सहरसा के झपरा टोला वार्ड नंबर 29 में रहने वाले रंजीत कुमार शर्मा और उनके बेटे अंकित कुमार शर्मा की कहानी एक संघर्ष और समर्पण की मिसाल बन गई है। यह कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा रखते हैं। रंजीत कुमार शर्मा ने कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ अपने बेटे अंकित को आर्मी में भर्ती कराने में मदद की, और आज उनका बेटा सेना में तैनात होने जा रहा हैं।
रंजीत कुमार शर्मा का संघर्ष
रंजीत कुमार शर्मा ने कभी रैक पॉइंट पर बोरा उठाने का काम किया था और फिर ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया। उनकी कमाई मुश्किल से घर का खर्च चलता था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके लिए सबसे बड़ी चिंता अपने बेटे की पढ़ाई और उसका भविष्य था। कई बार आर्थिक तंगी के कारण अंकित को कोचिंग फीस चुकाने में परेशानी हुई, लेकिन रंजीत ने हमेशा उसे हर हाल में समर्थन दिया।
अंकित का सपना और पिता का संघर्ष
अंकित ने हमेशा से ही सेना में जाने का सपना देखा था। उनका मानना था कि देश की सेवा करना ही उनका जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है। जब वह अपने पिता के संघर्ष को देखता, तो उसे और अधिक प्रेरणा मिलती। अंकित ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से 7 महीने की कठिन ट्रेनिंग पूरी की।
जब बेटे ने आर्मी में किया वर्दी पहनकर घर लौटना
जब अंकित आर्मी की ट्रेनिंग पूरी कर फौजी वर्दी में घर लौटे, तो यह दृश्य पूरी मोहल्ले के लिए गर्व का पल बन गया। रंजीत कुमार शर्मा ने अपने बेटे को ई-रिक्शा में बिठाकर घर लाया। इस दृश्य को देखकर आसपास के लोग आकर उनका स्वागत करने लगे। अंकित की मां की आंखों में खुशी के आंसू थे, और पिता का दिल गर्व से भर गया था।
समाज का समर्थन और खुशी
अंकित के घर लौटने के बाद पूरा समाज उनकी सफलता में शामिल हुआ। लोग फूल-मालाओं से उनका स्वागत करने पहुंचे और "जय जवान" के नारे लगाए। रंजीत ने कहा, "आज मेरा बेटा देश की सेवा के लायक बन गया है। यह मेरे जीवन का सबसे गर्वपूर्ण पल है।"
कठिनाइयों के बावजूद सफलता की कहानी
यह कहानी केवल एक पिता और बेटे की नहीं, बल्कि उस संघर्ष और कठिनाई की है, जिसे उन्होंने मिलकर झेला और आज वह सफलता की ओर बढ़े हैं। रंजीत कुमार शर्मा और अंकित कुमार शर्मा की यह कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अपनी सीमित परिस्थितियों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने का साहस रखते हैं।
अंकित का अब सपना लद्दाख में देश की सेवा करना है, और यह उसकी यात्रा का सिर्फ एक आरंभ है। इस प्रेरणादायक सफलता की कहानी यह साबित करती है कि यदि इरादा मजबूत हो, तो कोई भी कठिनाई बड़ी नहीं होती।