चाणक्य नीति के अनुसार अनैतिक, चोरी या धोखे से कमाया गया धन कभी बरकत नहीं देता और व्यक्ति को दरिद्रता की ओर ले जाता है। रिश्वत लेना, दूसरों को धोखा देना या चोरी करना ऐसे धनार्जन के मुख्य रूप हैं। नीति में कहा गया है कि अन्याय से कमाया धन दस साल तक टिकता है, उसके बाद पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की नीति शास्त्र में बताया गया है कि धन कमाने के तीन गलत तरीके अनैतिक तरीका, धोखा देकर धन अर्जित करना और चोरी करना व्यक्ति को समृद्धि नहीं देते। ऐसा धन मानसिक परेशानी और सामाजिक मानहानि पैदा करता है। नीति में श्लोक “अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति, प्राप्ते एकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति” के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि अन्याय से कमाया गया धन केवल दस साल तक टिकता है और ग्यारहवें साल में नष्ट हो जाता है।
अनैतिक तरीकों से अर्जित धन
चाणक्य नीति के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति नियम-कानून तोड़कर या अनुचित तरीकों से धन कमाता है, तो वह धन कभी स्थायी नहीं होता। रिश्वत लेना, अनुचित लाभ उठाना या नियमों के विपरीत कार्य करना अनैतिक धन में आता है। ऐसा धन न केवल आत्मिक संतुष्टि नहीं देता बल्कि जीवन में अस्थिरता और समस्याओं को भी जन्म देता है। इसके साथ ही समाज में मान-सम्मान में कमी आने का खतरा रहता है। चाणक्य का मानना है कि अनैतिक तरीके से अर्जित धन के पीछे हमेशा संकट और असंतोष छिपा होता है।
धोखे से कमाया गया धन
धोखा देकर धन कमाना भी चाणक्य नीति में निषिद्ध माना गया है। यदि किसी को भ्रम में रखकर या छल करके धन प्राप्त किया जाए तो वह कभी स्थायी नहीं रहता। ऐसे धन के साथ मानसिक तनाव जुड़ा होता है। व्यक्ति को हमेशा डर और चिंता बनी रहती है कि कहीं उसके गलत काम का पता न चल जाए। इसके अलावा, समाज में धोखे से कमाए गए धन से व्यक्ति की छवि खराब होती है और मान-सम्मान घटता है। चाणक्य का कथन है कि धोखा देकर अर्जित धन जीवन में स्थायी लाभ नहीं देता, बल्कि यह केवल अस्थायी सुविधा ही प्रदान करता है।
चोरी से अर्जित धन
चोरी से धन कमाना भी हानिकारक होता है। चाणक्य ने स्पष्ट किया है कि चोरी या चोरी के प्रयास से अर्जित धन कभी स्थायी नहीं रहता। यह न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है बल्कि समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी घटाती है। ऐसे धन से आत्मिक संतोष नहीं मिलता और व्यक्ति की मानसिक शांति भी भंग होती है। चाणक्य नीति में कहा गया है कि चोरी और अन्याय से अर्जित धन धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है और इसकी स्थायित्व अवधि बहुत कम होती है।
चाणक्य नीति का श्लोक
चाणक्य ने अपने श्लोक में इसे इस प्रकार कहा है:
अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते एकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति।
इसका अर्थ है कि अन्याय, बेईमानी और गलत तरीकों से अर्जित धन केवल दस वर्षों तक रहता है। ग्यारहवें वर्ष में यह धन संपूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि किसी भी व्यक्ति को अनुचित तरीके से धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका दीर्घकालीन लाभ नहीं होता।
जीवन में सच्चे तरीके से धन अर्जन का महत्व
चाणक्य के अनुसार, धन अर्जित करने के लिए नैतिकता, ईमानदारी और मेहनत आवश्यक है। केवल ऐसे तरीकों से कमाया गया धन स्थायी रूप से जीवन में सुख, समृद्धि और सम्मान लाता है। सही तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति को मानसिक संतोष और समाज में प्रतिष्ठा देता है।
चाणक्य नीति यह भी बताती है कि धन अर्जित करना केवल आर्थिक लाभ के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उपयोग समाज और परिवार की भलाई में होना चाहिए। धन का सही उपयोग और ईमानदारी से कमाया गया धन ही जीवन में स्थायी खुशहाली लाता है।