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तेल इंपोर्ट में अचानक बदलाव! जानें क्यों सरकारी कंपनियों ने घटाया रूसी तेल इंपोर्ट

तेल इंपोर्ट में अचानक बदलाव! जानें क्यों सरकारी कंपनियों ने घटाया रूसी तेल इंपोर्ट

भारत का ऑयल मार्केट रूसी तेल को लेकर बंटा हुआ दिख रहा है। सरकारी कंपनियों ने अमेरिकी दबाव, घटती छूट और जोखिम को देखते हुए रूसी कच्चे तेल का इंपोर्ट घटा दिया है, जबकि प्राइवेट रिफाइनर्स ने खरीद बढ़ा दी। सितंबर में सरकारी इंपोर्ट 32% कम रहा, लेकिन प्राइवेट कंपनियों ने 8% बढ़ाया। कुल रूसी आयात 1.58 मिलियन बैरल प्रतिदिन पर आ गया।

Russian oil: भारत में रूसी कच्चे तेल को लेकर सरकारी और निजी रिफाइनर्स की रणनीतियां अलग-अलग हो गई हैं। केप्लर की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2025 में सरकारी कंपनियों का इंपोर्ट घटकर 605,000 बैरल प्रति दिन रह गया, जो अप्रैल-अगस्त औसत से 32% कम है। इसके पीछे अमेरिकी दबाव, छूट में कमी और सप्लाई विविधता की रणनीति को कारण बताया जा रहा है। वहीं, रिलायंस और नायरा एनर्जी जैसी निजी कंपनियों ने रूसी तेल की खरीद बढ़ाकर 979,000 बैरल प्रति दिन कर दी, जिससे स्पष्ट है कि लाभ और अनुबंधों के चलते रूसी तेल निजी क्षेत्र के लिए अभी भी आकर्षक विकल्प बना हुआ है।

अमेरिकी दबाव और घटती छूट

सरकारी कंपनियों के कदम के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। सबसे बड़ी वजह अमेरिकी दबाव मानी जा रही है। अमेरिका ने हाल ही में भारत पर रूसी तेल खरीदने को लेकर अतिरिक्त टैरिफ लगाया था। इसके बाद से सरकारी कंपनियों ने जोखिम कम करने के लिए रूसी तेल का इंपोर्ट घटा दिया है। इसके अलावा, पहले की तरह रूसी तेल पर मिलने वाली बड़ी छूट अब उतनी नहीं रही। सरकारी कंपनियां घरेलू बाजार की जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित और विविध सोर्सिंग पर जोर दे रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर में सरकारी कंपनियों द्वारा आयातित पांच बैरल में से केवल एक बैरल रूसी तेल का था। जबकि निजी रिफाइनर्स के तीन में से दो बैरल रूसी कच्चे तेल के थे। इसका साफ संकेत है कि सरकारी कंपनियां सुरक्षा और जिम्मेदारी को प्राथमिकता दे रही हैं, जबकि निजी कंपनियां मुनाफे के लिए ज्यादा लचीली रणनीति अपना रही हैं। निजी रिफाइनर्स घरेलू और निर्यात बाजार के बीच आसानी से बैलेंस बनाते हैं। वहीं सरकारी कंपनियों पर घरेलू जरूरतें पूरी करने की बड़ी जिम्मेदारी होती है।

सितंबर में सरकारी इंपोर्ट में बड़ी गिरावट

केप्लर की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर में सरकारी ऑयल कंपनियों ने रूस से औसतन 605,000 बैरल प्रति दिन तेल खरीदा। यह अप्रैल से अगस्त के औसत से 32 फीसदी कम रहा। अगस्त की तुलना में यह 22 फीसदी कम और जून के स्तर से 45 फीसदी कम है। वहीं निजी रिफाइनर्स ने सितंबर में 979,000 बैरल प्रति दिन रूसी तेल खरीदा। यह अप्रैल से अगस्त के औसत से 4 फीसदी ज्यादा और अगस्त की तुलना में 8 फीसदी ज्यादा है। इसका मतलब साफ है कि सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी घटने के बावजूद निजी कंपनियां रूसी तेल पर ज्यादा निर्भर हो रही हैं।

रिलायंस और नायरा एनर्जी का झुकाव

रिलायंस इंडस्ट्रीज को रूस की कंपनी रोसनेफ्ट के साथ हुए एक पीरियोडिक डील का फायदा मिल रहा है। यह डील उन्हें स्पॉट मार्केट के मुकाबले ज्यादा छूट पर तेल खरीदने की सुविधा देती है। इसके अलावा इसमें हर महीने न्यूनतम मात्रा खरीदने की शर्त भी शामिल है। नायरा एनर्जी, जो रोसनेफ्ट समर्थित कंपनी है, रूसी तेल पर काफी हद तक निर्भर है और उसके पास फिलहाल कोई और बड़ा विकल्प नहीं है। यही कारण है कि निजी कंपनियां रूसी तेल की ओर ज्यादा झुकी हुई हैं।

रूसी तेल अब भी सबसे किफायती विकल्प

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी कंपनियों की खरीद घटने के बावजूद रूसी तेल अभी भी भारतीय रिफाइनर्स के लिए सबसे किफायती विकल्प है। इसके ग्रॉस प्रोडक्ट प्राइस मार्जिन और दूसरी जगह से मिलने वाले तेल की तुलना में छूट ज्यादा है। हालांकि, सरकारी कंपनियों द्वारा सप्लाई में विविधता लाने की कोशिशों के चलते कुल रूसी आयात में गिरावट दर्ज हुई है। अगस्त की तुलना में यह 6 फीसदी कम और अप्रैल से अगस्त के औसत से 13 फीसदी कम होकर 1.58 मिलियन बैरल प्रति दिन पर आ गया है।

तेल बाजार में बंटी हुई तस्वीर

भारत का ऑयल मार्केट इस समय दो हिस्सों में बंटा हुआ नजर आ रहा है। सरकारी रिफाइनर अमेरिकी दबाव और घटती छूट की वजह से रूसी तेल से दूरी बना रहे हैं। जबकि निजी कंपनियां मुनाफे और डील्स के फायदे को ध्यान में रखते हुए रूसी तेल पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही हैं। यही वजह है कि भारत का तेल बाजार एक तरह से दो अलग दिशाओं में बढ़ता दिख रहा है।

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