बुद्धिमान बनाम मूर्ख की सोच – एक प्रेरणादायक कहानी

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एक गाँव में एक विद्वान व्यक्ति रहता था। उसकी बुद्धिमत्ता और विनम्रता की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। ज्ञान, दयालुता और परोपकार उसके स्वभाव का हिस्सा थे। वह हर किसी की मदद करता और दूसरों के प्रति आदरभाव रखता। उसकी ये विशेषताएँ उसे और भी सम्माननीय बनाती थीं।

लेकिन हर किसी को अच्छाई पसंद नहीं आती। गाँव में एक मूर्ख व्यक्ति था जिसे विद्वान व्यक्ति की लोकप्रियता रास नहीं आती थी। वह जलता, कुढ़ता और उसके खिलाफ बातें करता। जब भी किसी को उसकी तारीफ करते सुनता, वह गुस्से में भर जाता और कहता, "मुझे तो उसमें कोई खासियत नहीं दिखती! लोग उसकी झूठी तारीफ करते हैं!"

विद्वान व्यक्ति कभी भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं देता। वह चुपचाप अपनी राह चलता। लेकिन मूर्ख व्यक्ति इसे अपनी जीत समझ लेता। उसे लगता कि सब उसकी बातों से सहमत हैं, और वह विद्वान व्यक्ति की और अधिक बुराई करने लगता।

एक दिन की घटना

गाँव के चौपाल पर लोग विद्वान व्यक्ति की प्रशंसा कर रहे थे। तभी वह मूर्ख व्यक्ति फिर से बोल पड़ा, "तुम लोग यूँ ही उसकी तारीफ करते हो, वह इसके लायक नहीं!"
चौपाल में बैठे एक युवक को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने उस मूर्ख व्यक्ति से पूछा:
"क्या तुमने उल्लू को देखा है?"
मूर्ख व्यक्ति बोला, "हाँ, क्यों नहीं!"
"क्या उल्लू को दिन में दिखाई देता है?"
मूर्ख व्यक्ति झुंझलाकर बोला, "बिल्कुल नहीं!"
युवक मुस्कुराया और बोला, "तो क्या इसका मतलब यह है कि दिन की खूबसूरती घट जाती है?"

मूर्ख व्यक्ति चुप हो गया।

युवक ने समझाया, "उसी तरह, यदि तुम्हें उस विद्वान व्यक्ति की अच्छाई नहीं दिखती, तो यह तुम्हारी समस्या है, उसकी नहीं। दिन की तरह वह भी उज्ज्वल है, लेकिन तुम उल्लू की तरह अंधे बने हुए हो। उसकी निंदा करके तुम केवल अपनी मूर्खता जाहिर कर रहे हो!"
युवक की यह बात सुनकर मूर्ख व्यक्ति शर्मिंदा हो गया और उसने विद्वान व्यक्ति के बारे में बुरा बोलना हमेशा के लिए बंद कर दिया।

नैतिक सीख

बुद्धिमान होना अच्छा है, लेकिन यह सोचना कि केवल मैं ही बुद्धिमान हूँ, घमंड और मूर्खता की निशानी है। सच्चे ज्ञान की पहचान करने के लिए खुले दिमाग की जरूरत होती है।

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