई 2022 से मेरे निवास परमिट को न बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिससे मैं काफी चिंतित हूं। यदि आप मुझे रहने की अनुमति देंगे, तो मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी।"

इस पोस्ट के माध्यम से, नासरीन ने भारत में अपने अनुभवों और उस विशेष संबंध को साझा किया जो उन्होंने इस देश के साथ बनाया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि भारत उनके लिए केवल एक निवास स्थान नहीं है, बल्कि यह उनके लिए एक घर जैसा है। उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि यदि उनका निवास परमिट न बढ़ाया गया, तो उन्हें देश छोड़ने की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

तसलीमा नासरीन की यह अपील भारत में उनके निवास के अधिकार को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती है, बल्कि इस मुद्दे पर सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को भी उजागर करती है।

कौन हैं तसलीमा नसरीन?

तसलीमा नसरीन बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता, जो 1994 से भारत में रह रही हैं। उन्होंने शेख हसीना सरकार के दौरान सांप्रदायिकता और महिला समानता के लिए आवाज उठाई, जिसके कारण उन्हें अपने देश से भागना पड़ा। कट्टरपंथियों की आलोचना करने के चलते उन्हें स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में भी निर्वासन का जीवन जीना पड़ा। उनकी प्रमुख कृतियों में 'लज्जा' (1993) और 'आमार मेयेबेला' शामिल हैं।

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