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भारत-चीन रिश्तों में नई पहल: सुन वेईडोंग की यात्रा, संवाद की उम्मीद या अविश्वास की आहट?

भारत-चीन रिश्तों में नई पहल: सुन वेईडोंग की यात्रा, संवाद की उम्मीद या अविश्वास की आहट?

भारत और चीन के बीच संबंधों में हाल के दिनों में कुछ सकारात्मक संकेत देखने को मिल रहे हैं। इसी क्रम में चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेईडोंग इस सप्ताह भारत दौरे पर आ सकते हैं। यह इस साल दोनों देशों के बीच होने वाली दूसरी उच्च-स्तरीय यात्रा होगी।

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सैन्य और राजनीतिक तनाव के बाद अब रिश्तों में नई नरमी के संकेत दिखाई दे रहे हैं। इसी कड़ी में इस सप्ताह चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेईडोंग का दो दिवसीय भारत दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। इस यात्रा को सीमा विवाद, कूटनीतिक गतिरोध और क्षेत्रीय तनाव के बीच दोनों देशों के बीच संवाद बहाली की दिशा में एक मजबूत प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।

यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत में हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया गया, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकी गतिविधियों के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया गया था। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान द्वारा चीन निर्मित हथियारों के इस्तेमाल की जानकारी सामने आने के बाद ड्रैगन की भूमिका को लेकर भारत में कई सवाल खड़े हुए। ऐसे में सुन वेईडोंग की भारत यात्रा कूटनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मानी जा रही है।

गलवान के बाद रिश्तों की बहाली की कोशिश

भारत और चीन के संबंधों में 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद आई तल्खी के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देश उच्च स्तर पर बार-बार संवाद की कोशिश कर रहे हैं। इसी साल जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी बीजिंग गए थे, जहां उनकी मुलाकात सुन वेईडोंग से हुई थी। अब जवाबी दौरे में सुन का भारत आना यह दिखाता है कि बीजिंग भी रिश्तों को सुधारने के लिए सक्रिय हो रहा है।

सुन की इस यात्रा में सबसे अहम पहलू यह होगा कि क्या वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलते हैं या नहीं। डोभाल भारत-चीन सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि भी हैं और यदि यह बैठक होती है, तो यह संकेत होगा कि विशेष प्रतिनिधि वार्ता फिर से रफ्तार पकड़ सकती है।

सीमा विवाद: तनाव कम लेकिन भरोसा अधूरा

पूर्वी लद्दाख में पिछले पांच वर्षों से चले आ रहे सैन्य गतिरोध की स्थिति अब काफी हद तक सामान्य हो चुकी है। सैन्य स्तर पर डिसएंगेजमेंट और बफर जोन की स्थापना से सीमा पर तनाव कम हुआ है। लेकिन भारतीय नीति निर्माताओं की सबसे बड़ी चिंता चीन की दोहरी नीति है — एक ओर कूटनीतिक शांति की बात और दूसरी ओर पाकिस्तान को सैन्य समर्थन।

ऑपरेशन सिंदूर में चीन से मिले हथियारों का इस्तेमाल एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि क्या बीजिंग वास्तव में शांति चाहता है या अपने "स्ट्रेटजिक प्रॉक्सी" पाकिस्तान के ज़रिए दबाव बनाए रखना चाहता है।

बातचीत के नए एजेंडे

सुन वेईडोंग की यात्रा के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा हो सकती है, उनमें शामिल हैं:

  • विशेष प्रतिनिधियों के बीच वार्ता की पुनर्बहाली
  • सीमा पर स्थायी समाधान की रणनीति
  • सीधी हवाई सेवाओं की बहाली
  • कैलाश मानसरोवर यात्रा-2025 की तैयारियां
  • सीमा पार नदियों पर साझा सहयोग
  • इन मुद्दों पर जनवरी में सैद्धांतिक सहमति बनी थी और अब समय आ गया है कि इन पर ठोस कार्य योजना तैयार की जाए।

भारत की कूटनीतिक प्राथमिकता: विश्वास बहाली

भारत स्पष्ट कर चुका है कि चीन से संबंध सुधार तभी संभव हैं जब वह सीमा पर यथास्थिति का सम्मान करे और तीसरे देशों के साथ भारत विरोधी गतिविधियों से दूरी बनाए। सुन वेईडोंग की यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह यह स्पष्ट करेगी कि चीन अब भारत को "प्रतिद्वंदी" के बजाय "साझेदार" के रूप में देखना चाहता है या नहीं।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ संभावित बैठक और भविष्य में विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा का रास्ता तैयार होना बताता है कि भारत और चीन कूटनीतिक रूप से खुला संवाद चाहते हैं।

विश्वास बनाम विवेक: कौन जीतेगा?

हालांकि रिश्तों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन चीन के पाकिस्तान प्रेम और पूर्व की घटनाओं के कारण भारत में संदेह का बादल अब भी मंडरा रहा है। भारत यह भलीभांति समझता है कि चीन की कूटनीति कई बार रणनीतिक 'चाल' होती है, जिसमें दीर्घकालिक उद्देश्य छिपे रहते हैं। इस यात्रा से अगर कोई सकारात्मक परिणाम निकलता है, तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए स्थिरता का संकेत होगा। लेकिन अगर बातचीत केवल औपचारिकताओं तक सीमित रही, तो यह एक और खोया हुआ अवसर बन सकता है।

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