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अफगानिस्तान में भारत का मानवीय मिशन! उम्मीद के 40 ट्रक पहुँचे काबुल, ट्रंप-शहबाज को लगा झटका

अफगानिस्तान में भारत का मानवीय मिशन! उम्मीद के 40 ट्रक पहुँचे काबुल, ट्रंप-शहबाज को लगा झटका

भारत ने अफगानिस्तान के लिए 40 राहत ट्रक भेजे जिनमें खाद्यान्न, दवाइयाँ और जरूरी सामग्री शामिल है। यह कदम भारत की साइलेंट डिप्लोमेसी और इंसानियत की मिसाल बना। रूस ने सराहा जबकि चीन सतर्क हो गया। दुनिया ने भारत के मॉडल की प्रशंसा की।

World News: अफगानिस्तान की धरती, जहां कभी युद्ध, भूख और भय का साया था, अब उम्मीद की नई किरण देख रही है। इस बार यह उम्मीद आई है भारत से। जब बाकी देश मीटिंग और बयानों में उलझे रहे, भारत ने चुपचाप 40 ट्रकों में राहत सामग्री भरकर अफगानिस्तान भेज दी। यह सिर्फ मदद नहीं बल्कि मानवता और साइलेंट डिप्लोमेसी (silent diplomacy) का जीवंत उदाहरण है।

बारूद की गंध से उम्मीद की खुशबू तक

कभी अमेरिका ने अरबों डॉलर झोंककर अफगानिस्तान में स्थिरता लाने की कोशिश की थी। लेकिन अंत में वहां बस बारूद की गंध, भूख और निराशा बची। अमेरिकी सैनिक लौट गए और अफगान जनता अकेली रह गई। उस धरती पर अब भारतीय ट्रक राहत लेकर पहुंचे हैं। काबुल की सड़कों पर जब तिरंगे वाले ट्रक दौड़े, तो बच्चों ने खुशी से कहा – “अब भारत आया है।” उनकी आंखों में डर की जगह अब विश्वास लौट आया।

40 ट्रक उम्मीद का कारवां

भारत ने रातों रात 40 ट्रकों का काफिला अफगानिस्तान के लिए रवाना किया। इन ट्रकों में गेहूं, दालें, दवाइयाँ, टेंट और राहत सामग्री भरी थी। हर ट्रक सिर्फ सामान नहीं बल्कि उम्मीद, करुणा और दोस्ती लेकर जा रहा था। अफगान जनता के लिए यह ट्रक मदद से ज्यादा संदेश लेकर पहुंचे – “भारत तुम्हारे साथ है।”

भूंकप और भूख के बीच भारत की इंसानियत

जब अफगानिस्तान भूकंप और भुखमरी से जूझ रहा था, तब दुनिया के बड़े देश केवल चेतावनी और बयान दे रहे थे। पर भारत ने तुरंत कार्रवाई की। बिना किसी शोर-शराबे के, बिना किसी मीडिया घोषणा के, उसने इंसानियत का फर्ज निभाया। यही भारत की असली पहचान है – “कर्म में विश्वास, प्रचार में नहीं।”

साइलेंट डिप्लोमेसी की मिसाल

भारत की यह नीति कैमरों के लिए नहीं बल्कि दिलों के लिए बनाई गई है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मुलाकात तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से इस कूटनीति की मिसाल बन गई। यह वही तालिबान है जिससे अमेरिका बातचीत करने से हिचकता था। मुत्ताकी ने सार्वजनिक रूप से कहा – “भारत ने बिना स्वार्थ के हमारा साथ दिया।” यह सिर्फ एक धन्यवाद नहीं बल्कि भारत की कूटनीतिक जीत का प्रतीक है।

इंसानियत की नई परिभाषा

भारत ने सिर्फ राहत सामग्री नहीं भेजी। उसने पहले ही 20 एंबुलेंस अफगानिस्तान को गिफ्ट की थीं और अब एमआरआई व सीटी स्कैन मशीन भेजने की तैयारी कर रहा है। अस्पताल, स्कूल और राहत केंद्र बनाकर भारत ने दिखाया कि विकास की असली परिभाषा मानवता में है, न कि सिर्फ हथियारों और शक्ति प्रदर्शन में।

जब बाकी देश चुप थे, भारत कर रहा था काम

दुनिया के कई बड़े देश सिर्फ चेतावनियाँ जारी कर रहे थे, जबकि भारत ज़मीन पर काम कर रहा था। काबुल, हेरात और कंधार में भारतीय सहायता से चल रहे स्कूलों और अस्पतालों ने हजारों परिवारों को नया जीवन दिया है। यह मदद अफगान बच्चों के चेहरों पर मुस्कान और महिलाओं के दिलों में सुरक्षा का भाव लेकर आई है।

रूस ने सराहा, चीन हुआ सतर्क

भारत के इस कदम की सराहना रूस ने खुले तौर पर की। उसने इसे “मानवता की मिसाल” बताया। वहीं चीन अब सतर्क हो गया है क्योंकि उसे समझ आ गया कि भारत का “दिलों से जुड़ने वाला मॉडल” उसके Belt and Road Initiative से कहीं अधिक प्रभावशाली है। भारत की यह सॉफ्ट डिप्लोमेसी (soft diplomacy) न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे एशियाई परिदृश्य को प्रभावित कर रही है।

अमेरिकी थिंक टैंक ने माना भारत का मॉडल असरदार

अमेरिकी थिंक टैंक भी अब मान रहे हैं कि भारत की “Humanitarian Diplomacy” एशिया की नई धुरी बन सकती है। उनका मानना है कि भारत जिस तरह बिना दबाव, बिना प्रचार और बिना राजनीतिक लाभ के इंसानियत को केंद्र में रखकर काम कर रहा है, वह आने वाले वर्षों में क्षेत्रीय स्थिरता (stability) का नया रास्ता खोलेगा।

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