सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने निचली अदालतों के जजों पर टिप्पणी करने की प्रवृत्ति को अनुचित करार दिया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का दायित्व केवल गलत आदेशों को सुधारना, बदलना या रद्द करना है।
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संदेश देते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों के जजों की क्षमताओं पर टिप्पणी करने के बजाय उन्हें मार्गदर्शन और प्रशिक्षण देना चाहिए। उनका कहना है कि संवैधानिक ढांचे के तहत हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ही समान स्तर की अदालतें हैं, और किसी भी जज की योग्यता पर सार्वजनिक टिप्पणी करना उचित नहीं है।
टिप्पणी नहीं, सुधार और प्रशिक्षण पर जोर
CJI गवई ने स्पष्ट कहा कि संविधान, उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों के जजों की क्षमता पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं देता। उनका कहना था कि उच्च न्यायालयों को सिर्फ आदेशों को सुधारने, बदलने या रद्द करने का अधिकार है। उन्होंने कहा, जिस जज ने कभी गलती नहीं की, वह अभी तक पैदा नहीं हुआ है।
जस्टिस सूर्यकांत ने भी सहमति जताते हुए कहा कि हाई कोर्ट के जजों को निचली अदालतों के लिए दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। उनके अनुसार, तीन-स्तरीय न्याय प्रणाली में आलोचना की जगह समझाने और मार्गदर्शन देने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
हालिया विवाद की पृष्ठभूमि
यह टिप्पणी उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के आदेश को "सबसे खराब और गलत" बताते हुए आलोचना की थी। उस बेंच में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे, जिन्होंने संबंधित जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोक दिया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश वापस ले लिया और मामले को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि हाई कोर्ट का कौन सा जज किस तरह के मामलों की सुनवाई करेगा। यह अधिकार केवल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास होता है।
हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट: समान संवैधानिक दर्जा
CJI गवई ने जोर देकर कहा कि हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं क्योंकि दोनों ही संवैधानिक अदालतें हैं। सुप्रीम कोर्ट सिर्फ हाई कोर्ट के आदेशों को बदलने, रद्द करने या संशोधित करने की भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निचली अदालतों के जजों को समय-समय पर उचित प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वे कानूनी ज्ञान को अपडेट कर सकें और अदालत में पेशेवर आचरण बनाए रखें।
जस्टिस सूर्यकांत, जो 24 नवंबर को CJI गवई की जगह मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे, ने कहा कि हाई कोर्ट के जज और निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारी अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके पास जीवन के विविध अनुभव होते हैं। इन अनुभवों को उचित कानूनी प्रशिक्षण के साथ जोड़कर न्याय प्रणाली को और प्रभावी बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णयों के माध्यम से हाई कोर्ट का मार्गदर्शन करना चाहिए, न कि उनके रोस्टर में हस्तक्षेप करना।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: मार्गदर्शन, न कि हस्तक्षेप
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायिक अधिकारी, चाहे वे किसी भी स्तर पर हों, अपने अनुभव और प्रशिक्षण से न्यायिक प्रक्रिया में योगदान देते हैं। इसलिए शीर्ष अदालत को चाहिए कि वह निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों को निर्णयों और व्याख्याओं के माध्यम से दिशा दे, न कि उनके कार्यक्षेत्र में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करे।
CJI गवई ने भी कहा कि आदेश देते समय और फैसले लिखते समय हाई कोर्ट के जजों को शालीनता और संतुलन बनाए रखना चाहिए, ताकि न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास बना रहे।