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मुकेश अंबानी की नई चाल! मिडिल ईस्ट के 3 देशों के साथ कर डाली ये डील

मुकेश अंबानी की नई चाल! मिडिल ईस्ट के 3 देशों के साथ कर डाली ये डील

अमेरिका द्वारा दो रूसी तेल उत्पादकों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने मिडिल ईस्ट और अमेरिका से लाखों बैरल कच्चा तेल खरीद लिया है। कंपनी ने सऊदी अरब, इराक और कतर से तेल सौदे किए हैं, जिनकी डिलीवरी दिसंबर और जनवरी में होगी। इससे खाड़ी देशों के तेल की कीमतों में 8% तक बढ़ोतरी हुई है।

Mukesh Ambani: वाशिंगटन की ओर से दो रूसी तेल उत्पादकों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मिडिल ईस्ट और अमेरिका से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल की खरीदारी की है। ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस ने सऊदी अरब के खफजी, इराक के बसरा मीडियम और कतर के अल-शाहीन सहित कई ग्रेड का तेल खरीदा है, जिसकी डिलीवरी दिसंबर-जनवरी में होगी। यह कदम रूस से तेल आपूर्ति पर असर पड़ने के बाद वैकल्पिक स्रोतों को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाड़ी देशों के तेल दाम 8% तक बढ़ गए हैं।

अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद रिलायंस की नई चाल

अमेरिका की ओर से लगाए गए नए प्रतिबंधों का असर वैश्विक तेल बाजार पर तुरंत दिखाई दिया है। रूस के दो बड़े तेल उत्पादकों, रोसनेफ्ट और लुकोइल पीजेएससी पर लगे प्रतिबंधों के चलते भारतीय कंपनियों को सप्लाई में कठिनाई आने लगी है। ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपनी तेल खरीद रणनीति में बदलाव करते हुए मिडिल ईस्ट और अमेरिका से तेल खरीदना शुरू किया है।

सूत्रों के अनुसार, रिलायंस ने सऊदी अरब के खफजी, इराक के बसरा मीडियम, कतर के अल शाहीन और अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) ग्रेड से कच्चा तेल खरीदा है। इन तेल कार्गो की डिलीवरी दिसंबर या जनवरी में होने की उम्मीद है।

रूस पर निर्भरता में कमी की तैयारी

रिलायंस अब तक रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता रहा है। कंपनी ने रोसनेफ्ट पीजेएससी के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट भी किया हुआ है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद अब रूस से सप्लाई में बाधा आ सकती है। इसीलिए रिलायंस ने अपने सप्लाई चैन को संतुलित करने के लिए खाड़ी देशों और अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने का फैसला लिया है।

व्यापारिक सूत्रों के मुताबिक, रिलायंस ने इस महीने हाजिर बाजार (स्पॉट मार्केट) से करीब 1 करोड़ बैरल तेल खरीदा है। इनमें से अधिकांश तेल मिडिल ईस्ट से आया है। इससे साफ है कि कंपनी अब वैकल्पिक स्रोतों पर भरोसा बढ़ा रही है ताकि भविष्य में सप्लाई रुकावटों का असर न पड़े।

खाड़ी देशों के तेल की कीमतों में उछाल

अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाड़ी देशों के कच्चे तेल की मांग अचानक बढ़ गई है। पिछले चार दिनों में खाड़ी देशों के तेल की कीमतों में करीब 8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।

ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 20 अक्टूबर को जहां 61.01 डॉलर प्रति बैरल थी, वहीं अब यह बढ़कर 66 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई है। यानी सिर्फ चार दिनों में कीमतों में लगभग 6 डॉलर प्रति बैरल का उछाल देखा गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत, चीन और अन्य एशियाई देशों द्वारा खाड़ी देशों से तेल की खरीद में बढ़ोतरी की वजह से यह उछाल आया है।

अमेरिकी बैन से रूसी तेल पर असर

अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद रोसनेफ्ट समर्थित नायरा एनर्जी लिमिटेड को छोड़कर अन्य भारतीय कंपनियों के लिए रूसी तेल की आपूर्ति में कमी आने की संभावना है।

कुछ चीनी कंपनियों ने भी अमेरिकी बैन के प्रभाव को देखते हुए रूसी तेल की खरीद अस्थायी रूप से रोक दी है। इससे खाड़ी देशों और अमेरिकी तेल की मांग और बढ़ गई है।

रिलायंस की डील से वैश्विक बाजार में हलचल

रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा खाड़ी देशों और अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने के फैसले ने अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में नई हलचल मचा दी है। कई व्यापारियों का कहना है कि इस कदम से आने वाले महीनों में खाड़ी देशों के तेल की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में रिलायंस जैसी बड़ी कंपनी का खरीद निर्णय न सिर्फ घरेलू बाजार बल्कि अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों पर भी असर डालता है।

फिलहाल रिलायंस की ओर से इस पूरी डील पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन यह साफ है कि कंपनी रूस पर निर्भरता घटाने और सप्लाई स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है।

भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतें

भारत की ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। उद्योगों के विस्तार और उपभोक्ता मांग के बढ़ने से कच्चे तेल की खपत में तेजी आई है। इसी वजह से भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति मजबूत रखनी पड़ रही है।

रिलायंस की यह नई डील न सिर्फ कंपनी की सप्लाई सुरक्षा के लिए अहम है, बल्कि यह भारत की ऊर्जा रणनीति में भी बड़ा बदलाव साबित हो सकती है।

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