दो पिता। विक्रम-बैताल की कहानी

दो पिता। विक्रम-बैताल की कहानी
Last Updated: 16 मई 2023

तांत्रिक को दिए हुए वचन को निभाने के लिए राजा विक्रमादित्य ने फिर से पेड़ पर चढ़कर बेताल को उतार कर कंधे पर रख लिया और चलने लगे। बेताल ने उन्हें नई कहानी सुनानी शुरू कर दी। बहुत पहले की बात है अवंतीपुर नामक शहर में एक ब्राह्मण रहता था ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुंदर पुत्री को जन्म दिया और चल बसी। ब्राह्मण अपनी पुत्री से बहुत प्यार करता था। अपनी पुत्री को प्रसन्न रखने के लिए वह उसकी हर इच्छा पूरी करता था। इसके लिए वह दिन-रात कड़ी मेहनत भी करता था। ब्राह्मण की पुत्री का नाम विशाखा था धीरे-धीरे वह बड़ी होकर एक सुंदर और होशियार युवती बन गई।

एक बार रात के समय विशाखा सोई हुई थी, तभी एक चोर खिड़की से अंदर आया और पर्दे के पीछे छुप गया। विशाखा उसे देख कर डर गई और पूछा, “ तुम कौन हो?” उसने कहा, “ मैं एक चोर हूं। राजा के सिपाही मेरे पीछे पड़े हुए हैं। कृपया मेरी मदद कीजिए। मैं आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाउंगा। तभी राजा के सिपाहियों ने दरवाजे पर दस्तक दी। विशाखा ने उन्हें चोर के बारे में कुछ भी नहीं बताया तो सिपाही चले गए। चोर कमरे से बाहर निकला, विशाखा को धन्यवाद दिया, और जिस रास्ते से वह अंदर आया था उसी रास्ते से बाहर चला गया।

विशाखा और उस चोर की मुलाकात बाजार में बहुत बार होने लगी और जैसे-जैसे उनकी मुलाकात बढ़ने लगी उन्हें धीरे धीरे प्यार हो गया। एक चोर के साथ विशाखा के पिता उसका विवाह करने के लिए कभी भी राजी नहीं होते, इसलिए दोनों ने चुपचाप विवाह कर लिया। कुछ दिन सुख पूर्वक बीत गए। एक दिन राजा के सिपाहियों ने चोर को पकड़ लिया और एक अमीर के घर में डाका डालने के जुर्म में मृत्युदंड मिला। गर्भवती विशाखा को जब यह बात पता चली तब वह रोने लगी। चोर की मृत्यु के बाद विशाखा के ब्राह्मण पिता ने अपनी पुत्री को समझा कर उसका विवाह एक दूसरे युवक के साथ कर दिया। कुछ महीनों के पश्चात उस ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसके पति ने अपने बच्चे के रूप में स्वीकार किया।

विशाखा अपने पति के साथ सुख से रह रही थी, परंतु दुर्भाग्य से 5 वर्ष पश्चात विशाखा की मृत्यु हो गई। पिता ने पुत्र का लालन-पालन बहुत प्यार से किया। पिता और पुत्र दोनों में बहुत प्रेम था। धीरे-धीरे वह बच्चा बड़ा होकर एक दयालु और  सह्दय युवक बन गया। एक दिन उसके पिता की भी मृत्यु हो गई। पुत्र दुखी होकर अपने माता-पिता की शांति के लिए प्रार्थना करने नदी किनारे चला गया। पुत्र ने पानी में जाकर जल अंजुली में भरकर प्रार्थना करने लगा तभी तीन हाथ जलते बाहर निकले। एक हाथ में चूड़ियां थी उसने कहा, “ पुत्र, मैं तुम्हारी मां हूँ।” युवक ने मां को तर्पण दिया। दूसरे हाथ ने कहा, “ मैं तुम्हारा पिता हूं।” तीसरा हाथ शांत रहा। आप कौन हैं ,युवक के पूछने पर उसने कहा, “ पुत्र मैं भी तुम्हारा पिता हूं। मैंने ही तुम्हें लाड प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया है।” 

बेताल ने राजा से पूछा, “ राजन्! दोनों में से पिता के लिए पुत्र को तर्पण करना चाहिए?” विक्रमादित्य ने कहा, “ जिसने उसका लालन-पालन किया है। पिता के सभी कार्यों का पालन उसी ने किया है। मां की मृत्यु के बाद यदि बच्चे का ख्याल पिता ने नहीं रखा होता, तो शायद उसकी भी मृत्यु हो जाती। वही उस युवक का पिता कहलाने का अधिकारी है।” बेताल ने ठंडी आह भरी। फिर से विक्रमादित्य ने सही उत्तर दिया था। बेताल विक्रमादित्य के कंधे से उड़ा और वापस पेड़ पर चला गया।

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