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भारत की उदार परंपरा पर सवाल, तस्लीमा नसरीन ने उठाया नास्तिकों के लिए शरण का मुद्दा

भारत की उदार परंपरा पर सवाल, तस्लीमा नसरीन ने उठाया नास्तिकों के लिए शरण का मुद्दा

तस्लीमा नसरीन ने भारत से सवाल उठाया कि नास्तिक और फ्री थिंकर्स को क्यों नहीं मिल रही शरण। उन्होंने कहा कि धर्म पर सवाल उठाना अपराध नहीं, और भारत को अपनी उदार परंपरा के अनुसार सुरक्षा देनी चाहिए।

New Delhi: बांग्लादेश की मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता तस्लीमा नसरीन ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि जिन देशों में नास्तिकों और फ्री थिंकर्स की जिंदगी खतरे में है, वहां से उन्हें सुरक्षित जगहों पर शरण दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि इंसान के सोचने और सवाल उठाने के अधिकार को अपराध मानना किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है।

नास्तिकों और फ्री थिंकर्स की दुर्दशा

तस्लीमा ने अपने ट्वीट में लिखा कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में न केवल हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदाय के लोग अत्याचार झेलते हैं, बल्कि सबसे बुरा हाल उन लोगों का है जो धर्म पर सवाल उठाते हैं, इस्लाम की आलोचना करते हैं या नास्तिक (atheist) हैं।

उनके अनुसार, नास्तिक और फ्री थिंकर्स पर इस्लामी कट्टरपंथियों और जिहादियों का सीधा हमला होता है। कई को खुलेआम दिनदहाड़े मार दिया गया। कुछ लोग छिपकर या चुप रहकर जीने को मजबूर हैं। कई तो जान बचाने के लिए अपने देश छोड़कर भागे।

नसरीन ने कहा कि ऐसे लोग अक्सर मुस्लिम परिवारों में जन्मे होते हैं, लेकिन उन्होंने समाज को अंधविश्वास और कट्टरता से बचाने के लिए धर्म की आलोचना करना शुरू किया।

भारत पर सवाल: क्यों नहीं मिल रही शरण

तस्लीमा का कहना है कि कई नास्तिक विचारक भारत आए, लेकिन उन्हें स्थायी आश्रय नहीं मिला। मजबूर होकर कुछ लोग नेपाल चले गए, लेकिन वहां भी न तो नागरिकता मिली और न ही काम करने का अधिकार।

उन्होंने ट्वीट में सवाल उठाया कि भारत ने हमेशा अन्य देशों के सताए गए लोगों को शरण दी है। पारसियों को, यहूदियों को, दलाई लामा और उनके अनुयायियों को। आज भी भारत में 40 हजार रोहिंग्या और पाकिस्तान-अफगानिस्तान से आए मुसलमान सुरक्षित हैं। फिर सवाल उठता है कि बांग्लादेश के नास्तिक विचारकों के लिए भारत में दरवाजे क्यों बंद हैं?

भारत की परंपरा और उदारवाद

नसरीन ने याद दिलाया कि भारत की पहचान उदारवाद, मानवता, धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आजादी से है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की परंपरा में नास्तिकता को भी स्वीकार किया गया है। ऐसे में, भारत में कुछ सौ विचारकों को शरण देने में दिक्कत क्यों है?

तस्लीमा ने जोर देकर कहा कि ये लोग आतंकी या जिहादी नेटवर्क का हिस्सा नहीं हैं। ये लेखक, शोधकर्ता और समाज सुधारक हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षित ठिकाना मिलना चाहिए।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ मामला

तस्लीमा का ट्वीट सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है। लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा से जोड़कर देखा है।

नास्तिक और फ्री थिंकर्स के लिए सुरक्षा की जरूरत

तस्लीमा के अनुसार, नास्तिक और फ्री थिंकर्स अक्सर अपने जीवन के लिए खतरे में रहते हैं। उन्हें सुरक्षित आश्रय और काम करने का अधिकार मिलना चाहिए। यह केवल मानवाधिकारों की बात नहीं है, बल्कि समाज में खुले विचारों और ज्ञान के प्रसार के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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