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आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: जब भारतीय लोकतंत्र पर छाया अंधेरा, जानिए 1975 की उस रात की पूरी कहानी

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: जब भारतीय लोकतंत्र पर छाया अंधेरा, जानिए 1975 की उस रात की पूरी कहानी

साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात भारत के लोकतंत्र के इतिहास का एक अहम और विवादास्पद मोड़ साबित हुई, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। यह आपातकाल 21 महीने तक चला और 21 मार्च 1977 को समाप्त हुआ। 

50 Years of Emergency: आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की आधी रात को भारत में जो हुआ, उसे इतिहासकार ‘लोकतंत्र का काला अध्याय’ कहते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत लिया गया था, और इसकी मंजूरी तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने दी थी। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक, यानी करीब 21 महीने तक लागू रहा।

इस निर्णय ने न केवल भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को हिला कर रख दिया, बल्कि मौलिक अधिकारों को भी स्थगित कर दिया गया। आज जब आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ है, तो यह जरूरी है कि उस दौर की सच्चाई को नए सिरे से समझा जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बना कारण

आपातकाल की नींव तब पड़ी, जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसमें इंदिरा गांधी को 1971 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया गया। समाजवादी नेता राजनारायण ने यह आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने उनके निर्वाचन को रद्द कर दिया और छह साल तक चुनाव न लड़ने की सजा दी।

इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी की कुर्सी संकट में आ गई थी। उनके खिलाफ देशभर में विरोध तेज हो गया। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक बड़ा लोकतांत्रिक आंदोलन खड़ा हो गया। इसी बढ़ते विरोध को दबाने के लिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का रास्ता चुना।

क्या हुआ था आपातकाल के दौरान?

आपातकाल लगते ही पूरे देश का माहौल बदल गया। प्रशासन, मीडिया, न्यायपालिका और आम नागरिक – सभी पर नियंत्रण कस दिया गया।

  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: देशवासियों के जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार रद्द कर दिए गए। किसी को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता था और बिना कारण बताये जेल में रखा जा सकता था।
  • नेताओं की गिरफ्तारी: रातों-रात हजारों विपक्षी नेता और कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई जैसे बड़े नाम जेल में डाल दिए गए।
  • प्रेस पर सेंसरशिप: हर अखबार के कार्यालय में सरकारी सेंसर अधिकारी नियुक्त किए गए। बिना उनकी अनुमति कोई खबर नहीं छप सकती थी। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया।
  • जबरन नसबंदी और बस्तियों पर बुलडोज़र: संजय गांधी के नेतृत्व में परिवार नियोजन अभियान चलाया गया, जिसमें लाखों लोगों की जबरन नसबंदी की गई। तुर्कमान गेट जैसे इलाकों में गरीबों की बस्तियां उजाड़ दी गईं।

आपातकाल के पीछे के ‘भीतर की बातें’

इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन ने एक पुराने साक्षात्कार में बताया था कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं थी। धवन ने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी को कई चीजों की जानकारी नहीं थी — जैसे कि संजय गांधी का मारुति प्रोजेक्ट, बुलडोजर कार्रवाई या नसबंदी अभियान की बर्बरता। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी तो इस्तीफा देने के लिए भी तैयार थीं, लेकिन उनके मंत्रिमंडल ने उन्हें रोका।

1977 के चुनाव और इंदिरा की हार

जब इंदिरा गांधी को यह रिपोर्ट मिली कि वे यदि चुनाव कराएंगी, तो 340 सीटें जीत सकती हैं, उन्होंने 1977 में आम चुनाव कराने का निर्णय लिया। लेकिन असल चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली और जनता पार्टी सत्ता में आई। इंदिरा गांधी को यह हार स्वीकार थी। आरके धवन के अनुसार, जब हार की सूचना मिली तो इंदिरा ने मुस्कराकर कहा, शुक्र है, अब मेरे पास खुद के लिए समय होगा।

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे याद करते हुए कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया। उन्होंने कहा कि आज जो लोग लोकतंत्र की रक्षा की बातें करते हैं, उन्होंने ही उस समय देश को एक जेल में तब्दील कर दिया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने भी कांग्रेस के रवैये पर सवाल उठाए। यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब विपक्ष सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है।

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