भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बहुप्रतीक्षित बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (BGT) की टेस्ट सीरीज नवंबर में खेली जाएगी। इस बार पहली बार BGT में पांच टेस्ट मैचों की सीरीज होगी, जो दोनों टीमों के बीच प्रतिद्वंद्विता को और रोमांचक बनाएगी। भारतीय टीम के स्क्वाड का ऐलान भी कर दिया गया है, और अनुभवी बल्लेबाज रोहित शर्मा को टीम की कप्तानी सौंपी गई हैं।
स्पोर्ट्स न्यूज़: भारत में क्रिकेट को लेकर एक गहरा जुनून है, जो इसे एक खेल से कहीं अधिक बनाता है. यह एक ऐसा मंच है जो पूरे देश को जोड़ता है। भारतीय क्रिकेट टीम की जीत पर हर भारतीय का दिल खुशी से भर जाता है और यह उपलब्धि सभी को गर्व और आत्मसम्मान का अहसास कराती है। धर्म, भाषा और संस्कृति की विविधता के बावजूद, जब भारतीय खिलाड़ी मैदान पर रन बनाते हैं या विकेट लेते हैं, तब हर फैन के मन में एक जैसा उत्साह और गर्व का भाव उमड़ता हैं।
विशेष रूप से भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली सीरीज, जैसे कि आगामी बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी, फैंस के बीच एक अलग ही रोमांच पैदा करती है। इस प्रतिद्वंद्विता ने दोनों टीमों को अपने खेल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचा दिया है और यह पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक विशेष आयोजन बन गया है। स्टेडियम में फैंस का जोश, ब्रॉडकास्टर्स की व्यापक कवरेज, और मीडिया का ध्यान इन मुकाबलों को खास बनाता है। हर बाउंड्री, हर विकेट पर स्टेडियम में जश्न का माहौल होता है, जिसमें हर भारतीय की दिली ख्वाहिश यही होती है कि टीम विजयी हो।
भारत ने 1947 में खेला ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहला टेस्ट
टेस्ट क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत का सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। पहली बार 1947 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट मैच खेला था, जिसमें टीम इंडिया को हार का सामना करना पड़ा। तब से लेकर भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली टेस्ट जीत हासिल करने में करीब 12 साल का समय लगा। 1959 में गुलाबराय रामचंद की कप्तानी में कानपुर के मैदान पर भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 119 रनों से हराकर पहली जीत दर्ज की।
हालाँकि, सीरीज जीतने का सपना साकार करने के लिए भारतीय टीम को 1979 तक इंतजार करना पड़ा। उस समय सुनील गावस्कर की कप्तानी में ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत दौरे पर थी, और भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीसरे और छठे मैच में जीत दर्ज कर सीरीज अपने नाम की। कपिल देव और गुंडप्पा विश्वनाथ ने उस सीरीज में अहम भूमिका निभाई और अपनी बेहतरीन क्रिकेट प्रतिभा से भारतीय टीम की पहली ऐतिहासिक सीरीज जीत में योगदान दिया।
20वीं सदी में भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज
20वीं सदी में, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट की प्रतिस्पर्धा में ऑस्ट्रेलियाई टीम हमेशा से हावी रही। भारतीय टीम ने उस दौर में केवल तीन टेस्ट सीरीज में सफलता प्राप्त की, जो सचिन तेंदुलकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन और सुनील गावस्कर की कप्तानी में संभव हो पाई। ऑस्ट्रेलिया के पास उस समय के महान खिलाड़ी जैसे एलन बॉर्डर, मार्क वॉ, स्टीव वॉ, इयान हीली, मार्क टेलर और डेनिस लिली थे। ये सभी खिलाड़ी चाहे किसी भी परिस्थितियों में खेलें, अपने प्रदर्शन से विरोधी टीम के लिए जीत छीनने में सक्षम थे। 20वीं सदी में भारतीय गेंदबाजी आक्रमण अपेक्षाकृत कमजोर था, खासकर तेज गेंदबाजों की कमी के चलते। हालांकि, भारत के पास अच्छे स्पिनर्स थे, जिन्होंने घरेलू मैदानों पर कामयाबी दिलाने में मदद की।
21वीं सदी में भारत का दबदबा
21वीं सदी की शुरुआत में, जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत दौरा किया, तब उनके पास एक बहुत ही मजबूत टीम थी, जिसमें स्टीव वॉ की कप्तानी में रिकी पोंटिंग, ग्लेन मैक्ग्रा, एडम गिलक्रिस्ट और शेन वॉर्न जैसे दिग्गज खिलाड़ी शामिल थे। उस समय ऑस्ट्रेलियाई टीम ने लगातार 16 टेस्ट जीतकर अपने नाम कर रखी थीं, जिससे उन्हें हराना बेहद कठिन प्रतीत हो रहा था। उनकी बल्लेबाजी में गहराई और गेंदबाजी में धार थी, जो उन्हें दुनिया की सबसे मजबूत टीम बनाती थी। भारत के खिलाफ पहले टेस्ट में भारतीय टीम को 10 विकेट से हार का सामना करना पड़ा, और सभी की अपेक्षाएँ थीं कि टीम इंडिया इस सीरीज में आसानी से हार जाएगी।
उस समय कप्तान सौरव गांगुली की अगुवाई में भारतीय टीम एक बदलाव के दौर से गुजर रही थी। हालांकि, क्रिकेट के इस खेल में अक्सर अप्रत्याशित घटनाएँ होती हैं, और यहीं से कहानी में मोड़ आ गया। भारत ने अगले दो मैचों में अपनी रणनीति में सुधार किया। सौरव गांगुली ने टीम के युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन किया। दूसरे टेस्ट में, भारत ने मेहमान टीम को हराया, जो उस समय क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था।
भारत ने तोडा ऑस्ट्रेलिया का 'घमंड'
भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से हराकर 20वीं सदी में पहली बार टेस्ट सीरीज जीती, यह केवल एक जीत नहीं थी, बल्कि यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक युग परिवर्तन का प्रतीक बन गई। चेन्नई में खेले गए तीसरे टेस्ट में, भारत ने केवल 2 विकेट से जीत हासिल की, जो दर्शाता है कि टीम ने मजबूती से ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ खड़े होकर जीत दर्ज की।
हरभजन सिंह ने उस सीरीज में शानदार प्रदर्शन किया। उनकी फिरकी ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को पूरी तरह से परेशान कर दिया। 34 विकेट लेकर, हरभजन ने साबित कर दिया कि वह उस समय के सबसे प्रभावशाली स्पिन गेंदबाजों में से एक थे। उनकी गेंदबाजी के आगे कई ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज संघर्ष करते हुए नजर आए, जिससे भारत को जीतने का विश्वास मिला।
सौरव गांगुली की कप्तानी में उस जीत के बाद, भारतीय क्रिकेट ने एक नई दिशा में कदम बढ़ाया। महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में, भारतीय टीम ने 2008/09, 2010/11 और 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती। विशेष रूप से, 2013 में भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलियाई टीम को 4-0 से क्लीन स्वीप करके एक नई उपलब्धि हासिल की, जो बताता है कि भारतीय टीम अब सिर्फ घरेलू परिस्थितियों में ही नहीं, बल्कि विदेशी जमीन पर भी एक बलवान टीम बन गई।
विदेशों में टीम इंडिया ने फहराया परचम
भारतीय टीम का ऑस्ट्रेलिया दौरा और बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में उनका प्रदर्शन क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। पहले टेस्ट में भारत की 31 रनों की जीत ने पूरे क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी, जहां चेतेश्वर पुजारा ने शानदार शतक के साथ टीम को जीत दिलाई। उनकी काबिलियत ने न केवल टीम के मनोबल को बढ़ाया बल्कि यह भी साबित किया कि भारतीय बल्लेबाजों में विदेशी परिस्थितियों में प्रदर्शन करने की क्षमता हैं।
हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई टीम ने दूसरे टेस्ट में जोरदार वापसी की, जिसमें उन्होंने 146 रनों से जीत हासिल की। इस जीत ने सीरीज को एक बार फिर से बराबरी पर ला दिया और मैचों के बीच प्रतिस्पर्धा की गर्मी को और बढ़ा दिया। तीसरे टेस्ट में भारत ने 137 रनों से जीत दर्ज कर एक बार फिर से बढ़त बनाई, जो दर्शाता है कि भारतीय टीम अब प्रतिस्पर्धा में कहीं अधिक मजबूत हो चुकी हैं।
आखिरी टेस्ट ड्रॉ रहने से सीरीज का परिणाम भारत के पक्ष में गया, जिससे भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलियाई धरती पर पहली बार टेस्ट सीरीज जीतने का ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया। पूरी सीरीज के दौरान चेतेश्वर पुजारा का प्रदर्शन अविश्वसनीय था। उन्होंने 521 रन बनाकर न केवल अपनी टीम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि उन्हें प्लेयर ऑफ द सीरीज का खिताब भी मिला।
भारत के लिए 2020/21 में युवा प्लेयर्स ने दिखाया दम
जानकारी के मुताबिक 2020/21 में जब भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया, तो यह सीरीज कई दृष्टियों से ऐतिहासिक और प्रेरणादायक बन गई। पहले टेस्ट में भारत को 8 विकेट से हार का सामना करना पड़ा, और यह मैच एक नए रिकॉर्ड के साथ समाप्त हुआ, जिसमें भारतीय टीम केवल 36 रनों पर ऑलआउट हो गई। यह टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में भारत का सबसे कम स्कोर था, जिससे टीम की बहुत आलोचना हुई।
इसके बाद, भारतीय कप्तान विराट कोहली का देश लौटना टीम के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि वह पिता बनने जा रहे थे। कोहली की अनुपस्थिति में कप्तानी का जिम्मा अजिंक्य रहाणे ने संभाला। रहाणे ने दूसरे टेस्ट में शानदार प्रदर्शन किया और शतक लगाकर टीम को 8 विकेट से जीत दिलाई, जिससे सीरीज में भारत ने 1-1 से बराबरी कर ली।
फिर चौथा टेस्ट मैच गाबा के मैदान पर खेला गया, जो ऑस्ट्रेलियाई टीम के लिए एक अजेय गढ़ माना जाता था। इस मैच में भारतीय युवा खिलाड़ियों ने अपनी काबिलियत साबित की। ऋषभ पंत ने 89 रनों की आक्रामक पारी खेली, जबकि शुभमन गिल ने 91 रनों का योगदान दिया। दोनों युवा बल्लेबाजों ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन किया, जिससे भारतीय टीम ने 2-1 से सीरीज जीतने में सफलता प्राप्त की।
BCCI ने किया भारतीय टेस्ट टीम का एलान
भारतीय टीम नवंबर में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाएगी, और यह पहली बार होगा जब दोनों टीमों के बीच इस ट्रॉफी में पांच टेस्ट मैच होंगे। भारतीय टीम ने लगातार चार बार इस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया है और इस बार उसकी नजरें पांचवीं ट्रॉफी पर हैं। बीसीसीआई ने टेस्ट स्क्वाड का ऐलान कर दिया है, जिसमें रोहित शर्मा को कप्तान और जसप्रीत बुमराह को उपकप्तान नियुक्त किया गया हैं।
ऑस्ट्रेलिया की पिचें तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होती हैं, इसलिए टीम में बुमराह के साथ मोहम्मद सिराज, आकाशदीप, प्रसिद्ध कृष्णा, और हर्षित राणा जैसे तेज गेंदबाजों को भी शामिल किया गया है। ये युवा खिलाड़ी विदेशी पिचों पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार हैं। अभिमन्यू ईश्वरन को भी स्क्वाड में जगह मिली है, जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया है। इसके अलावा, विराट कोहली, रोहित शर्मा, सरफराज खान, यशस्वी जायसवाल, और शुभमन गिल पर रन बनाने की जिम्मेदारी होगी।